आकाश शुक्ला, रायपुर। Raipur News प्रदेश के शासकीय चिकित्सा संस्थानों में चिकित्सा व शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर लगातार समीक्षा तो होती रही है। लेकिन हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी राज्य सरकार ने मेडिकल कालेजों में निजी प्रैक्टिस को लेकर आज तक कोई पालिसी नहीं बना पाई। स्थिति यह है कि मेडिकल कालेजों में सेवाएं देने वाले अधिकांश चिकित्सक निजी प्रैक्टिस को प्राथमिकता देते हुए एनपीए (नान प्रैक्टिसिंग अलाउंस) भत्ता छोड़ देते हैं। सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार पंडित जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कालेज में ही अकेले 169 चिकित्सकों ने निजी प्रैक्टिस के लिए एनपीए छोड़ दिया। वहीं कई चिकित्सक जो एनपीए ले रहे हैं वह भी निजी प्रैक्टिस कर रहे हैं।

दोहरी नीति पर कोर्ट ने उठाए थे सवाल

बता दें राज्य सरकार की दोहरी नीतियों के चलते चिकित्सा शिक्षा व इलाज की गुणवत्ता को लेकर कोर्ट ने सवाल उठाए थे। मिली जानकारी के अनुसार सिम्स में एक बच्चे को इलाज ना मिलने से मौत को लेकर उनके स्वजन हाईकोर्ट पहुंचे। समस्या लोगों से जुड़ी थी तो यह मुद्दा जनहित याचिका में बदल गया। कोर्ट ने अमृतो दास को न्याय मित्र बनाकर स्वास्थ्य सेवाओं का अध्ययन कर रिपोर्ट सौंपने कहा था। रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट ने शासकीय अस्पतालों व मेडिकल कालेजों में इलाज की व्यवस्थाओं को सुनिश्चित करने निर्देश दिए थे।

चिकित्सकों ने दिया था शपथ पत्र

मामले में तत्कालीन स्वास्थ्य सचिव ने वर्ष 2015-16 में सभी चिकित्सकों से शपथ पत्र लिया था, जिसमें कुछ घंटे निजी प्रैक्टिस करने, शासकीय सेवाओं को प्राथमिकता देने की बात कही गई थी। इसे कोर्ट में जमा किया गया। वहीं निजी प्रैक्टिस को लेकर नीति बनाने पर चर्चा हुई थी। पर कुछ ना हो सका। राज्य में कांग्रेस सरकार आने के बाद शासन की तरफ से निजी प्रैक्टिस को लेकर नई पालिसी लाने पर विचार तो बना लेकिन यह भी ठंडे बस्ते में चली गई।

निजी प्रैक्टिस बंद करने यह चुनौती

चिकित्सा विशेषज्ञों की मानें तो एम्स जैसे केंद्रीय संस्थानों में निजी प्रैक्टिस का आप्शन नहीं है। लेकिन उन्हें अच्छा वेतन व भत्ता दिया जाता है। लेकिन राज्य सरकार में वेतन भत्ता कम है। ऐसे में निजी प्रैक्टिस बंद होने पर उनका नुकसान हो सकता है। इधर चिकित्सा समीक्षकों के अनुसार यदि निजी प्रैक्टिस बंद किया जाना मेडिकल कालेज में शिक्षा व चिकित्सा सेवा की गुणवत्ता के लिए बेहतर है। लेकिन चिकित्सकों को वह तमाम सुविधाएं देनी होगी, जो उन्हें दिया जाना जरूरी है।

मेडिकल कालेजों में मिलने वाला एनपीए

पद - भत्ता

असिस्टेंट प्रोफेसर - 14-16 हजार

एसोसिएट प्रोफेसर - 18-20 हजार

प्रोफेसर - 22-25 हजार

एम्स में मिलने वाला एनपीए

पद - भत्ता

असिस्टेंट प्रोफेसर - 25,000

एसोसिएट प्रोफेसर - 35,000

प्रोफेसर - 45,000

चिकित्सा शिक्षा सचिव पी दयानंद का कहना है कि निजी प्रैक्टिस को खत्म करने और आदर्श व्यवस्था स्थापित करने योजना पर काम चल रहा है। शासन स्तर पर इसकी लगातार समीक्षा की जा रही है। हमारा प्रयास है कि चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए और बेहतर व्यवस्था लागू हो।

चिकित्सा शिक्षा संचालक डा. विष्णु दत्त ने बताया कि नियमत एनपीए लेने वाला चिकित्स निजी प्रक्टिस नहीं कर सकता है। जो एनपीए नहीं लेते वह निजी प्रैक्टिस शासकीय सेवा अवधि के बाद कर सकते हैं। शासकीय सेवाओं मे होते हुए निजी अस्पताल नहीं संचालित कर सकते हैं।

प्रदेश कांग्रेस चिकित्सा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष डा. राकेश गुप्ता का कहना है कि मेडिकल कालेज चिकित्सा शिक्षा, शोध व इलाज के लिए महत्वपूर्ण है, जो निजी प्रैक्टिस के विकल्प व वर्तमान व्यवस्थाओं से संभव नहीं है। राज्य सरकार को निजी प्रैक्टिस बंद कर आदर्श व्यवस्था लागू करने की आवश्यकता है।

Posted By: Vinita Sinha

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