रायपुर(नईदुनिया प्रतिनिधि)। Somvati Amavasya Vat Savitri Vrat: हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार वट सावित्री व्रत पूजा ज्येष्ठ अमावस्या पर करने का विधान है। इस बार अमावस्या तिथि दो दिन होने से श्रद्धालुओं में संशय की स्थिति है कि किस दिन वट सावित्री की पूजा की जाए। रविवार और सोमवार को अमावस्या तिथि होने से इस बार वट सावित्री व्रत का महत्व बढ़ गया है, क्योंकि दूसरे दिन सोमवती अमावस्या का संयोग बन रहा है। ऐसा संयोग कम होने से श्रद्धालु असमंजस में हैं कि किस दिन व्रत रखा जाए। महामाया मंदिर के पंचांग के अनुसार भले ही 30 मई को सोमवती अमावस्या का संयोग बन रहा हो लेकिन वट सावित्री व्रत पूजा 29 मई को करना श्रेष्ठ होगा।
महामाया मंदिर के पुजारी पं.मनोज शुक्ला के अनुसार श्रद्धालु यह समझते हैं कि हर तीज त्यौहार व्रत को उदयातिथि में ही मनाया जाना जाता है। जिस तिथि में सूर्योदय होता है उसमें व्रत करना चाहिए लेकिन एेसा नहीं है। जिस समय का जो व्रत होता है उस तिथि की व्याप्ति देखी जाती है, न कि सूर्य की उदय तिथि। हर व्रत का समय काल अलग अलग होता है। व्रत कई प्रकार के होते है। जैसे सौरव्रत - सूर्योदय से, चंद्रव्रत - चंद्र उदय से, प्रदोष कालिक - सूर्यास्त के समय से, निशीथ कालिक - मध्य रात्रि में और पर्व कालिक - उत्सव के रूप में वर्ष में एक बार मनाया जाता है।
पूर्णिमा का व्रत
पूर्णिमा का व्रत तब करना चाहिए जब चंद्रोदय के समय पूर्णिमा हो, सूर्योदय से पूर्णिमा व्रत का कोई मतलब नहीं।
गणेश चतुर्थी
गणेश चतुर्थी व्रत प्रायः हर बार तृतीया तिथि में ही आता है, लेकिन चंद्रोदय के समय चतुर्थी ही रहती है। सूर्योदय से इस व्रत का कोई मतलब नहीं है।
प्रदोष व्रत
प्रायः हर बार द्वादशी तिथि में ही आता है लेकिन प्रदोष(सांयकाल) में त्रयोदशी ही रहती है। सूर्योदय से इस व्रत का कोई मतलब नहीं है।
तिथि में अंतर का कारण
पं.शुक्ला के अनुसार अलग-अलग राज्यों के पंचांगों में अक्षांश, रेखांश, देशांतर, बेलांतर, सूर्य, चंद्र उदय और अस्त समय में अंतर होने से तिथि दो दिन पड़ती है। जो जिस क्षेत्र का निवासी हो उसे उस क्षेत्र या स्थान से प्रकाशित पंचांग का अनुसरण करना चाहिए।
अनेक पंचांगों में 29 को अमावस्या
निर्णयामृत एवं भविष्य पुराण के अनुसार वटसावित्री व्रत ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी , चतुर्दशी एवं अमावस्या पर करने का विधान बताया गया है। लोकाचार के अनुसार छत्तीसगढ़ सहित देश के अन्य क्षेत्रों में ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को ही व्रत करने की परंपरा है। निर्णय सिंधु में वर्णित है कि यदि अमावस्या दो दिन हो अर्थात प्रथम दिन यदि सूर्योदय के उपरांत 18 घटी से पूर्व अमावस्या लग जाए तो चतुर्दशी युक्त अमावस्या में ही व्रत करना चाहिए। इसी तरह श्री काशी विश्वनाथ पंचांग, श्रीदेव पंचांग तथा धर्मसिंधु के अनुसार यह व्रत 29 मई रविवार को करना श्रेष्ठ है। 30 मई सोमवार को सोमवती अमावस्या पर स्नान दान, श्राद्ध अमावस्या और शनिदेव की जयंती मनाना उचित है।
सूर्य-चंद्र के व्रत
एकादशी - सूर्योदय कालिक
शरद पूर्णिमा -चंद्रोदय कालिक
रामनवमी - मध्याह्न व्यापिनी
जन्माष्टमी - आधी रात की अष्टमी
सूर्य सप्तमी - सूर्योदय कालिक
महाशिवरात्रि - निशीथ काल में
दीपावली - निशीथ काल में
Posted By: Ashish Kumar Gupta
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