जगदलपुर। बस्तर में रेल यात्री सुविधाओं की मांग को लेकर सबसे लंबी अवधि तक चले रेल रोको आंदोलन के बीस दिसंबर को दस साल पूरे हो रहे हैं। इस दिन जगदलपुर स्टेशन में चरणबद्ध रूप से शुरू हुआ रेल रोको आंदोलन बाद में अनिश्चितकालीन बन गया था। 20 दिसंबर 2011 से 21 जनवरी 2012 के बीच 257 घंटे तक रेलमार्ग ठप करके बस्तरवासियों ने उस समय अपनी कई रेलमांगें पूरी करा ली थी। तब तत्कालीन रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी को भी कहना पड़ा था कि यात्री ट्रेनों के विस्तार के लिए इतना लंबा रेल रोको आंदोलन इसके पहले उन्होंने नहीं देखा सुना था।

बस्तर के लोग आज भी 10 साल पहले हुए उस ऐतिहासिक आंदोलन को याद करते हैं। आंदोलन की सफलता इसी बात से समझी जा सकती है कि आंदोलन का सूत्रपात राजनीतिक दल के रूप में भारतीय जनता युवा मोर्चा ने किया था। तब मोर्चा में भाजपा नेता महेश गागड़ा राष्ट्रीय पदाधिकारी व संग्राम सिंह राणा जिला अध्यक्ष थे। भाजयुमो का आंदोलन जल्दी ही सर्वदलीय बन गया था। उस समय केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार थी इसलिए कांग्रेस प्रत्यक्ष रूप से रेल रोको आंदोलन में भले ही शामिल नहीं थी लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस ने भी आंदोलन का समर्थन किया था।

बस्तर और दंतेवाड़ा जिले के सभी समाज व संगठनों व स्कूली बच्चों सहित सभी वर्ग ने मिलकर आंदोलन को जन आंदोलन बना दिया था। इसे इस तथ्य से समझा जा सकता है कि आंदोलनकारियों को चर्चा के लिए रेलमंत्री द्वारा दिल्ली बुलाया गया तो प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व तत्कालीन भाजपा सांसद दिनेश कश्यप और कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक कवासी लखमा ने किया था। 20 दिसंबर को मांगों को लेकर चेतावनी के रूप में एक दिन के रेल रोको आंदोलन से शुरुआत हुई थी।

इसके बाद सात से 12 जनवरी 2012 तक किरंदुल से लेकर बस्तर संभाग की सीमा के अंदर आमागुड़ा स्टेशन तक चरणबद्ध रूप से रेल रोको आंदोलन करने के बाद 13 जनवरी 2012 से 21 जनवरी तक अनिश्चितकालीन आंदोलन दिन रात चला था। इस आंदोलन का असर यह हुआ कि उस समय उठाई गई रेल संबंधी मांगों से एक कदम आगे बढ़कर केंद्र सरकार ने बस्तर ही नहीं छत्तीसगढ़ में रेल विकास की कई परियोजनाओं को मंजूरी दे दी थी।

रेलमंत्री ने कहा था कि वह छत्तीसगढ़ से केंद्र में मंत्री हैं

दो घंटे दिल्ली में चली बैठक में एक मौका ऐसा आया जब रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी को कहना पड़ा था कि उनके पूर्व जिस प्रदेश से रेलमंत्री हुए हैं उनके द्वारा अपने गृह राज्य को रेलवे से सबसे अधिक सौगातें दी गई हैं। त्रिवेदी को कहना पड़ा था कि वह छत्तीसगढ़ राज्य को अपना गृह राज्य मानकर सौगातें देंगे। कुछ मांगें बैठक में ही स्वीकार कर ली गई थी। इसके 15 दिनों बाद रेलबजट आने से पहले सात फरवरी 2012 को रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी रायपुर आए और यहां भाजपा की प्रदेश सरकार और कांग्रेस दोनों दलों के लोगों के साथ बस्तर से प्रतिनिधिमंडल को एक बार फिर रायपुर आमंत्रित कर चर्चा की।

यह मांगें हुई थी पूरी

ऐतिहासिक रेल रोको आंदोलन के बाद हावड़ा-कोरापुट समलेश्वरी एक्सप्रेस का जगदलपुर तक विस्तार, दुर्ग से जगदलपुर के लिए एक्सप्रेस ट्रेन, किरंदुल-कोत्तावालसा रेलमार्ग के दोहरीकरण परियोजना को बजट में शामिल करने सहित बस्तर में यात्री सुविधाओं में विस्तार, स्टेशनों का उन्नायन आदि मांगें पूरी हुई थी। उसी दौर में छत्तीसगढ़ में कुछ रेल कारीडोर को भी मंजूरी दी गई थी। बस्तर चेंबर आफ कामर्स के पूर्व अध्यक्ष संतोष जैन उस आंदोलन को याद करते बताते हैं कि वे कई रेल रोको आंदोलन में शामिल रहे हैं। 2011-12 का आंदोलन जन आंदोलन था। आंदोलन के नायकों में शामिल रहे संग्राम सिंह राणा का कहना है कि भाजयुमो का आंदोलन सर्वदलीय और जन आंदोलन बन जाएगा इसकी उम्मीद किसी ने नहीं की थी।

चार दशक पुराना है बस्तर में रेल आंदोलन का इतिहास

बस्तर को जोड़ने वाली किरंदुल-कोत्तावालसा रेललाइन 1966-67 में बनकर तैयार हुई थी। 1972-73 में बस्तर चेंबर आफ कामर्स के गठन के बाद रेल मांगों को लेकर आंदोलनों की शरूआत हुई। तब शुरूआती दौर में आंदोलन प्रतीकात्मक हुआ करते थे। संतोष जैन बताते हैं कि बिना आंदोलन बस्तर की रेल मांगें शायद ही कभी पूरी हुई हैं। 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्देश पर तत्कालीन रेल मंत्री कमलापति त्रिपाठी ने बस्तर को विशाखापटनम-किरंदुल के रूप में पहली यात्री गाड़ी की सौगात दी थी।

कभी उग्र आंदोलन नहीं हुआ

बाद में बीच बीच में आंदोलन होते रहे लेकिन कभी उग्र आंदोलन नहीं हुआ। दो जनवरी 2010 से चार जनवरी 2010 तक लगातार तीन दिनों तक कांग्रेस नेता उमाशंकर शुक्ल के नेतृत्व में रेल रोको आंदोलन जगदलपुर स्टेशन में किया गया था। इस आंदोलन से भुवनेश्वर-कोरापुट हीराखंड का विस्तार जगदलपुर तक कराने में सफलता मिली थी। इसके करीब दो साल बाद 2011-12 में भाजयुमो के नेतृत्व में जन आंदोलन ने एक नई चेतना रेल मांगो पर संघर्ष के लिए लोगों में पैदा कर दी थी।

Posted By: Nai Dunia News Network

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