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Bihar Election 2025: क्या कोई उम्मीदवार चुनाव हारने के बाद भी विधायक बन सकता है? अगर, किसी विधानसभा क्षेत्र में एक ही उम्मीदवार खड़ा है तो क्या उसे चुनाव से पहले निर्विरोध विजयी घोषित किया जा सकता है? बिहार के चुनावी गलियारों में इस तरह के कई सवाल लोगों के मन में पनप रहे है। कई बार ऐसा देखा जाता है कि किसी सीट पर उम्मीदवार को निर्विरोध विजेता घोषित कर दिया जाता है। तभी यह सवाल खड़ा होता है कि अगर चुनाव प्रक्रिया में NOTA है तो कोई भी उम्मीदवार निर्विरोध कैसे जीत सकता है? संभव तो यह भी है कि उम्मीदवार के मुकाबले NOTA को अधिक वोट मिल जाए। ऐसे में क्या होगा, दोबारा चुनाव या कुछ और? आइए इन सवालों पर चर्चा करते है और खोजते है इनके जवाब…
इस सवाल से पहले ये समझने की जरूरत है कि NOTA होता क्या है और क्यों इसे चुनाव प्रक्रिया का हिस्सा बनाया गया। बता दें कि सितंबर 2013 में चुनाव के दौरान NOTA (None Of The Above) को शामिल करने के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था।
अब बात करते है, बिना चुनाव हुए किसी प्रत्याशी को निर्विरोध विजयी घोषित की। भारत के चुनावी इतिहास में ऐसा होना कोई अनोखी बात नहीं है। अबतक, कुल 36 उम्मीदवार ऐसे रहे है जिन्हें बिना किसी वोटिंग प्रक्रिया के विजयी घोषित कर दिया गया है। साल 2012 में हुए उत्तर प्रदेश के कन्नौज लोकसभा सीट की चर्चा होती रही है, जहां समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी डिंपल यादव ने निर्विरोध जीत हासिल की थी। हालांकि, उस समय तक देश में NOTA का कॉन्सेप्ट नहीं आया था। वहीं, ताजा मामला है 2024 लोकसभा चुनाव के सूरत सीट की, जहां बीजेपी उम्मीदवार मुकेश दलाल को निर्विरोध विजयी घोषित किया गया था।
सितंबर 2013 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से NOTA (None Of The Above) को शामिल करने के पक्ष में फैसला सुनाने के बाद इसके लागू करने के कारण पर चर्चा हुई। जानकारों ने बताया कि अगर किसी मतदाता को मैदान में उतरा कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं है तो वह नोटा को वोट कर मतदान की प्रक्रिया में शामिल हो सकता है और अपनी राय रख सकता है।
लेकिन, नोटा को कई बार सवालों के कटघरे में खड़ा किया गया है। कभी इसे वेस्ट वोट कहा गया तो किसी ने इसे toothless option का नाम दिया। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी ने फरवरी 2020 में द हिंदू में अपने लेख में कहा था कि 'NOTA is a toothless option in India', यानी इसका प्रभाव केवल प्रतीकात्मक है।
चलिए आसान भाषा में नोटा को समझते है... अगर किसी चुनाव में NOTA को सबसे अधिक वोट मिलते हैं, तो भी NOTA को विजेता नहीं माना जाता। इस स्थिति में दूसरे नंबर पर आने वाला उम्मीदवार विजेता घोषित कर दिया जाता है। यानी, भले ही 100 लोगों में से 99 लोगों ने NOTA चुना हो और सिर्फ 1 व्यक्ति ने किसी उम्मीदवार को वोट दिया हो, तो वही उम्मीदवार चुनाव जीतेगा।
बात दिसंबर 2018 में हरियाणा के नगर निकाय चुनाव की है जहां, 5 जिलों में नोटा को सबसे अधिक वोट मिले थे। चुनाव आयोग ने सभी उम्मीदवारों को अयोग्य करार कर दोबारा चुनाव कराने का फैसला किया गया था।
NOTA का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि यदि कोई मतदाता किसी भी उम्मीदवार को पसंद नहीं करता, तब भी वह लोकतंत्र के इस पर्व में भाग लेकर अपनी राय दर्ज कर सके। चूंकि NOTA कोई वास्तविक उम्मीदवार नहीं होता, इसलिए यदि यह विकल्प सबसे अधिक वोट प्राप्त कर ले, तब भी दूसरे स्थान पर रहने वाले उम्मीदवार को ही विजेता घोषित किया जाता है। वहीं, यदि किसी सीट पर सिर्फ एक उम्मीदवार ही नामांकन में बचता है, तो उसे निर्विरोध विजेता घोषित किया जाता है। इस नियम की पुष्टि झारखंड के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के. रवि कुमार ने की है।
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महाराष्ट्र ने इस मामले में एक अलग पहल की थी। महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग ने 2018 में एक आदेश जारी किया, जिसके तहत NOTA को “काल्पनिक उम्मीदवार” (fictional candidate) का दर्जा दिया गया। इस नियम के अनुसार...
लेकिन यह नियम केवल स्थानीय निकाय चुनावों पर लागू है, लोकसभा या विधानसभा चुनावों पर नहीं।
भारत इस प्रावधान को लागू करने वाला 14वां देश है। इससे पहले फ्रांस, इंडोनेशिया, कनाडा, कोलंबिया, पेरू और नॉर्वे जैसे देशों में भी ऐसा विकल्प मौजूद है। इंडोनेशिया में तो यह नियम और सख्त है - अगर किसी चुनाव में केवल एक उम्मीदवार खड़ा होता है, तो उसे NOTA के खिलाफ मुकाबला करना अनिवार्य होता है। 2018 में मकासर शहर में हुए मेयर चुनाव में NOTA ने अकेले उम्मीदवार से ज्यादा वोट पाए थे, जिसके बाद चुनाव दोबारा कराना पड़ा।