रायपुर। महिला आयोग के एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जब उद्घाटन करने आए तो उन्हें पौधा भेंट किया गया। पौधे की खासियत के बारे में कोई नहीं जानता था। जब मुख्यमंत्री ने स्वयं उस पौधे की विशेषता बताई तो महिलाएं आश्चर्यचकित हो गईं और मुख्यमंत्री के प्रकृति प्रेम और उनकी अद्भुत जानकारी की खूब प्रशंसा की। मुख्यमंत्री ने जब महिलाओं से कहा कि परिवार में कोई यदि नशा करने का आदी हो चुका हो तो इस पौधे की पत्तियों को पीसकर प्रतिदिन पिलाएं, धीरे-धीरे नशे की लत छूट जाएगी। मुख्यमंत्री की इस नसीहत को सुनकर अनेक महिलाएं उस पौधे का नाम जानने को उत्सुक हो उठीं। चूंकि यह नसीहत मुख्यमंत्री ने जाते जाते दी थी, इसलिए हड़बड़ी में कोई पौधे के बारे में पूछ भी नहीं सकीं। बाद में महिलाएं फुसफुसाने लगीं कि हर घर में यह पौधा दिया जाए, ताकि घर के मर्दो की नशे की आदत छूट जाए।

काहे का नियम, जनता दुखी

विधानसभा घेरने के लिए हुए प्रदर्शन से किस पार्टी को फायदा और किसे नुकसान होगा, यह तो कहा नहीं जा सकता, लेकिन सुबह से शाम तक करीब 10 घंटे आम लोग बहुत ज्यादा परेशान हुए। घंटों लोग जाम में फंसे रहे। विधानसभा मार्ग के स्कूल या तो बंद रहे या बच्चों को कई किलोमीटर घूमकर जाना पड़ा। ज्यादातर चौक-चौराहों पर आम लोग नेताओं और अधिकारियों को कोसते नजर आए। कुछ दिनों पहले ही नियम बनाया गया कि प्रदर्शन केवल नवा रायपुर में ही किया जाएगा, ताकि शहर में जनता तंग न हो। इन नियमों की धज्जियां खुलेआम उड़ीं। कई मुख्य मार्ग बंद होने से जनता त्रस्त नजर आई। लोगों का कहना था कि जब धरना-प्रदर्शन स्थल निर्धारित कर दिया गया है तो अनुमति कैसे दी गई? क्या बिना अनुमति के ही प्रदर्शन किया गया? यदि ऐसा ही होना है तो फिर आम जनता पर नियम थोपने का क्या औचित्य है?

दिव्यांग भी जीत सकते हैं जिंदगी की जंग

दिव्यांग बच्चे अपने आपको कमजोर न समझें, अपनी किसी एक खूबी पर फोकस करें और जोश, लगन और उमंग से आगे बढ़ते जाएं। एक दिन कामयाबी कदम चूमेगी। कुछ ऐसी ही प्रेरणा बच्चों को संस्कृति विभाग के संचालक विवेक आचार्य ने दी। बच्चों का हौसला बढ़ाने अपने एक रिश्तेदार का उदाहरण दिया कि दिव्यांग होते हुए भी उसने अपनी एक विशेष पहचान बनाई। आज उनके नेतृत्व में अनेक युवा पीएचडी कर रहे हैं। उनसे प्रेरणा ले रहे हैं। कभी भी हिम्मत न हारें और आगे बढ़ते जाएं। दिव्यांग बच्चे अपने बीच आए अधिकारी की बातों से अत्यंत प्रभावित नजर आए। जब प्रशिक्षकों ने बच्चों को मूर्ति बनाने की कला सिखाई तो प्रेरित होकर बच्चों ने मूर्ति निर्माण कला सीखने में विशेष रुचि ली। स्कूल के प्रबंधकों की यह कोशिश निश्चित ही अनेक दिव्यांगों के जीवन को रोशन करेगी। बस जरूरत है कि स्कूल के प्रबंधकों का हौसला कायम रहने की।

खाली-खाली सभागार, खाली कुर्सियां

कुछ साल पहले तक संस्कृति विभाग के सभागार और मुक्तांगन में होने वाले छोटे-से भी आयोजन में दर्शक, श्रोता उमड़ पड़ते थे। अब कितना भी बड़ा आयोजन हो, दर्शकों का टोटा रहता है। गत दिनों शास्त्रीय नृत्य, गायन और कला पर हुई गोष्ठी में चंद दर्शक ही जुटे। ऐसा नहीं है कि कद्रदान कम हो गए, कला के रसिकजनों की कमी नहीं है, लेकिन लोगों को पता ही नहीं चलता। चंद लोगों को कार्ड बांटकर यह समझा जाता है कि भीड़ जुट जाएगी, लेकिन जब चंद लोग आते हैं, तब समझ में आता है कि कला प्रेमियों को मालूम ही नहीं था। एक समय दर्शकों को बाहर खड़े होकर कार्यक्रम देखने के लिए मजबूर होना पड़ता था। अब कोई कार्यक्रम हो तो कलाकार, आयोजक निराश होते हैं, जबकि दूसरी ओर हजारों रुपये के टिकट खरीदकर अन्य आयोजन को देखने युवा उमड़ पड़ते हैं, क्योंकि वहां तमाम तामझाम किया जाता है।

Posted By: Ashish Kumar Gupta

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