Ambikapur News: अंबिकापुर(नईदुनिया प्रतिनिधि)। मानदेय में तीन सौ रुपये की वृद्धि से असंतुष्ट मध्यान्ह भोजन रसोइयों का आंदोलन जारी है। अंबिकापुर शहरवासियों के लिए रसोइयों का यह आंदोलन सबसे अलग नजर आ रहा है। दिन भर पंडाल में बैठकर मांगों के समर्थन में एकजुटता का प्रदर्शन करने वाले रसोइयों का शाम होते ही चूल्हा धरना स्थल के आसपास जल जाता है। बड़े-बड़े गंज में रसोइयों का दाल, चावल पकता है तो इधर सामने फुलकी बाजार में शहरवासी चटपटे फुलकी (पानी पुरी)का आनंद उठाते हैं।
धरनास्थल के पास ही फुलकी के ठेले लगते हैं। रात आठ बजे तक रसोइयों का भोजन हो जाता है। वे सोने की तैयारी करते हैं। सामने नाली और गंदगी के कारण मच्छरों का इतना प्रकोप रहता है कि बिना मच्छरदानी के सो पाना मुश्किल हो जाता है। रात नौ बजे तक अधिकांश रसोइयों की मच्छरदानी लग जाती है। वे सोने चले जाते हैं। इधर, शहरवासियों की चहल पहल सामने की सड़क पर बनी रहती है। कई रसोइयों के पास मच्छरदानी भी नहीं है। गांव से पहुंचे रसोइए आदत के अनुरूप रात नौ से 10 बजे के बीच चादर, कंबल लेकर गहरी नींद में नजर आते हैं। रात गुजारने के बाद सुबह चार बजे से उनका संघर्ष फिर से शुरू हो जाता है। दैनिक क्रिया से निवृत्त होने के बाद अपनी अपनी व्यवस्था के अनुरूप धरना स्थल के सामने ही हैंडपंप का उपयोग कर वे भोजन बनाने की तैयारी में लग जाते हैं। जब तक यह शहर जाकर उठता है तब तक रसोइए नहा धोकर भोजन करने की तैयारी में रहते हैं।
सभी ब्लाकों में चल रहा आंदोलन
संभाग मुख्यालय अंबिकापुर के अलावा ब्लाक मुख्यालयों में भी रसोइयों का धरना प्रदर्शन जारी है। ब्लाक मुख्यालय में तो दिन भर धरना देने के बाद अधिकांश रसोइए अपने घरों को वापस लौट जाते हैं। अंबिकापुर शहर में दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों से भी रसोइया एकजुटता का प्रदर्शन करने आए हुए हैं। इनमें से अधिकांश ने अपने साथ दाल, चावल, लकड़ी , कंबल,चादर ,तेल, नमक, कंघी, एनक भी लाए हैं। ईटों का चूल्हा बनाकर ईंधन के रूप में लकड़ी का प्रयोग कर खुद के लाए बर्तनों में भोजन तैयार कर रहे हैं।
Posted By: Abrak Akrosh
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