Publish Date: | Tue, 24 Jan 2023 12:59 PM (IST)
रायपुर। नगर निगम द्वारा बिल्डर्स से ईडब्ल्यूएस कालोनी बनाने के लिए जमीन तो ली जा रही है, लेकिन इनकी रजिस्ट्री ही निगम नहीं करवा पा रहा है। हालात ऐसे हैं कि 2013 तक निगम को मिली चार हेक्टेयर से ज्यादा जमीन की अब तक निगम रजिस्ट्री नहीं करवा पाया है। बिना रजिस्ट्री करवाए ही जमीन का उपयोग निगम कर रहा है। कायदे से जमीन निगम के नाम से दर्ज होनी चाहिए, लेकिन अब भी बिल्डरों के नाम पर दर्ज है और उसका उपयोग निगम कर रहा है। इसके पीछे मूल कारण है मुआवजा तय नहीं होना। दरअसल, निगम को 2013 के पहले बिल्डरों को जमीन का मुआवजा देना पड़ता था, जिसके बाद ही रजिस्ट्री की प्रक्रिया होती थी। अब तक मुआवजे की राशि ही तय नहीं हो पाई है, जिसकी वजह से लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना का भी लाभ नहीं मिल पा रहा है।
2013 के बाद एक रुपये की दर से जमीन
रजिस्ट्री के खर्च से बचने के लिए निगम द्वारा नियम को बदलते हुए 2013 में नया नियम लाया गया। इसके अनुसार बिल्डरों को मुआवजा देने की जगह एक रुपये प्रति वर्गफीट की दर से जमीन ली जाएगी और रजिस्ट्री के खर्च से भी निजात मिल जाएगी।
15 प्रतिशत जमीन छोड़ने का है नियम
निगम सीमा क्षेत्र में कोई भी बिल्डर प्रोजेक्ट लाता है, तो गरीब तबके के लोगों के लिए प्रोजेक्ट के कुल क्षेत्रफल का 15 प्रतिशत जमीन छोड़ना अनिवार्य है। उस जमीन पर निगम की ओर से आवास का निर्माण करवाकर गरीबों दिया जाता है।
टुकड़ों में भी मिल रही है जमीन
2013 से पहले तक जिस जगह बिल्डर का प्रोजेक्ट है, उसी जगह जमीन दिया जाना अनिवार्य था। नए नियम के अनुसार बिल्डर शहर में कहीं भी 15 प्रतिशत जमीन दे सकता है। इसकी वजह से भी रजिस्ट्री में दिक्कत आ रही है।
रायपुर नगर निगम के नगर निवेशक बीआर अग्रवाल ने कहा, दो से चार प्रतिशत जमीन की रजिस्ट्री मुआवजे के कारण नहीं हो पाई है, लेकिन वह जमीन हमारे पास ही है। कुछ जगह तो निर्माण भी शुरू कर दिया गया है। शेष जगह प्रोजेक्ट चल रहे हैं। 2013 के बाद नियम बदले हैं, अब रजिस्ट्री का खर्च काफी कम आता है।
फैक्ट फाइल
- 185 प्रकरणों में निगम को मिली जमीन
- 107 हेक्टेयर भूखंड वर्ष-2008 से अब तक मिले
- 70 हेक्टेयर में करा चुके हैं निर्माण कार्य
- 40 हेक्टेयर के प्रोजेक्ट अब भी लंबित
Posted By: Ashish Kumar Gupta