आकाश शुक्ला, रायपुर। 45 वर्षों में समृद्ध चित्रकला और ग्राफिक्स प्रिंट मेकिंग के हस्ताक्षर बनें राजधानी के प्रो. वी नागदास (65) हजारों युवा कलाकारों का भविष्य गढ़ चुके हैं। अब उन्हें केंद्र ने देश को कल्चरल हब बनाने का जिम्मा सौंपा है। कलाकार का जीवन कला को समर्पित होता है, यह इस बात का एहसास कराने के लिए काफी था कि राष्ट्रीय कला अकादमी नई दिल्ली में अध्यक्ष का पदभार ग्रहण कर घर लौटे नागदास अपनी उस चित्रकारी को रूप दे रहे थे, जिसे डेढ़ वर्ष पहले उन्होंने केनवास पर उकेरना शुरू किया था। केरल के साधारण किसान परिवार के जन्मे प्रो. नागदास अपने अब तक के अपने सफर को संघर्षों से भरा इसलिए नहीं कहते, क्योंकि कला साधना को उन्होंने जीवन समर्पित कर दिया। इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ में 37 वर्षों तक सेवाएं देते हुए हजारों प्रतिभाएं दी।
नईदुनिया से विशेष बातचीत में प्रो. नागदास ने कहा कि किसी राज्य या देश को तब तक कल्चरल हब नहीं बनाया जा सकता है, जब वहां के कला और कलाकारों को सही पहचान और सम्मान ना मिले। इसके लिए जरूरी है कि हम गांव और स्कूलों में नींव तैयार करें। जमीनी स्तर पर कलाकारों की पहचान और सही प्रशिक्षण देकर उन्हें मंच प्रदान करें। इसके लिए राष्ट्रीय ललित कला अकादमी जल्द ही योजना तैयार करेगी। उन्होंने कहा कि बहुत से कलाकार हैं, जिन्होंने कला को जिंदगी दे दी, लेकिन ना उन्हें पहचान मिला ना पैसा। अकादमी ऐसे कलाकारों को खोजकर सम्मान दिलाएंगी। प्रयागराज, अहमदाबाद, गुवाहटी, पुणे, तिरुपति व राजस्थान में रिजनल सेंटर की स्थापना की जाएगी।
सामाजिक विषयों को केनवास पर उकेरी
प्रो. नागदास ने बताया कि उनकी चित्रकारी सामाजिक व राजनीतिक विषयों से प्रेरित रही। ग्राफिकल पेंटिंग से सामाजिक मुद्दों को उकेरने का उद्देश्य लोगों को कला से जोड़कर सामाजिक स्थितियों से अवगत कराना है। कला के क्षेत्र में ना सिर्फ उन्हें बल्कि खैरागढ़ विश्वविद्यालय में सेवाएं देने के दौरान विभाग को 700 से अधिक राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय अवार्ड मिले। उन्होंने कहा कि कई कलाकार होते हैं जिन्हें जन्म से हुनर मिलता है। लेकिन आज आप अपनी पसंद से प्रशिक्षण के माध्यम से कला के किसी भी क्षेत्र में पारंगत होकर भविष्य बना सकते हैं।
राज्य की प्रतिभाओं को आगे लाने की जरूरत
प्रो. नागदास ने कहा कि राज्य की कला-संस्कृति बेहद समृद्ध है। यहां संभावनाएं तो अधिक है, लेकिन सरकार ने कभी इसपर बेहतर ध्यान ही नहीं दिया। खैरागढ़ विश्वविद्यालय यहां से अधिक बाहर के लाेग आ रहे। जबकि हमें ऐसा सिस्टम तैयार करना चाहिए। जिससे राज्य की प्रतिभाओं को भी प्रशिक्षण देकर आगे लाया जा सके। राजनीति से दूर इस दिशा में सही काम किया जाए तो यहां के कलाकार राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय स्तर और अधिक नाम पा सकेंगे। राज्य सरकार की मदद से हम इसपर काम करना चाहेंगे।
37 वर्षों तक खैरागढ़ विश्वविद्यालय में दी सेवाएं
प्रो. नागदास ने बताया कि वर्ष-1982 में कालेज आफ फाइन आर्ट्स त्रिवेंद्रम, केरल से चित्रकला में राष्ट्रीय डिप्लोमा प्राप्त किया। 1984 में विश्वभारती विश्वविद्यालय शांति निकेतन से ग्राफिक कला में पोस्ट डिप्लोमा और प्रो. सनत कर के मार्गदर्शन में 1986 तक राष्ट्रीय छात्रवृत्ति के साथ व्यावहारिक शोध जारी रखा। इस बीच वर्ष-1986 में व्याख्याता के पद पर नियुक्त होने के बाद 37 वर्षों तक इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ में सेवाएं देते हुए हजारों युवाओं का भविष्य संवारा। हाल ही में विश्वविद्यालय के दृश्य कला संकाय के डीन और ग्राफिक्स विभाग के प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त हुए।
Posted By: Vinita Sinha
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