कोरबा । कहीं चौकड़ी के साथ पैर की थिरकन व ताली की ताल, तो कहीं उलटा घुमकर छकड़ी ताल में पांव व हाथों का तालमेल के साथ युवतियां व महिलाएं इन दिन प्रशिक्षण ले रहीं हैं। समूह में अप डाउन स्टेप के साथ डांडिया में डंडे या ताली की आवाज प्रशिक्षण सेंटरों में सुनाई देने लगी है। नवरात्र पर्व की तैयारी का यह नजारा इन दिनों शहर के विभिन्ना कालोनियों में दिख रहा है। सोमवार 26 सितंबर को घट स्थापना के साथ शुरू हो रही नवरात्र की तैयारी अंतिम चरण की ओर है। वहीं पंडालों में सांस्कृतिक रंग भरने के लिए पंडालों में गरबा व डांडिया की तैयारी उत्कर्ष पर है।

दुर्गा उत्सव में पूजा के साथ सांस्कृति उत्साह के तौर पर गरबा व डांडिया का विशेष महत्व होता है। आयोजन को लेकर युवक- युवतियों व महिलाओं का उल्लास देखा जा रहा है। सामूहिक तौर पर किए जाने वाले इस नृत्य में लोगों का जुड़ाव दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा। कोरोना काल के दौरान आयोजन स्थिगित करना पड़ा था। दो साल के लंबे अंतराल में ताल और लय को फिर से तरोताजा करने के लिए अभ्यास का सहारा लिया जा रहा है। इस बीच नई पीढ़ी के युवा भी आयोजन में भाग लेने के लिए तैयार हो चुके हैं। शहर में इन दिनों विभिन्ना् कालोनियों में सामूहिक नृत्य का पूर्वाभ्यास चल रहा है। रविवशंकर शुक्ल नगर, शारदा बिहार, मुड़ापार, निहारिका, सीएसईबी कालोनी आदि स्थानों पर प्रशिक्षक प्रशिक्षण दे रहे हैं। नये स्टेप के साथ अपनी जोड़ियों में डांडिया का पूर्वाभ्यास किया जा रहा। रविशंकर शुक्ल नगर में कपिलेश्वर नाथ महिला मंडल से जुड़ी महिलाओं का कहना है कि सामूहिक रूप से गरबा के स्टेप में पैरों की थिरकन व हाथ का उतार चढ़ाव के साथ हाव भाव का विशेष महत्व होता है। एक स्टेप पर पांच से दस मिनट डांस करने के पश्चपात स्टेप बदलना चाहिए। पूर्वाभ्यास में समय का ध्यान रखना आवश्यक है। इसके लिए प्रतिदिन पंडाल परिसर में घंटे डेढ़ घंटे डांस करने में दिक्कत नहीं होगी।

पारंपरिक परिधान के साथ नृत्य की तैयारी

नृत्य के हाव भाव के साथ ड्रेस कोड की तैयारी का विशेष महत्व होता है। पंचमी से उत्सव उत्कर्ष में आने लगता है। इस आशय से प्रशिक्षकों का कहना है कि तीन अलग-अलग ड्रेस कोड पर्याप्त है। सामूहिक रूप से ड्रेस कोड को प्रतिदिन परिवर्तन करते रहने से ग्रुप डांस में आकर्षण बना रहता है। चटखदार रंगों में गुजराती घुमर, लहंगा के अलावा पसंदीदा पहनावा सलवार सूट नृत्य के लिए बेहतर है।

पाश्चात्य संगीत की लय पर गरबा धुन की खोज

पंडाल परिसर को देवी जसगीतों के साथ म्यूजिकल रंग भरने गरबा व डांडिया के लिए इंटरनेट में गीतों की सर्चिंग की जा रही है। स्लो से लेकर फास्ट स्टेप तक बढ़ते क्रम में गीतों की झलकियों को डाउन लोड किया जा रहा है। देवी भजनों के अलावा फिल्मी व नान फिल्मी वे गीत जो डांडिया अथवा गरबा के रिदम पर हैं, उनका अलग-अलग स्टेप के लिए उपयोग किया जा रहा है। इसके अलावा बाजार में देवी भजन युक्त गीत भी उपलब्ध है।

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डांडिया हमारी अपनी परंपरा

नवरात्र में डांडिया व गरबा का आयोजन हमारी अपनी परंपरा है। पूर्वाभ्यास से डांस की तैयारी होने के साथ स्टेप की याद ताजी हो जाती है। बिना पूर्वाभ्यास पंडाल में जाने पर अधिक समय तक डांस करना मुश्किल होगा। कोरोना के कारण दो साल बाद डांडिया के लिए मौका मिला है। इस वजह से बच्चों और युवाओं में उत्साह है।

बेहतर प्रस्तुति के लिए अभ्यास जरूरी

स्टेप में नया पन लाने के लिए अभ्यास जरूरी है। प्रति वर्ष हम लोग सामूहिक डांस करते हैं ऐसे में साल दर साल नया स्टेप जुड़ने से डांस का मजा दोगुना हो जाता है। पूरे पंडाल में सामूहिक नृत्य को एक सामान स्टेप में प्रस्तुति देने से न केवल देखने वाले बल्कि प्रतिभागियों को भी अच्छा लगता है।

गरबा के बिना नवरात्र पर्व अधूरा

पिछले कई सालों से गरबा नृत्य में शामिल हो रहीं हूं। इसके बगैर नवरात्र अधूरा लगता है। प्रति दिन कुछ घंटे अभ्यास कर लेने से नये स्टेप की जानकारी मिलती है। साथ ही लंबे समय तक डांस करने की आदत बनती है। बचपन से ही इस नृत्य के प्रति आकर्षण रहा है। नए परिधान के साथ नृत्य की प्रस्तुति यही तो उत्सव का आनंद है।

नई पीढ़ी के बच्चों में भी उल्लास

आयोजन को लेकर युवाओं व बच्चों में भी उल्लास देखा जा रहा है। नवरात्र वर्ष में दो बार आता है, लेकिन शारदीय नवरात्र का अपना अलग उमंग होता है। इसमें देवी माता के पूजा के साथ पंडालों में गरबा डांडिया की धूम होती है, यह उत्सव के प्रति लोगों में उत्साह भरता है।

Posted By: Yogeshwar Sharma

छत्तीसगढ़
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