रायपुर। कवर्धा जिले के तरेगांव जंगल के एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय में रैगिंग की घटना राज्य की श्ौक्षणिक व्यवस्था को कलंकित करने वाली है। इसने प्रदेश के आवासीय विद्यालयों व छात्रावासों के कुप्रबंधन को उजागर कर दिया है। यह विचारणीय है कि 11वीं के छात्र छठवीं के छात्रों के बाल बलपूर्वक काटते रहे। उन्हंे क्रूरता से पीटते रहे और छात्रावास के लिए उत्तरदायी अधीक्षक, प्राचार्य अथवा अन्य शिक्षकों को इसका पता तक न चला, भला यह कैसे संभव है।

सीनियर छात्रों ने घटना का वीडियो बनाया और उसे इंटरनेट पर प्रसारित कर दिया, फिर भी प्रबंधन की तंद्रा न टूटी तो इससे अधिक लज्जाजनक स्थिति और क्या होगी। रैगिंग की यह घटना प्रदेश के अन्य छात्रावासों की व्यवस्था पर मंथन के लिए प्रेरित करती है। यहां छात्रावासों में बीच-बीच में ऐसी घटनाएं होती रही हैं, जिनसे सरकार को शर्मिंदगी उठानी पड़ी है।

एक दशक पूर्व कांकेर के झलियामारी में एक ऐसी घटना हुई थी, जिससे देश के समक्ष राज्य का सिर झुक गया था। यहां के कन्या छात्रावास में रक्षक ही मासूम छात्राओं के भक्षक बन गए थे। महीनों तक नाबालिग बच्चियों का यौन शोषण किया गया। राज्य में आदिमजाति कल्याण विभाग प्री मेट्रिक व पोस्ट मेट्रिक छात्रावासों का संचालन करता है। आदिवासी क्षेत्रों में बालकों व बालिकाओं के लिए आवासीय विद्यालय संचालित किए जा रहे हैं।

केंद्र सरकार के जवाहर नवोदय विद्यालय व एकलव्य आदर्श विद्यालयों में भी आवासीय शिक्षा दी जा रही है। इन विद्यालयों में प्रतिभावान विद्यार्थियों को ही प्रवेश मिल पाता है। आदिवासी क्षेत्रों के अधिकांश बच्चे छात्रावासों या आवासीय विद्यालयों में ही अध्ययरत हैं। यहां निर्धारित मेन्यू के अनुरूप भोजन न मिलने की शिकायतें आम हैं। पतली दाल, सस्ती और खराब सब्जियां परोसी जाती हैं। बच्चों का शोषण किए जाने, शिक्षकों द्वारा उनसे अपने खेतों में मजदूरी कराने, बीमार पड़ने पर समय पर उपचार न कराने आदि समाचार भी अक्सर मिलते रहते हैं। यह तो स्वाभाविक है कि ऐसी घटनाओं से संवेदनशील जनमानस को पीड़ा पहुंचती है।

छात्रावासों के संचालन की सुव्यवस्थित प्रक्रिया में सेंध क्यों लगती है, इस पर विचार किए जाने की आवश्यकता है। इन संस्थाओं के संचालन का उत्तरदायित्व जिन लोगों पर है, उनकी अपनी भी समस्याएं कम नहीं हैं। उनका अधिकांश समय तो राशन, सब्जी, ईंधन की व्यवस्था में ही निकल जाता है। छात्रावासों की व्यवस्था अधीक्षक ही करते हैं। छात्रावासों, आश्रम शालाओं व आवासीय विद्यालयों में पालकों की निगरानी समितियों का गठन किया गया है।

आदिमजाति कल्याण विभाग, शिक्षा विभाग तथा जिला प्रशासन के अधिकारी भी निगरानी रखते हैं। यह देखा जाना चाहिए कि छात्रावासों के प्रबंधन में लगे अधिकारियों के प्रशिक्षण में कहां कमी रह गई है। उन्हें और संवेदनशील तथा उत्तरदायी बनाने की आवश्यकता है। आशा की जानी चाहिए कि भविष्य में इस तरह की घटनाएं न हों, इसके लिए ठोस कार्ययोजना बनाकर काम किया जाएगा।

Posted By: Pramod Sahu

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