Batla House Film Review: एक्टर जॉन अब्राहम जब से निर्माता बने हैं अपने प्रोडक्शन की फिल्मों के विषयों को लेकर हमेशा अचंभित करते रहे हैं। स्पर्म डोनर पर आधारित 'विक्की डोनर' हो या राजीव गांधी हत्याकांड पर आधारित 'मद्रास कैफे', निर्माता के तौर पर जॉन अब्राहम को मल्टी लेयर सब्जेक्ट हमेशा से लुभाते आए हैं। इस बार भी एक ऐसी ही फिल्म लेकर आए हैं जॉन, नाम है 'बाटला हाउस'।
दिल्ली में हुए बम ब्लास्ट के बाद दिल्ली पुलिस सरगर्मी से आरोपियों की तलाश कर रही थीl ऐसे में दिल्ली पुलिस को टिप मिली कि आरोपी जामिया नगर इलाके के बाटला हाउस में छुपे हुए हैं और जब पुलिस ने दबिश दी तो वहां पर एनकाउंटर करना पड़ा। इस एनकाउंटर को लेकर समुदाय विशेष के लोगों में आक्रोश भड़क उठाl इसका राजनीतिकरण भी हुआ पुलिस के स्पेशल सेल पर दबाव के कारण केस भी चला।
मीडिया का दबाव, जनता का दबाव, राजनीतिक उठापटक के बीच इसे निर्दोषों की हत्या कहां गया। अपनी बहादुरी के लिए देशभर में सबसे ज्यादा मेडल पाने वाले पुलिस ऑफिसर संजीव कुमार यादव को अचानक हत्यारा कहा जाने लगा। ऐसे में किस तरह से दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने न सिर्फ अपनी बेगुनाही साबित की साथ ही विद्यार्थियों के भेष में छुपे इंडियन मुजाहिद के इन आउटफिट्स का पर्दा फाश किया।
निर्देशक निखिल आडवाणी ने जिस तरह से इस जटिल कहानी को सेल्यूलाइट पर उकेरा है वह वाकई तारीफे काबिल है| सशक्त और बुद्धिमत्ता से परिपूर्ण स्क्रीनप्ले, मजबूत कहानी और लगातार आप को व्यस्त रखने वाला ट्रीटमेंट फिल्म को एक अलग ही मुकाम पर ले जाता है| अभिनय की बात करें संजीव के किरदार में जॉन अब्राहम कि यह अब तक की सबसे बेहतरीन फिल्म मानी जा सकती है। नंदिता यादव( मृणाल ठाकुर) जिन्होंने लव सोनिया जैसी संजीदा फिल्में की है उन्होंने शानदार परफॉर्मेंस दिया हैl
इसके अलावा राजेश शर्मा, मनीष चौधरी की अनुभवी उपस्थिति फिल्में और जान डालती है। कई सुपरहिट आइटम नंबर कर चुकी नोरा फतेही को बॉलीवुड में हीरोइन की तरह भी सोचा जा सकता है। कुल मिलाकर बाटला हाउस एक मजबूत फिल्म है जो एक जटिल विषय पर बनाई गई है। इस जटिलता में इस बात का पूरा ध्यान रखा गया है किया दर्शकों का ध्यान एक पल के लिए भी इधर उधर ना जाए जिसमें बटला हाउस पूर्णता सफल हुई है।
- पराग छापेकर
Posted By: Sudeep mishra