बिलासपुर(नईदुनिया प्रतिनिधि)। शहर का शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जो पुलिस मैदान को न जानता हो। शहर के बीचों-बीच यह मैदान जितना खूबसूरत है, इसका इतिहास भी उतना ही रोचक है। दरअसल समतल व चारों तरफ खुला यह मैदान 118 साल पुराना है। वर्ष 1905 में अंग्रेजों ने इसका निर्माण कराया था। इसी वर्ष में पुलिस लाइन भी अस्तित्व में आई थी। अंग्रेज हाकी खेल के शौकीन थे। उस समय रेलवे और पुलिस में इस खेल के खिलाड़ी भी हुआ करते थे। लेकिन, अभ्यास के लिए मैदान का अभाव था। लिहाजा इस मैदान की नींव रखी गई। इसके निर्माण का एक उद्देश्य परेड भी था। दोनों गतिविधियां एक साथ होती थीं। बाद में कई बड़े कार्यक्रम भी यहां कराए जाते रहे हैं।
यह मैदान शहर की शान है। इसे सहजकर रखने में पुलिस प्रशासन ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है। जब यह मैदान अस्तित्व में आया, उस समय हाकी की तीन टीमें हुआ करती थीं। एक रेलवे और दूसरी पुलिस की। तीसरी टीम शहर की हुआ करती थी। इसे ओलिंपिक क्लब नाम दिया गया था। इनके बीच में ही मैच होते थे। इन्हें हाकी व खेलों के प्रेमी बेहद उत्साह से देखते थे। बाद में इस हाकी मैदान ने अलग पहचान बनाई। समतल और मिट्टी से बने इस मैदान में खेलने बाहरी खिलाड़ी अलग आनंद महसूस करते थे।
बताया जाता है कि अधिकांश शहरों में उस समय घास के मैदान में हाकी खेलने का चलन था। मिट्टी के साथ समतल मैदान गिने-चुने ही थे। उनमें से एक नाम बिलासपुर के इस मैदान का भी था। हालांकि बाद में देश आजाद हुआ। अंग्रेज चले गए। इसके साथ ही कई तरह के बदलाव में देखने को मिले। देश की आजादी के बाद वर्ष 1956 में इस मैदान पहला आल इंडिया हाकी टूर्नामेंट का आयोजन हुआ। उस समय के लोग इसे स्वतंत्रता कप के नाम से भी पहचानते थे। धीरे-धीरे समय गुजरता चला गया।
इसके बाद में यहां स्पर्धाएं भी होती गईं और नई पीढ़ियां इसी मैदान पर अभ्यास कर परिपक्व खिलाड़ी बनकर अपना व माता-पिता के अलावा शहर व प्रदेश और देश का नाम रोशन करने लगे। जब ग्रास और मिट्टी के मैदान का समय समाप्त हुआ और एस्ट्रोटर्फ हाकी मैदान में खेल का चलन शुरू हुआ यहां हाकी की गतिविधियां में समाप्त हो गईं। वर्तमान में यहां हाकी का अभ्यास भी नहीं होता। केवल परेड और अन्य सांस्कृतिक, समाजिक व शासकीय आयोजन ही होते हैं।
स्वतंत्रता व गणतंत्र दिवस के साथ सभी प्रमुख आयोजन इसी मैदान पर
पुलिस मैदान खेल के साथ-साथ शहर के प्रमुख आयोजनों के लिए भी जाना जाता है। देश की आजादी का जश्न पर 15 अगस्त को जिला प्रशासन का मुख्य आयोजन इसी मैदान में होता है। इतना ही नहीं 26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर भी विभिन्न कार्यक्रम होते है। इन दोनों राष्ट्रीय पर्व पर इस मैदान को इतनी खूबसूरती के साथ सजाया जाता है कि एक बार कदम मैदान का आकर्षक स्वरूप देखकर थम जाते है। इसके अलावा राज्योत्सव और दशहरा पर्व के दिन रावण दहन का कार्यक्रम भी इसी मैदान में होता है। सालभर इस मैदान में इन्हीं कार्यक्रमों की वजह से उमंग का माहौल रहता है।
23 साल से हो रहे आयोजन
सरकारी के अलावा निजी आयोजनों के लिए भी इस मैदान को किराए पर दिया जाता है। यह व्यवस्था राज्य की स्थापना के बाद से लागू हुई है। छत्तीसगढ़ राज्य वर्ष 2000 में अस्तित्व में आया। शहर के बीचों-बीच इस मैदान पर आयोजन करना हर किसी को बेहतर लगता है। यहीं वजह है कि यहां कवि सम्मेलन, मेला, कव्वाली, बिजनेस मेला से लेकर अन्य कर्यक्रम होते हैं।
यादव की पहल, सांसद मद से भी गैलरी व अन्य निर्माण
अंग्रेजों ने केवल मैदान ही बनाया था। अभी जो गैलरी या दर्शकों के बैठने की व्यवस्था, वह तत्कालीन मंत्री बीआर यादव की देन है। जबकि वीणा वर्मा ने भी अपने सांसद मद से खर्च किए, जिससे मैदान को नया स्वरूप दिया। यह आज भी पुलिस के ही अधीन है और इसकी बुकिंग रक्षित निरीक्षक ही करते हैं। मैदान को आज भी सहेजकर रखा गया है।
Posted By: Abrak Akrosh
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