रायपुर। चुनावी वर्ष में राजनेताओं का सड़क पर उतरना अस्वभाविक नहीं है। बुधवार को प्रदेश के शीर्ष भाजपा नेता और कार्यकर्ता भी सड़क पर उतरे। मोर आवास मोर अधिकार, रोक के रखे हे कांग्रेस सरकार के नारे के साथ विपक्ष ने जिला स्तरीय प्रदर्शनों के बाद विधानसभा घेराव की घोषणा कर रखी थी। प्रशासनिक तैयारियों के कारण भाजपाइयों का विधानसभा पहुंचना संभव नहीं हो सका और नारेबाजी करके ही लौट जाना पड़ा।

प्रदर्शन का यह प्रभाव अवश्य रहा कि कई विधायक भी विधानसभा की कार्यवाही में समय से नहीं पहुंच सके। आंदोलन के कारण पूरा सरकारी तंत्र अन्य कामकाज छोड़कर स्थिति नियंत्रण में जुटा रहा। आम जनता अवश्य परेशान हुई। पुलिस द्वारा रास्ते बंद किए जाने के कारण हजारों की संख्या में परीक्षार्थी और उनके अभिभावक भटकते रहे।

बच्चों को समय से परीक्षा केंद्रों तक पहुंचाना और वहां से लाना चुनौतीपूर्ण बना रहा। इसी तरह दुर्ग-भिलाई, बिलासपुर, धमतरी और बलौदा बाजार सहित अन्य जिलों से आने-जाने वाले लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। आंदोलनकारी भाजपा के नेताओं का आरोप है कि कांग्रेस सरकार की गलत नीति के कारण 16 लाख गरीबों को प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिल सका है। इसके जवाब में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने लाभार्थियों की उस सूची की मांग की है जिसके आधार पर भाजपा ने यह आंदोलन किया है।

विधानसभा में मंगलवार को ही मुख्यमंत्री ने आंकड़े पेश कर दिए थे जिसके अनुसार भाजपा के वर्ष 2015 से 2018 के 271 करोड़ की तुलना में कांग्रेस के वर्ष 2019 से 2023 के कार्यकाल में आठ गुना अधिक 2,116 करोड़ रुपये का अंशदान दिया गया। इसी अवधि में 1,242 करोड़ की तुलना में 2.2 गुना अधिक 2,763 करोड़ रुपये खर्च हुए तथा 19 हजार की तुलना में लगभग पांच गुना अधिक 93 हजार मकान बने।

पीएम आवास से वंचित 16 लाख लोगों वाली सूची की तरह ही यह भी आंकड़ा ही है जिससे आम आदमी सिर्फ भ्रमित हो सकता है कि जब राज्य सरकार ने आठ गुना अंशदान किया तो सिर्फ 2.2 गुना अधिक ही क्यों खर्च हुए। पक्ष और विपक्ष के दावे अलग-अलग हैं। इस पर चर्चा और विवेचना के साथ जनहित में कार्य करने के लिए ही लोकतांत्रिक व्यवस्था में राज्य स्तर पर विधानसभा की व्यवस्था है। किसी भी मंत्री द्वारा विधानसभा में गलत जानकारी दिए जाने पर अवमानना की कार्रवाई का प्रविधान है।

विधानसभा अध्यक्ष और राज्यपाल से उम्मीद की जाती है कि निष्पक्षता के साथ व्यवस्था का अनुपालन कराएं। फिर सड़क पर उतरना कहां तक जनहितकारी है। विपक्ष को मंथन करना चाहिए कि सत्र के दौरान विधानसभा का घेराव करके व्यवस्था बाधित किए जाने से जनता को क्या प्राप्त हुआ। सत्ता पक्ष को भी विचार करना होगा कि भाजपा नेताओं के प्रश्नों और आशंकाओं पर संतुष्टिदायक उत्तर देने में क्यों विफल रहे।

Posted By: Pramod Sahu

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