भोपाल गैस त्रासदी के 36 साल, भुलाए नहीं भूलता उस रात का खौफनाक मंजर, हर तरफ बिछी थीं लाशें
Updated: | Wed, 02 Dec 2020 11:08 AM (IST)भोपाल, नवदुनिया प्रतिनिधि, Bhopal Gas Tragedy। भोपाल में 2 व 3 दिसंबर 1984 की मध्य रात्रि से शुरू हुईं चीख-पुकारों का शोर आज भी हमारे जेहन में जिंदा है। उस त्रासदी ने ऐसी तबाही मचाई थी, जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की होगी। सड़क, स्टेशन और घरों में लोग बेसुध पड़े थे। हर तरफ लाशों के ढेर थे। लोग बदहवाह अपनी जान बचाने के लिए बस दौड़ते चले जा रहे थे। किसी के साथ दुधमुंहे बच्चे थे, तो कोई सिर व हाथों में गठरी, थैले, बैग लेकर दौड़ रहा था। कुछ ट्रकों में लदकर जा रहे थे, कुछ पैदल ही निकल पड़े थे। हमें खुद नहीं पता था कि हुआ क्या है, पर जैसे-जैसे 3 दिसंबर 1984 का दिन चढ़ता गया, जानकारी आती गई कि जेपी नगर के यूनियन कार्बाइड कारखाने से जहरीली गैस रिसी है। आज भी उस दिन को याद कर लें तो खाना नहीं खा पाते हैं। यह कहना है जगदीशचंद्र नेमा और रामलाल मकवाना का, जो आज से 36 साल पहले घटित हुई गैस त्रासदी को खुद अपनी आंखों से देख चुके हैं।
बता दें कि भोपाल में यूनियन कार्बाइड कारखाना (अब डाउ केमिकल्स मालिक कंपनी हो गई है) जेपी नगर में था, जिसका स्ट्रेक्चर आज भी मौजूद है। उसी कारखाना के टैंक 610 से जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ था। यह दुनिया की बड़ी गैस त्रासदी में से एक है, जिसमें उस समय पांच हजार से अधिक लोगों की मौतें हुईं थी। 48 हजार लोग अति प्रभावित हुए थे। राज्य सरकार के दस्तावेजों में मृतकों की संख्या 12 हजार और गैस पीड़ितों के अनुसार 22 हजार लोगों की मौतें होने का दावा है। इनके लिए कंपनी ने 715 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया था।
तलैया क्षेत्र में रहने वाले वरिष्ठ फोटो जर्नलिस्ट जगदीशचंद्र नेमा की जुबानी-
मैं घर में सो रहा था, अचानक बाहर लोगों की चीख-पुकार सुनाई दी। उठकर देखा तो लोग बदहवास हालत में दौड़ रहे थे। कोई किसी को कुछ नहीं बता रहा था, बस भागते जा रहे थे। सुबह तक हजारों लोग मौत की नींद सो चुके थे। चारों तरफ बस लाशें ही लाशें थीं। जब इन लाशों के अंतिम संस्कार की बात आई तो छोला मुक्तिधाम में जगह कम पड़ गईं थी। तब बड़ वाले महादेव मंदिर के महंत शंकरानंद ब्रह्मचारी, सामाजिक कार्यों में अव्वल रहने वाले गणेशराम माली, बलराम रिछारिया (तीनों का निधन हो गया है) और मोहन भारद्वाज, दिनेश शर्मा समेत हम 15 से 20 लोगों ने शवों का अंतिम संस्कार करने का बीड़ा उठाया। सबसे बड़ी चिता 122 शवों की थी, यह हमारी मजबूरी थी क्योंकि जल्दी अंतिम संस्कार करना था, जगह कम थी। उस समय हम लोग पांच दिन तक घर नहीं आए थे। वह दृश्य आज भी जेहन में जिंदा है। आंखों से आंसू भले न निकलें, लेकिन मन आज भी रोता है। बहुत पीड़ा होती है। मौत आ जाए, पर दोबारा कभी वैसा खौफनाक दिन देखने को न मिले तो अच्छा है।
1984 में निशातपुरा सहायक यार्ड मास्टर रहे रामलाल मकवाना की जुबानी-
मैं 1984 में सहायक यार्ड मास्टर था। उस रात निशातपुरा यार्ड में ड्यूटी थी। रात 12.19 बजे के करीब बाहर भाग-दौड़ मची थी। कुछ ही समय बाद आंखों में जलन होने लगी, सीने में दर्द भी हुआ। मैंने सोचा कहीं बम ब्लास्ट हुआ है। भोपाल रेलवे स्टेशन पर संपर्क किया तो काफी देर तक कॉल रिसीव नहीं हुआ। दोबारा किया तो संदेश मिला कि लोग बेसुध हो रहे हैं, कोई बड़ा हादसा हुआ है। कुछ समय बाद दोबारा संपर्क किया तो कॉल किसी ने रिसीव नहीं किया। इसी बीच गोरखपुर-मुंबई कुशीनगर (अब यह ट्रेन दिन में भोपाल स्टेशन से होकर गुजरती है, जो 1984 में रात को होकर गुजरती थी) विदिशा से भोपाल के लिए चल चुकी थी। जब भोपाल स्टेशन पर कॉल रिसीव नहीं हुआ तो मैं घबरा गया। इस बीच पता चला कि भोपाल स्टेशन पर भी भगदड़ मची है। मैंने रात 1.30 बजे के बाद से बीना, इटारसी, झांसी, भुसावल स्टेशनों पर कॉल करने शुरू कर दिए। सीधे कह दिया कि भोपाल में कोई बड़ा हादसा हुआ है इसलिए भोपाल आने वाली ट्रेनों को रोक दो। इस तरह कुशीनगर एक्सप्रेस के बाद 3 दिसंबर की सुबह 8 बजे तक कोई भी ट्रेन भोपाल नहीं आने दी। यदि आती तो उन ट्रेनों में सफर करने वाले हजारों यात्री गैस रिसाव के शिकार हो जाते।
Posted By: Ravindra Soni