Bhopal News: शहर में हुआ कलमप्रिया का संगम, साहित्य परिदृश्य में स्त्री की भूमिका पर मंथन
Updated: | Sun, 24 Jan 2021 03:38 PM (IST)भोपाल (नवदुनिया रिपोर्टर)। सुख दु:ख के ताने-बाने को जिसने लफ्जों से सिया है, सही मायनों में वो ही कलमप्रिया है... इन खूबसूरत पंक्तियों के साथ मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन की भोपाल इकाई के अध्यक्ष अभिषेक वर्मा ने सभी वक्ताओं का स्वागत किया। मप्र हिंदी साहित्य सम्मेलन की ओर से कलमप्रिया का आयोजन मायाराम सुरजन भवन में किया गया। कोरोनाकाल के बाद मप्र हिंदी साहित्य सम्मेलन का ये पहला ऑफलाइन कार्यक्रम था, जिसमें 'वर्तमान साहित्य परिदृश्य में स्त्री" विषय पर परिचर्चा की गई।
पैनल चर्चा में इस बात पर रोशनी डाली गई कि महिला साहित्यकार अपने साथी पुरुष साहित्यकारों के काम का कितना मूल्यांकन करती हैं। डॉ. नुसरत मेहदी ने उर्दू अदब के माहौल पर रोशनी डालने के साथ बताया कि नए जमाने में स्त्रियां साहित्य में अच्छा काम कर रही हैं। संगीता गुंदेचा ने कहा कि यहां पर स्त्रियों की क्रांति की दिशा जरूर थोड़ी भटकी, लेकिन स्त्री अपना मुकाम ढूंढ लेंगी। डॉ. नीलकमल कपूर ने कहा की सृजन स्त्री का मूलभूत लक्षण है और वो स्त्री हमेशा आगे बढ़ती है जो खुद तय कर लेती है कि उसे आगे बढ़ना है। रेखा कस्तवार ने कहा कि इस वक्त भी बहुत अच्छे महिला किरदार गढ़े जा रहे हैं। उसमें भी स्त्री के आगे बढ़ने की जिजीविषा साफ नजर आती है। लेखिका डॉ. ऋतु पांडेय शर्मा ने कहा कि सृजन स्त्री के लिए आम है और अब स्त्री ने खुद को पहचानकर इसे आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है।
कार्यक्रम में मप्र हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रदेश अध्यक्ष पलाश सुरजन, अशोक मनवानी, प्रेमशंकर शुक्ल आदि मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन सम्मेलन की भोपाल इकाई के उपाध्यक्ष अनुराग तिवारी ने किया। चर्चा में भोपाल इकाई की सचिव शरबानी बैनर्जी भी शामिल थीं। कार्यक्रम के दूसरे चरण में सभी वक्ताओं ने अपनी रचनाओं का पाठ किया।
इन पक्तियों को मिली सराहना
आह शाम की पीड़ा का ये सांवलापन
फ्रीडा काहरो मैं मरना चाहता हूं।
मगर मैं ये नहीं जानता की मरा कैसे जाता है।।
-संगीता गुंदेचा
खैरियत गैर की मानिंद हमारी मत पूछ
ये तकल्लुफ तो हुआ जाता है भारी मत पूछ...
- डॉ. नुसरत मेहदी
Posted By: Ravindra Soni