रायपुर। Vaikuntha Chaturdashi 2020 : कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी यानी बैकुंठ चतुर्दशी की पावन बेला में भक्तों ने रविवार को अलसुबह भगवान विष्णु और भगवान शंकर की आराधना करके खारुन नदी में दीपदान किया। दीप प्रज्ज्वलित करके उसे दोना-पत्तल में रखकर नदी में प्रवाहित किया। दोनों इष्टदेवों से जाने-अंजाने हुए पापों से मुक्ति देने की कामना की। रविवार को सूर्योदय से पहले ही श्रद्धालु महादेव घाट पहुंचने लगे थे। हटकेश्वर महादेव का दर्शन करके श्रद्धालुओं में दीपदान करने के प्रति आस्था छलक पड़ी। नदी की धारा में दीप प्रवाहित होने का अदभुत नजारा महादेव घाट में दिखाई दिया। घाट के किनारे दूर दूर तक दीपों की लड़ी जगमगा उठी।
1001 दीप नदी में प्रवाहित
प्रांतीय अखंड ब्राह्मण समाज के नेतृत्व में पुरुष, महिलाओं में दीपदान करने के प्रति अगाध श्रद्धा का भाव छाया था।
प्रांतीय अध्यक्ष पंडित योगेश तिवारी ने बताया कि कार्तिक मास की बैकुंठ चतुर्दशी पर स्नान और दीपदान का शास्त्रों में विशेष महत्व है। इस मान्यता के चलते छत्तीसगढ़ प्रांतीय अखंड ब्राम्हण समाज के सदस्यों ने दीपदान करने के लिए जागरूक किया था।
इस अपील का असर हुआ और सदस्य दीपदान करने पहुंचे। कड़कड़ाती ठंड के बावजूद खारुन नदी तट पर श्रद्धालु सुबह छह बजे से दीपदान के लिए पहुंचने लगे थे। कई सदस्यों ने नदी में ही स्नान करके भोलेनाथ का दर्शन करके मन्नत मांगी और दीपदान किया। भक्तों ने 1001 दीप नदी में प्रवाहित किए।
दीप दान से यज्ञ के बराबर मिलता है पुण्य
प्रांतीय अखंड ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष पंडित योगेश तिवारी ने बताया कि कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी पर नदी में दीपदान करने से कई यज्ञ करने के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है। जो लोग पूरे कार्तिक महीने सुबह उठकर स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, उनके सारे मनोरथ पूरे होते हैं।
दीपदाम करने वालों में प्रांतीय अखंड ब्राह्मण समाज की कार्यकारी अध्यक्ष भारती किरण शर्मा, प्रदेश सचिव प्रीति शुक्ला, विप्र जागरण प्रकोष्ठ प्रदेश संयोजक पंडित मेघराज तिवारी, निशा तिवारी समेत 25 से अधिक सदस्य शामिल हुए।
पूरे माह स्नान न कर सकें, तो दो दिन जरूर करें
संस्कृत भारती छत्तीसगढ़ के प्रचार प्रभारी पंडित चंद्रभूषण शुक्ला बताते हैं कि पद्मपुराण के अनुसार कार्तिक माह के समान पुण्य प्रदायक श्रेष्ठ कोई ओर महीना नहीं है। इस महीने में जो श्रद्धालु भगवान विष्णु के सम्मुख रात्रि जागरण करते हैं। जलाशय, नदी में स्नान करके तुलसी की सेवा, उद्यापन और दीपदान करते हैं, उन्हें भगवान का सान्निध्य तथा अति पुण्य प्राप्त होता है।
वैसे तो पूरे कार्तिक मासभर किसी नदी, तालाब में प्रातः स्नान कर दीपदान करना चाहिए, लेकिन इस आधुनिक युग में प्रतिदिन प्रातः स्नान न कर पाएं, तो कार्तिक चतुर्दशी और पूर्णिमा तिथि पर में स्नान जरूर करना चाहिए।
साल में एक बार शिवजी को तुलसी अर्पण
पंडित शुक्ला के अनुसार, देवउठनी एकादशी के बाद जब भगवान विष्णु जाग्रत अवस्था में आते हैं। उसके बाद से ही वह भगवान शिव की आराधना में लीन हो जाते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के साथ भगवान शिव की पूजा की जाती है। इस दिन भगवान शिव सृष्टि का कार्यभार भगवान विष्णु को सौंपने के लिए उनसे भेंट करते हैं। इसलिए इस दिन को हरिहर मिलन के नाम से भी जाना जाता है। साल में यही एक मात्र दिन होता है, जब शिव जी को तुलसी और विष्णु जी को बिल्वपत्र अर्पित किए जाते हैं।
बैकुंठ में वास
धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के परमधाम बैकुंठ के दरवाजे सभी प्राणियों के लिए खुले रहते हैं इसलिए इसे बैकुंठ चौदस कहा गया है। अर्थात इस दिन यदि किसी प्राणी की मृत्यु होती है, तो वह सीधे बैकुंठ में प्रवेश करता है।
Posted By: Shashank.bajpai
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