Bilaspur News: बिलासपुर( नईदुनिया प्रतिनिधि)।संपत्ति विवाद को लेकर दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने वंशवृक्ष तैयार किया। इस आधार पर याचिकाकर्ता और दावेदारों के बीच आपस में रिश्ता तय किया, उसके बाद महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है।
कोर्ट ने कहा कि किसी रजिस्ट्रीकृत विक्रय विलेख, जिसके सत्य होने की संभावना है, इसके विरुद्ध बिना साक्ष्य के अनुमानित संभावनाओं के आधार पर कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है। हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए याचिका को खारिज कर दिया है। हाई कोर्ट का यह फैसला न्याय दृष्टांत बन गया है।
संपत्ति विवाद के मामले में सुनवाई करते हुए तृतीय अपर जिला न्यायाधीश रायपुर ने 28 मई 2018 को आदेश पारित किया था। जिसमें वादी डा रामकुमार चौधरी (मृतक के बाद से और कानूनी द्वारा प्रतिनिधित्व किया वारिस) शिव कुमार चौधरी के खिलाफ (मृतक और प्रतिनिधित्व के बाद से कानूनी उत्तराधिकारियों द्वारा) कब्जे और नुकसान के लिए आदेशित किया गया था।
मुकदमे के लंबित रहने के दौरान, प्रतिवादी शिव कुमार चौधरी की मृत्यु हो गई और निर्णय और डिक्री के बाद, शिव कुमार चौधरी के कानूनी उत्तराधिकारियों द्वारा अपील दायर की गई। डा रामकुमार चौधरी ने अपने भाई शिव कुमार चौधरी के विरुद्ध वाद दायर किया कि उनका साउथ एवेन्यू, चौबे कॉलोनी, रायपुर स्थित में मकान है। जिसे उन्होंने रायपुर से अपनी कमाई से खरीदा था। शिव कुमार चौधरी (प्रतिवादी) छोटा भाई है। चूंकि उसके पास रायपुर में रहने के लिए कोई जगह नहीं थी और वह गली में भटक रहा था। उसे उसी मकान में रहने के लिए दिया था । रामकुमार चौधरी की मृत्यु के बाद, वाद संपत्ति वसीयत के आधार पर अक्षय कुमार चौधरी के पक्ष में जारी की गई।
वर्ष 2002 में, जब प्रतिवादी को परिसर खाली करने के लिए कहा गया था, तो उसने पैतृक संपत्ति बताते हुए खाली करने से इन्कार कर दिया। इसके बाद उसने भाई के खिलाफ बेदखली और नुकसान के लिए एक मुकदमा दायर किया गया था। .पक्षकार ने अपने जवाब में कहा है कि उसके पिता डा रामकुमार चौधरी ने संपत्ति अपनी कमाई से खरीदी थी। , हालांकि जमीन का आवंटन डा रामकुमार चौधरी के नाम पर किया गया था। इसके पीछे बडृा बेटा होना बताया है। डा रामकुमार चौधरी की जब खरीद की गई थी तब उनकी कोई आय नहीं थी और पिता ने प्यार और स्नेह से संपत्ति कोबड़े भाई डा रामकुमार चौधरी के नाम से खरीदा था। यह कहा गया था कि उस समय वादी के पास आय का कोई स्रोत नहीं था। जब प्लॉट आवंटित किया गया था, तब एक हजार रुपये का चेक 26 सितंबर 1961 और 1250 रुपये का चेक 23 सितंबर 1961 के चेक के माध्यम से भुगतान किया गया था। यह रााशि उनके पिता द्वारा पंजाब नैशनल बैंक को-ऑपरेटिव सोसाइटी के पक्ष में किया गया था, जो यह साबित करता है कि प्लॉट खरीदने का पैसा पिता डॉ. धनीराम चौधरी ने दिया था न कि डॉ. रामकुमार चौधरी ने। अपने जवाब में यह भी कहा कि 18 अक्टूबर 2000 को किए गए वसीयत के आधार पर हालांकि संपत्ति अक्षय कुमार चौधरी और अविनाश चौधरी को दी गई थी। वसीयत को शून्य घोषित करने की मांग की।
कोर्ट ने की टिप्पणी
मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच में हुई। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि संपत्ति पर अपना हक जताते हुए दोनों पक्षों ने भारी भरकम दस्तावेज पेश किया है। दस्तावेजों के परीक्षण के साथ ही परिवार का वंशवृक्ष बनाना भी आवश्यक है। कोर्ट के निर्देश पर वंशवृक्ष बनाया गया। इसके बाद कोर्ट ने अपना महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है।
Posted By: Yogeshwar Sharma