Breathe Into the shadows Review : Breathe का पहला सीजन और Breathe : Into the shadows में अगर कुछ कनेक्शन ढूंढने की कोशिश करेंगे तो अमित साध के अलावा शायद ही कुछ याद कर पाएंगे। और जानकार न भी हों तो इतना तो हर कोई समझ ही लेगा कि केस अगर कोई सॉल्व कर सकेगा तो वही आदमी जिसने पिछले सीजन में भी किया था... यानी अमित साध। पहले वाले में मज़ा इसलिए आया था कि माधवन भी उतने ही शातिर थे। उस समय वेब सीरीज का कंटेंट नया था। अब कंटेंट और प्लेटफार्म दोनों की कमी नही है, और चाहिए कुछ ऐसा कि फिर से देखने का मन करे।
लगभग 40-45 मिनट के 12 एपिसोड ऐसी सीरीज के लिए बहुत ज्यादा लगते हैं, जहां शुरू के एपिसोड में ही कहानी समझ आने लगे। फिर इंतजार इसी बात का होता है कि पूरा पर्दा कब और कैसे हटेगा। माहौल को हल्का करने और बनाए रखने के लिए बीच-बीच में फिलर कहानियां होती हैं और इस Breathe में वही ऑक्सीजन है। पहले सीजन में जो मज़ा प्रकाश (हृषिकेश जोशी) ने दिया था, उसे बढ़ाने और साथ देने में यहां जयप्रकाश (श्रीकांत वर्मा) है और बराबरी की टक्कर कह सकते है।
Abhishek Bachchan के लिए ये नई है पर अभी भी अदाकारी में बहुत गुंजाइश है। उनसे अगर अच्छा काम निकलवाना हो तो हर बार निर्देशक ही जिम्मेदार होता है, जिसके लिए लगता है मयंक शर्मा ने थोड़ा कम होमवर्क किया है। अभिषेक के लिए डायलॉग और उसको फिल्माने के एंगल समझने के लिए माहौल चाहिए, ऐसा नहीं कि सिर्फ अंधेरा और आवाज़ का भारीपन काफी है। बीच में कहानी जब अभिषेक के बचपन में जाती है, वो किरदार निभाने वाले लड़का (Varin Roopani) ज्यादा इम्प्रेस करता है।
Nithya Menon के साथ होते हुए भी उनका पूरा उपयोग नहीं हुआ। जितने शार्प एक्सप्रेशन Nithya के होते हैं, उतने ही फ्लैट अभिषेक लग सकते हैं। सैयामी खेर का उतना बड़ा रोल नहीं है, पर अभिषेक के सैयामी के साथ वाले सीन और एक्सप्रेशन देखने लायक हैं।
अमित साध ने बॉडी बनाने में मेहनत की है। काम डायलॉग होते हुए भी उनका रोल उतना ही दम भरता है। मुम्बई पुलिस से दिल्ली क्राइम ब्रांच पहुंचना, मेघना (Plabita Borthakur) से जुड़ी उनकी कहानी, गिल्ट... इस सीरीज की मुख्य कहानी से ज्यादा रोचक लग सकता है , और उनके लिए एक सॉफ्ट कॉर्नर बनाये रखता है।
क्राइम और साइकोलॉजिकल थ्रिलर की लिस्ट में ये सीरीज एक नाम भर है। याद रखने के लिए ऐसा कुछ खास आपको नहीं मिलेगा। अभिषेक और नित्या मेनन के वेब सीरीज डेब्यू के लिए भले ही हाइप बनाई हो पर उतनी खरी नहीं उतरती है। कहानी के भी कई किस्से और सीन ऐसे हैं जो लग सकता है पहले भी सुने और देखें है। कुरेदने की कोशिश करें तो मिल भी जाएंगे। कहानी में कुछ रिफरेन्स मायथोलॉजी से भी जोड़े गए जो ट्रोल आर्मी को शायद काम पर लगा दें।
Posted By: Sudeep Mishra
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