Paatal Lok Review : क्राइम से जुड़ी कुछ कहानियां ऐसी होती हैं जिसको दर्शाने के लिए समय तो चाहिए ही... साथ ही बहुत से किरदार भी। फ़िल्म के साथ एक लिमिटेशन यही है कि समय निश्चित होता है और ज्यादा किरदारों को फ्रेम देने में मशक्कत भी बहुत होती है। वेब-सीरीज इन कमियों को दूर करने का अच्छा प्लेटफार्म है, और शायद इसी लिए Paatal Lok जैसी कहानी बनाने की हिम्मत की जा रही है। यहां किरदार भी बहुत सारे हैं और सबकी अपनी कहानी है, जो Need to Know basis की तरह सामने आते जाते हैं और उत्सुक करते जाते हैं यहां इसका क्या काम और सामने चल रही कहानी से क्या कनेक्शन है।
देखने वाले के सारे वाजिब सवालों का सही समय पर इसकी कहानी जवाब देती जाती है। ये ऐसी ट्रेन की तरह है जो ट्रैक पर तो चलती ही है और बिना उतरे एक से दूसरे स्टेशन पहुंचती भी है, जब जहां जो भी चढ़ा, किसी न किसी का साथी ही निकला।
चार क्रिमिनल हैं जो एक मशहूर पत्रकार को मारने की साजिश में पकड़े जाते हैं और एक ऐसे पुलिसवाले को इसकी तफ्तीश की जिम्मेदारी दी जाती है जो वर्षों से काम करता आया है लेकिन इस तरह के किसी केस का कोई एक्सपीरियंस नहीं है। मौके की तलाश उसे भी थी और उसमें रोड़े डालने वाले भी है, वो उसे भुनाने के लिए हद से ज्यादा मेहनत करता है। ईमानदारी से इन्वेस्टीगेशन करते हुए इन चारों के क्रिमिनल बनने की कहानी भी सामने आती है जो असल में पाताल लोक की तरह है।
'उड़ता पंजाब' और NH10 जैसी कहानियां लिखने वाले सुदीप शर्मा ने इस सीरीज को बनाया है। अविनाश अरुण और प्रोसित रॉय ने इसे डायरेक्ट किया है। किरदारों को गढ़ने के लिए स्क्रिप्ट में जो मेहनत की गई है , कैमरे और एडिटिंग से उसे दिखाने में भी उतनी ही मेहनत की गई है। कई सीन ऐसे हैं जो अच्छे खासे इंसान को झकझोर कर रख दें और भरे एसी में बैठे हों तो भी कनपटी से पसीना निकाल दें।
कास्टिंग यहां काबिल-ऐ-तारीफ है, और कुछ जगह देखने वालों को जरूर चौंकाएगी, जैसे एक छोटे-से रोल में यहां अनूप जलोटा को चुना गया है !!! नायक के रूप में जयदीप अहलावत है, जो पुलिस वाले 'हाथीराम चौधरी' का रोल कर रहे हैं। सबसे ज्यादा जगह भी उन्हें ही दी गई है, पर कहीं भी उन्होंने निराश या बोर नहीं होने दिया। एक पुलिसवाले, पति और पिता होने के सारे इमोशन्स अच्छे से कैप्चर किए हैं। मशहूर journalist 'संजीव मेहरा' के रोल में नीरज काबी बढ़िया हैं। पावर और फेम का नशा कैसा होता है, और मौके को भुनाने के लिए आजकल किस तरह फेक न्यूज़ का सहारा लिया जाता है और देखने वालों को पता भी नही चलता, उनके इस किरदार को देख कर समझा जा सकता है।
महिलाओं का शोषण यहां भी दिखाया है। कुछ किस्से पहले के समय के भी हैं जो क्राइम को जन्म देते है, और कुछ आज के समय के, जिसमें लड़कियां खुद एक्सप्लॉइट होते हुए अपने लिए opportunity बनाती हैं। मीडिया का माख़ौल भी बनाया है जो किस तरह से छोटी-छोटी सी बातों का बतंगड़ बनाता है और कुछ चैनल ऐसी स्टोरीज चलाते हैं जिसका शायद ही न्यूज़ से कोई संबंध हो।
कुल जमा 9 एपिसोड की इस सीरीज में कई बार कहानी फ़्लैशबैक में किरदारों के बचपन तक पहुंचती है। आम लोग और उनके आस-पास की ज़िन्दगी में होने वाली घटनाएं ही है, पर उसके पीछे की कहानियां शायद ही कोई जानता होगा। क्राइम करने वाला शायद कभी पहले से ही तय नहां करता कि वो क्रिमिनल बनेगा। सबकी अपनी परिस्थियां या मजबूरियां होती है जो ऐसे काम करवा देती हैं।
लोगो को आत्मनिरीक्षण करने के लिए पाताल लोक तो एक अच्छा एक्सपेरिमेंट कह सकते हैं। अंत कुछ दर्शकों को निराश कर सकता है, पर क्या कर सकते हैं, यही तो Paatal Lok है।
Posted By: Sudeep Mishra
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