रायपुर। आजकल युवाओं में टैटू को लेकर काफी क्रेज है। टैटू उनका शौक ही नहीं है, बल्कि उससे वे गहरा भावनात्मक लगाव भी रखते हैं। प्रेम, विरह, भक्ति, मातृत्व प्रेम, प्रकृति प्रेम और अन्य भावनाओं को व्यक्त करने के लिए अपने शरीर पर टैटू बनवाते हैं। अपनी भावना को व्यक्त करने के लिए कुछ लोग चाहते हैं कि वे टैटू बनाने की कला भी सीख लें।
ऐसे लोगोंं का यह सपना साकार करने के लिए कंकालीपारा में आनंद समाज वाचनालय सभाकक्ष में 39 कलाकारों के साथ टैटू प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत हुई। ट्रेनिंग के लिए तृतीय लिंग समुदाय के 10, 19 पुरुष, और आठ महिला टैटू कलाकार पहुंचे। प्रशिक्षण में उन्हें टैटू की उपयोगिता, इसके कलात्मक इतिहास और आय के सृजन में निपुणता के विभिन्न आयामों की जानकारी दी गई।
टैटू मास्टर शैली उर्फ शैलेंद्र श्रीवास्तव ने डिजाइन चयन व टैटू के दौरान अपनाए जाने वाली सावधानियों के विषय में भी विस्तार से जानकारी दी। इन कलाकारों को हर व्यक्ति तक टैटू की पहुंच निर्धारित करने में सोशल मीडिया के बेहतर उपयोग के संबंध में भी अवगत कराया गया।
टैटू प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ, टैटू मास्टर शैली दे रहे 39 कलाकार को प्रशिक्षण
8 जून तक इस प्रशिक्षण का आयोजन प्रतिदिन प्रातः 8 से 11 बजे तक होगा। कौशल उन्नयन कार्यक्रम के तहत संचालित प्रशिक्षण के पहले दिन छत्तीसगढ़ योग आयोग के अध्यक्ष ज्ञानेश शर्मा ट्रेनी टैटू कलाकारों से मिलें। उन्होंने कहा कि रायपुर में संचालित प्रशिक्षण कार्यक्रम से न केवल कलाकारों के कला में निखार आएगा, बल्कि स्वरोजगार से जुड़े कलाकारों के आमदनी भी बढ़ेगी।
प्राचीन आर्ट है टैटू
टैटू मास्टर शैली नाम से प्रसिद्ध शैलेंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि टैटू और गोदना में सिर्फ शब्दों का फर्क है आर्ट की विधि एक समान है और आपस में जुड़ी हुई है। टैटू विश्व के प्राचीनतम आर्ट में से एक है। छत्तीसगढ़ में इसे गोदना के नाम से भी जाना जाता है। "टैटू" डच शब्द है जिसका हिंदी में अर्थ होता है शब्द। उन्होंने बताया कि पहले बांस के बंबुओं से शरीर पर टैटू बनाया जाता था।
रंग के लिए उस समय पत्तियों और भेलवा के फलों का उपयोग करते थें। क्रमिक परिवर्तन के बाद फिर सुई से टैटू बनाया जाने लगा। समय के साथ विधि और डिजाइन में परिवर्तन आता रहा। आज आधुनिक समय में टैटू मशीने से बनाना जा रहा है। छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा गोदना बैगा, रामनामी समाज और बस्तर अंचल के जनजातियों में देखने को मिलता है।
टैटू से जुड़ी है जनजातियों की आध्यात्मिक मान्यता
टैटू आर्टिस्ट शैली ने बताया कि वे जनजाति, विशेषकर बस्तर के इलाकों में गोदना (टैटू) के बारे में जानने छह महीने अध्यन किया। बैगा, गोंड जाति से बातचीत करने के बाद उन्होने बताया कि जनजातियों के लोग का मानना है कि गोदना हमारी विशेष पहचान है। जब शरीर की त्याग कर आत्मा परलोक जाती है तो पृथ्वी से निशानी के रूप में गोेदना ही लेकर जाती है। वर्तमान में युवा टैटू को भावनात्कता के रूप में देख रहे हैं, प्रेेम, विरह, भक्ती, मातृत्व प्रेम, प्रकृति प्रेम और अन्य भावनाओं को व्यक्त करने के लिए युवा अपने शरीर पर टैटू बनवा रहे हैं।
20 वर्ष की उम्र में टैटू बनाना शुरू किया, पचास हजार से ज्यादा टैटू बना चुके है :
टैटू मास्टर शैली मूलत: राजनांदगांव जिले आने वाले ने 20 वर्ष पहले जब वे 28 वर्ष के थे तो टैटू बनाना शुरू किया। तब उनकी शादी हो चुकी थी। उन्होंने ने बताया कि मैं शुरू से कला में रूझान था। रोजी राेटी के निकल सके इसके निए टैटू बनाने का काम शुरू किया।
इस दौरान कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। रोड के किनारे ही मैं छतरी लेकर बैठ जाता था। रातभर बाहर रहना पड़ता था। फिर मैंने किराये की दुकान पर टैटू शाप शुरू किया। आगे बढ़ने की चाह ने मुझे मुबंई खीच ले गई। मुबंई के मेरा एक शाप जो अच्छा चल रहा है। उन्होंने बताया कि वे अब तक पचास हजार से ज्यादा टैटू बना चुके हैं।
Posted By: Ashish Kumar Gupta