Gulabo Sitabo Review : amitabh bachchan हो या ayushmann khurrana ... सब एक से एक लालची हैं। लालच की यह कहानी लखनऊ में फिल्माई गई है। जूही चतुर्वेदी ने इसे लिखा है और ठीक-ठाक लिखा है। इस तरह की फिल्मों से आप जो उम्मीद करते हैं वो सब यहां पूरी होती हैं। OTT प्लेटफार्म पर वैसे भी इतना साफ - सुथरा कंटेंट मिलता कहां है। गुलाबो सिताबो भी ऐसी है कि परिवार के साथ बैठकर लॉकडाउन में दो घंटे गुजारे जा सकते हैं। हां, अगर मामला टॉकीज जाकर इसे देखने का होता तो जरूर एक बार सोचना पड़ता। घर बैठे मिल रही है तो इसे देखने में कोई बुराई नहीं।
प्राइम वीडियो पर यह शुक्रवार को रिलीज हुई है। शुजीत सरकार इसके निर्देशक हैं। शुजीत को कहानी कहना आता है और वो दर्शक को वाकई वो हिस्सा ही दिखाते हैं जो उसके लिए उस वक्त जानना जरूरी होता है। धीर-धीरे परते खोलते जाते हैं और फिर आखिरी परत में कभी राज होते हैं तो कभी इंसानी भावनाएं।
शुरुआत में तो यह कहानी बरसों से टिके किराएदार और बूढ़े मकान मालिक की जान पड़ती है। आगे बढ़ती है तो यह इंसानी फितरतों पर फोकस हो जाती है। सभी एक ही नाव पर सवार नजर आने लगते हैं। मजेदार किस्से इसे आगे बढ़ाते रहते हैं और जोरदार कलाकार भी।
आयुष्मान और अमिताभ की लड़ाई तो इस फिल्म में मन लगाए ही रखती है, कुछ मजेदार किरदार और हैं। इन्हें भी काफी जगह मिली है। अमिताभ के सीन इस किरदार के बारे में हर बार कुछ नया सामने लाते हैं और एक्टर ने भी बढ़िया किया है। इतने भारी मेकअप में उनकी शक्ल तो नहीं दिखती हैं लेकिन हरकतें जरूर समझ आ जाती हैं।
आयुष्मान खुराना ने भी अपने बोलने का अंदाज इस फिल्म के लिए बदला। इतनी गरीबी उन्होंने 'दम लगा के हईशा' भी नहीं देखी थी। गरीब के रोल में वो जमते हैं। वैसे इस फिल्म में वो कम देर के लिए हैं। हीरोइन कोई है नहीं।
गाने नाम को हैं और बैकग्राउंड में चलते हैं। भाषा शुद्ध देसी है जिसे समझने के लिए कानों को ट्यून करना पड़ता है। इस लॉकडाउन में वीकेंड इसके नाम किया जा सकता है।
Posted By: Sudeep Mishra
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