रायपुर। Nagar Ghade Column: बस्तर इलाके में नक्सलियों के हमले में जवानों की शहादत को याद करके श्रद्धांजलि देते ही नरम दिल लोगों की आंखें डबडबा जाती हैं। वे आक्रोश से भरकर कह उठते हैं कि आखिर कब तक हमारे जवान शहीद होते रहेंगे? जब हमारी सेना के जवान पड़ोसी देशों में घुसकर दुश्मनों के छक्के छुड़ा सकते हैं तो बस्तर से नक्सलियों को खदेड़ना इनके लिए कोई बड़ी बात नहीं है।
छत्तीसगढ़ में पूर्व सरकार के कार्यकाल में जब कांग्रेस के बड़े नेताओं पर हमला हुआ था, तब आक्रोश फूटा था। अब 22 जवानों की शहादत पर आम लोगों का आक्रोश फूट रहा है। वे मांग कर रहे हैं कि नक्सलियों को सबक सिखाया जाए, तभी पूरे प्रदेश में शांति का माहौल बनेगा। यदि सरकार नहीं जागी तो न जाने कितनी मां अपने बेटों को खोएंगी और कितनी सुहागिनें अपनी चूड़ियां तोड़ेंगी। आखिर क्यों खामोश है सरकार?
फेरे लेने में झंझट
ज्यादातर लोगों की यही सोच होती है कि शादी एक बार ही होनी है, सो इसका जितना आनंद ले सकें, ले लिया जाए। ऐसे परिवार के लोग अब दुखी नजर आ रहे हैं। पिछले साल कुछ परिवारों ने शादियां इसलिए टाल दी थीं कि कोरोना नियमों में ज्यादा लोगों को नहीं बुलाया जा सकता था। कुछ ने साधारण तरीके से विवाह कर लिया, लेकिन कुछ ऐसे थे, जो जिद पर अड़े थे कि धूमधाम से फेरे लेंगे।
अब उनकी फूटी किस्मत कहिए कि स्थितियां पिछले साल की तरह ही बन गई हंै। वर-वधू मिलाकर 50 लोग ही शामिल हो सकते हैं। नियमों की तलवार सिर पर लटकी है, बड़े परिवारों के समक्ष अब संकट आन खड़ा है कि फूफा के परिवार को बुलाएं या मामा, मौसी, ताऊ, चाचा के परिवार को? बार-बार गिनती कर रहे हैं, कुछ सूझ नहीं रहा कि रिश्तेदारी निभाएं या बचाएं?
मधुशाला में उमड़े बेबस और भूखे लोग
छत्तीसगढ़ के शहरों में लाकडाउन लगने और मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे आम भक्तों के लिए बंद होने से भक्तों को दिलीप कुमार पर फिल्माया गया वह गीत याद आ रहा है- 'मंदिर सूना, सूना होगा, भरी रहेगी मधुशाला।' राजधानी में जैसे ही लाकडाउन की घोषणा हुई, शराब दुकानों के बाहर लाइन लग गई। कुछ मदिराप्रेमी तो ऐसे थे, जो शराब दुकानों पर तैनात लठैत और पुलिस वालों के डंडे खाकर भी टस से मस नहीं हुए।
गरीबों के पास खाने के लिए भले पैसे न हों, लेकिन लाइन एक सप्ताह के लिए दारू खरीदने के लिए उमड़ पड़े। सड़क पर जाम लग गया। एक सज्जन बोले- पिछले साल इन्हीं शराब खरीदने वालों के पास खाने के लाले पड़े थे, हमारी संस्था ने भोजन के पैकेट्स बांटे थे। अब हमें अक्ल आ गई है, उन्हीं मजबूर, बेबस को खाना खिलाएंगे, जो शराबी न हों।
हे गाॅड, हे भगवान कहां है तू
जिनके बिना एक पल गुजरना मुश्किल था, जब कोरोना बीमारी ने उन्हें अपने आगोश में ले लिया तो सारे रिश्ते-नाते टूट से गए। अंतिम संस्कार में परिवार वाले भी नहीं पहुंचे। उन्हें लाश का अंतिम दर्शन करना भी नसीब नहीं हुआ। कई दिन मंदिरों में बिना भक्त के पूजा हुई, मस्जिदों में नमाज की महज रस्म अदायगी हुई, चर्चों में सिर्फ पादरियों ने आराधना की। गुरुद्वारों में सेवादारों ने ही अरदास की।
जिन धर्मस्थलों पर हजारों की भीड़ होती थी, वहां ताले लटके रहे। ऐसे बुरे, मनहूस दौर में हर किसी की जुबां से एक ही शब्द निकल रहा है कि भगवान आखिर कहां है तू? कहां छुपकर बैठा है? बुद्धिजीवियों का कहना है कि बाजार में सब्जी-भाजी खरीदने के लिए भीड़ का रेला उमड़ रहा है। किसी को परवाह नहीं, ऐसे में कोरोना वायरस तो फैलेगा ही, इसमें भगवान का क्या दोष?
Posted By: Azmat Ali
नईदुनिया ई-पेपर पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे
नईदुनिया ई-पेपर पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे
- #Raipur Column
- #Raipur Reporters Column
- #Dainik Jagran Column
- #Naidunia Column
- #Naidunia Raipur Reporter Column
- #Nagar Ghade Column
- #chhattisgarh news in hindi
- #raipur news
- #chhattisgarh news :