Prakash Parv Indore 2020: जहां नानक ने सुनाया शबद, वहां बने ऐतिहासिक महत्व के गुरु घर
Updated: | Sun, 29 Nov 2020 12:22 PM (IST)Prakash Parv Indore 2020:
रामकृष्ण मुले, इंदौर (नईदुनिया)। सिख समाज द्वारा सिंख धर्म के संस्थापक गुरु नानकदेव महाराज का 551वां प्रकाश पर्व 30 नवंबर को मनाया जाएगा। वे दूसरी यात्रा के दौरान 503 साल पहले इंदौर, बेटमा और अोंकारेश्वर में आए थे। 1517 में उनके आगमन का उल्लेख पुरातन ग्रंथ गुरु खालसा मे मिलता है।
जहां-जहां उन्होंने शबद सुनाया एेतिहासिक महत्व के गुरु घर बने। इन स्थानों पर आज भी हर साल कई धार्मिक आयोजन होते है, जिनमें हजारों की संख्या में संगत एकत्रित होती है। हालांकि इस बार प्रकाश पर्व के स्वरूप में बदलाव हुआ है। नगर कीर्तन इस बार नहीं निकाले जाएंगे और साथ ही लंगर भी पैकेट में दिया जाएगा। संगत को शारीरिक दूरी के नियम और मास्क पहनने की अपील की गई है।
इमली साहिब : इमली के पेड़ के नीचे सुनाया शबद तो बना इमली साहिब गुरुद्वारा
गुरु नानकदेव महाराज उनकी दूसरी यात्रा के दौरान दक्षिण से होते हुए इंदौर आए थे। यहां कान्ह नदी के किनारे इमली के पेड़ के नीचे आसन लगाकर शबद सुनाया था इसलिए जब यहां गुरुद्वारा बना तो उसका नाम गुरुद्वारा इमली साहिब रखा गया। पहले इस स्थान की सेवा संभाल उदासी मत के पैरोकारों ने और रमईया सिंघों ने संभाली। इसके बाद होलकर स्टेट के सहयोग के लिए फौज पंजाब से आई तो उन्होंने गुरुद्वारे की सेवा संभाल की। शहर के इस सबसे प्रमुख गुरुद्वारे की व्यवस्था गुरुसिंघ सभा द्वारा की जा रही है।
बेटमा साहिब : बावड़ी के खारे पानी को कर दिया था मीठा
गुरुनानक देव महाराज दूसरी यात्रा के दौरान बेटमा साहिब भी आए थे। गुरु खालसा में उनकी यात्रा का उल्लेख है। पुरातन कथाओं के मुताबिक यह स्थान राजा गोपीचंद की नगरी के नाम से पहचाना जाता था। इस स्थान पर भीलों का आतंक था। गुरुजी ने उन्हें अहिंसा का संदेश दिया। कहा जाता है कि उनके आगमन से यहां बावड़ी का खारा पानी मीठा हो गया था। इसके चलते यहां बने गुरुद्वारे का नाम बावड़ी साहिब पड़ा। 1964 में यह गुरुद्वारा गुरुसिंघ सभा के पास रजिस्टर्ड है। गुरु खालसा के अनुसार 1517 में गुरुनानकदेव छह माह यहां रूके थे। कोरोना के कारण इस बार स्वर्ण मंदिर पंजाब से रागी जत्थे नहीं आएंगे।
ओंकारेश्वर साहिब : राग रामकली में ओंकार नामक बाणी का उच्चारण किया
गुरुनानक महाराज दूसरी उदासी के दौरान इंदौर से 80 किलोमीटर दूर ओंकारेश्वर में नर्मदा के किनारे आए थे। यहां पर लोगों को ओंकार की उपमा बताई थी। उन्होंने राग रामकली में ओंकार नामक बाणी का उच्चारण किया था। इस बात की जानकारी1957 में ज्ञानी संत सिंह को पहली बार गुरुद्वारा तोपखाना (इंदौर) में मिली। इसके बदा संगत के सहयोग से इस स्थान पर 1961 में गुरुद्वारे का निर्माण कार्य शुरू हुआ। उनके प्रयत्नों से ओंकारेश्वर गुरुद्वारे का निर्माण शुरू हुआ। इंदौर, बड़वाह, सनावद, खंडवा, झिरनिया, खरगोन की संगत ने इसमें योगदान दिया। यहां हर साल तीन गुरमत होते है। इस वर्ष भी भी कोरोना प्रोटोकाल के साथ आयोजन होंगे।
दूसरी यात्रा के दौरान आए नानक
पांच सौ साल पहले गुरुनानक देव इंदौर, बेटमा और ओंकारेश्वर आए थे। यहां एेतिहासिक महत्व के गुरुद्वारे बने है। यह स्थान सिख समाज की आस्था का केंद्र है। हर साल इन स्थानों पर हजारों की संख्या में लोग दर्शन के लिए आते है। -मनजीत सिंह भाटिया, अध्यक्ष श्रीगुरु सिंघ सभा
विशेष महत्व के गुरुद्वारे
जहां-जहां नानक ने शबद सुनाए वहां संगत ने एेतिहासिक महत्व के गुरुद्वारे बनाए। गुरुसिंघ सभा इन की संभाल की व्यवस्था कर रही है। संगत की सुविधा के लिए इन गुरुद्वारों का विस्तार भी किया गया है। - जसबीरसिंह गांधी, सचिव श्रीगुरुसिंघ सभा
Posted By: sameer.deshpande@naidunia.com