
कोरबा (नईदुनिया प्रतिनिधि)। छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी (सीएसईबी) के कोरबा पूर्व विद्युत संयंत्र के बंद हो चुके 50-50 मेगावाट की चार इकाइयों की 57 साल पुरानी 120 मीटर ऊंची चिमनी को भी धराशाई कर दिया गया। इसके साथ ही कोरबा पूर्व संयंत्र का अस्तित्व अब पूरी तरह समाप्त हो गया। स्थल पर केवल स्वीच यार्ड, प्रशासनिक भवन ही शेष रह गया है।
सोवियत संघ रूस के सहयोग से लगभग 24 करोड़ की लागत से स्थापित 50-50 मेगावाट की चार इकाइयों (200 मेगावाट) की गई थी, इसमें एक नंबर इकाई से पांच सितंबर 1966, दो नंबर इकाई से 16 मई 1967, तीन नंबर इकाई से 23 मई 1968 तथा चार नंबर इकाई 31 अक्टूबर 1968 को उत्पादन शुरू हुआ था। लगभग 52 वर्ष तक चली इकाईयों में नवीन तकनीक के इस्तेमाल का प्रयास भी विफल होने पर चिमनी से धुएं के साथ व्यापक पैमाने पर राख के कण वातावरण में घुलने व प्रदूषण फैलने पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने प्लांट बंद करने की सिफारिश कर दी थी। इस पर प्रबंधन ने चारों इकाइयों का नवीनीकरण कराने के लिए वर्ष 2003-04 में चार सौ करोड़ से भी ज्यादा राशि खर्च की थी।
नवीनीकरण के बाद सभी इकाइयां पूरी क्षमता के साथ विद्युत उत्पादन करने लगी, पर प्रदूषण के मापदंड के नियम कड़े होने पर इकाइयों का परिचालन में दिक्कत आने लगा। इस पर प्रबंधन ने अघोषित तौर पर 50-50 मेगावाट क्षमता वाली एक व दो नंबर इकाई को नवंबर 2017 में ही बंद कर दिया था। इन इकाइयों का उपकरण निकाल कर तीन व चार नंबर में लगा कर चलाया गया। अथक प्रयास के बाद भी एनजीटी से अनुमति नहीं मिलने पर प्रबंधन ने अंतत: इकाई बंद करने पर मुहर लगा दी। 14 सितंबर 2018 को संयंत्र की तीन व चार नंबर इकाई बंद कर दिया था। इसके साथ ही 200 मेगावाट का यह संयंत्र पूरी तरह बंद हो गया। इसके बाद संयंत्र के कबाड़ को बेचने की प्रक्रिया शुरू गई और लगभग 75 करोड़ रूपये में रायपुर की एक कंपनी को कबाड़ बेच दिया गया। इस कंपनी द्वारा लगभग पूरा सामान निकाल लिया गया है।
वहीं 120 मेगावाट की दो इकाइयाें का कबाड़ खरीदने वाले कोलकाता की कंपनी संयंत्र को डिस्मेंटल कर रही। सोमवार को 120 मेगावाट इकाइयां की 124 मीटर उंची चिमनी गिराई। इसके बाद 50-50 मेगावाट की इकाईयों को गिराने की प्रक्रिया शुरू की गई। मंगलवार को दोपहर 50-50 मेगावाट इकाइयों से निकलने वाले धुआं के लिए स्थापित 120 मीटर ऊंची चिमनी को भी धराशाई कर दिया गया। इसके साथ ही कोरबा पूर्व संयंत्र का अस्तित्व पूरी तरह समाप्त हो गया। बताया जा रहा है कि स्थल पर कुछ कबाड शेष रह गया है, उसे भी दो- तीन माह में हटा लिया जाएगा। इसके बाद पूर्व संयंत्र परिसर खाली मैदान हो जाएगा।