जगदलपुर। बस्तर की संस्कारधानी व संभाग के सबसे बड़े व पुराने शहर जगदलपुर में सरकारी सार्वजनिक कुओं की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। शासन-प्रशासन की उपेक्षा का दंश झेलते इनमें से कुछ प्राचीन कुओं का अस्तित्व मिट गया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में 17 कुएं बचे हैं, ये भी संरक्षण के आभाव में धीरे-धीरे अस्तित्व खोने की ओर बढ़ रहे हैं। प्राचीन कुओं के वर्तमान परिदृश्य में एक सुखद पहलू भी है। शहर के मध्य प्रतापदेव वार्ड बहुत पुराना बसाहट है।
यहां हाईस्कूल रोड व जैन मंदिर रोड में इक्का दुक्का को छोड़ अधिकांश घरों में कुआं मौजूद हैं। 70 से 100 साल या इससे भी अधिक पुराने ये कुएं यदि बोल सकते तो शायद यही कहते, मैं कुआं हूं, मेरे कद्रदान देखनें हों तो आइए प्रतापदेव वार्ड। यहां इन घरों में कुओं की बहुत देखभाल होती है। रखरखाव के प्रति इनके मालिक काफी सजग हैं। आधुनिक दौर में पानी की आवश्यकता की पूर्ति के लिए बोर खनन कराने का प्रचलन हैं पर जिनके घरों में दशकों से पुराना कुआं मौजूद हैं उन घरों में बोर आज भी नहीं कराया गया। कुओं ने हमेशा से अपने जलस्तर को बनाए रखा है। सूखा की विभीषिका का दौर रहा हो या फिर जलसंकट का कोई दूसरा समय यहां के लोग बताते हैं कि पुराने कुओं ने हर संकट के समय परिवार का साथ दिया है। प्रतापदेव वार्डवासियों के कंठ नहीं सूखने दिए। सरकारी नल कनेक्शन यहां हर घर में मिल जाएंगे लेकिन आज इन परिवारों की जल के लिए निर्भरता आज भी नलों से ज्यादा कुओं पर है।
पुराने खपरैल मकानों की जगह उंची आलीशान इमारतों ने लिया पर यदि कुछ नहीं बदला तो कुओं की दशा और दिशा नहीं बदली। इनमें से कुछ ही कुएं ऐसे हैं जो आज भी घर के आंगन में हैं अन्यथा अधिकांश आंगन से कमरों में आ चुके हैं। नईदुनिया को जब प्रतापदेव वार्ड के हाईस्कूल रोड में कई घरों में पुराना कुआं के होने की जानकारी मिली तो वहां पहुंच अवलोकन भी किया और मालिकों से चर्चा इनके बारे में जानकारी भी प्राप्त की।
Posted By: Nai Dunia News Network
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