धनंजय प्रताप सिंह, भोपाल : मध्य प्रदेश की राजनीति के अजातशत्रु शिवराज सिंह चौहान वैसे तो लोकसभा चुनाव जीतने और केंद्रीय कृषि मंत्री बनने के बाद से ही राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हो गए थे लेकिन अब झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए प्रभारी बनाए जाने के बाद यह माना जाना चाहिए कि चौहान केवल केंद्रीय मंत्री की भूमिका में नहीं हैं बल्कि भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति में भी एंट्री पा चुके हैं।
इससे पहले मध्य प्रदेश से नरेंद्र सिंह तोमर ही एकमात्र नेता रहे हैं, जिन्हें अलग-अलग राज्यों में विधानसभा चुनाव का प्रभारी बनने का अवसर मिला है। झारखंड आदिवासी बहुल राज्य है और वहां भाजपा सत्ता से बाहर है। पिछली बार पार्टी ने ओम माथुर को प्रभारी बनाया था लेकिन टिकट वितरण सहित अन्य कारणों से वहां भाजपा सत्ता से बेदखल हो गई थी। शिवराज सिंह चौहान के लिए कभी कोई टास्क कठिन नहीं रहा है।
मध्य प्रदेश में चार अलग-अलग कार्यकाल में लगभग 17 वर्ष तक मुख्यमंत्री रहने के बाद शिवराज को सीएम नहीं बनाया गया था, तब भी उनको भाजपा ने कर्नाटक, तेलंगाना और तमिलनाडु सहित दक्षिण के राज्यों की जिम्मेदारी सौंपी थी। दक्षिण हमेशा से भाजपा के लिए किसी बंजर भूमि से कम नहीं रहा है। चौहान ने वहां लगातार दौरे भी किए और परिणाम भी सामने हैं। पहली बार भाजपा को दक्षिण में सफलता मिली या कहें कि एंट्री मिली। स्पष्ट है कि शिवराज एक कुशल संगठक भी हैं। वह खुद युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव भी रहे हैं, इस नाते झारखंड में भी वह कमल खिलाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे। लोकप्रियता में भी शिवराज का कोई जवाब नहीं।
मध्य प्रदेश के हर घर से उन्होंने मामा-भैया जैसा रिश्ता जोड़ लिया है। यह भी दिखावटी नहीं बल्कि जीवंत है। सरल-सहज स्वभाव के कारण गरीब परिवार की महिलाएं हों या बच्चियां, वे शिवराज में अपनापन पाती हैं। वर्ष 2023 की ही बात कर लीजिए तो पता चलेगा कि प्रदेश में सत्ता विरोधी रुझान चरम पर था, लेकिन शिवराज ने उस छद्म माहौल को तोड़ ऐसा परिवर्तन लाया कि मध्य प्रदेश में भाजपा को 230 में से 166 सीटें मिल गईं। जिस आदिवासी वर्ग ने वर्ष 2018 में भाजपा का साथ छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया था, उस वर्ग का विश्वास भी चौहान ने जीत लिया।
2024 के लोकसभा चुनाव में भी प्रत्यक्ष तौर पर शिवराज को जीत का सेहरा न बांधा गया हो लेकिन उनकी ही नींव की बदौलत भाजपा को पहली बार 29 में 29 सीटों पर जीत मिली। अब चौहान के सामने झारखंड में कमल खिलाने की जिम्मेदारी है। जहां आदिवासी भी नाराज हैं और झारखंड मुक्ति मोर्चा की चुनौती है। ऐसे में, झारखंड में पार्टी के लिए मजबूत रणनीति बनाने और वहां कमल खिलाने का जिम्मा तो शिवराज पर होगा ही, यह उनके लिए मप्र के राजनीतिक दायरे से निकलकर राष्ट्रीय राजनीति में खुद को साबित कर दिखाने का मौका भी होगा।