जगदलपुर। World Water Day 2023: आज 22 मार्च को विश्व जल दिवस है। जल के बिना जीव की कल्पना बेमानी है। जल ही जीवन है। जल है तो कल है। बिन पानी सब सून जैसे अनेक कथन सामान्य बोलचाल में उक्ति के रूप में लोगों द्वारा प्रयोग किए जाते हैं। जल एक ऐसा दुलर्भ प्राकृतिक संसाधन है जो जीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। जल के महत्व को सभी जानते हैं लेकिन इसके संरक्षण को लेकर लोगों में वैसी चिंता नहीं दिखती जैसी कि होना चाहिए। बस्तर के संदर्भ में प्राकृतिक संपदा के अंतर्गत जल संपदा दोनों मामलों में यह धरा धनी है।

बस्तर संभाग का कुल भौगोलिक क्षेत्र 3904.22 हजार हेक्टेयर है। यहां की धरती का लगभग 53 फीसद हिस्सा वन आच्छादित है। यहां सालाना लगभग 1600 मिलीमीटर बारिश होती है। सैकड़ों नदी-नाले, झील यहां हैं जो सतही जल के स्त्रोत हैं।

इंद्रावती जल संकट को बस्तरवासियों के बीच बना दिया चर्चा का विषय

बिडंबना यह है कि सतही जल को रोकने और इसके संरक्षण के लिए आज पर्यन्त ठोस उपाय नहीं किए गए। जल संसाधन विभाग की एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार यहां वर्षा आधारित लगभग चार सौ टीएमसी सतही जल हर साल बहकर बस्तर के बाहर चला जाता है।

जल संरक्षण का अलख जगा रहा इंद्रावती बचाओ अभियान

बस्तर भूमि के गर्भ में जल का भंडार इसलिए प्रदेश के दूसरे क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक है, क्योंकि यहां भूगर्भीय जलादोहन की मात्रा कम है। 10 से 15 फीसद जल का ही भूगर्भ से दोहन किया जाता है। बस्तर की प्राणदायिनी इंद्रावती नदी में ओड़िशा-छत्तीसगढ़ सीमावर्ती क्षेत्र में 60 से 80 किलोमीटर के क्षेत्र में गर्मियों में बीते तीन दशक से जलसंकट की बनने वाली स्थिति ने बस्तरवासियों को ज्यादा न ही सही पर कुछ हद तक जलसंकट को लेकर जागरूक किया है।

बस्तर में वर्तमान में अपवाद स्वरूप एक दो संस्था को छोड़कर जल संरक्षण को लेकर जन जागरूकता और जलसंकट के समाधान को लेकर ज्यादा आवाज सुनाई नहीं देती। ऐसी ही एक संस्था है इंद्रावती नदी बचाओ अभियान समिति जिसने इंद्रावती नदी जलसंकट के समाधान के लिए गिलहरी प्रयास किया है। संस्था का यह प्रयास लगातार जारी है।

चित्रकोट जलप्रपात सूखा तो आई याद

अप्रैल 2018 में इंद्रावती नदी पर स्थित विश्व प्रसिद्ध चित्रकोट जलप्रपात सूख गया था। तब इसे लेकर काफी शोर मचा था। जलप्रपात के सूखने से व्यथित शहर के पर्यावरण एवं जल संरक्षण को लेकर जागरूक कुछ लोगों ने इंद्रावती नदी बचाओ अभियान समिति का गठन किया। बस्तर चेंबर आफ कामर्स के लोगों ने भी अभियान में पूरी सक्रियता दिखाई है।

94 वर्षीय पद्मश्री धर्मपाल सैनी के नेतृत्व में मई 2019 में ओड़िशा सीमा से लेकर चित्रकोट जलप्रपात तक करीब 72 किलोमीटर की पदयात्रा इंद्रावती के तट से होकर की गई थी। बीते तीन चार साल में इंद्रावती बचाओ अभियान समिति द्वारा समय-समय पर पौधारोपण में सहयोग कर पर्यावरण एवं जलसंरक्षण को लेकर जन जागरूकता फैलाने का काम किया जा रहा है। समय-समय पर जल संरक्षण को लेकर विचार गोष्ठी का आयोजन भी किया जाता है।

Posted By: Ashish Kumar Gupta

छत्तीसगढ़
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