जबलपुर के नामकरण के कारक जाबालि ऋषि की रचना जाबालोपनिषद ने बढाया जबलपुर का मान
Updated: | Wed, 02 Dec 2020 11:17 AM (IST)सुरेंद्र दुबे, जबलपुर। शहर का नाम जबलपुर जिन ऋषि की पुनीत स्मृति को अक्षुण्य रखने किया गया, उनकी अमर कृति 'जाबालोपनिषद' है। देश-दुनिया में अनेक अध्यात्म प्रेमी इस रचना का पाठन कर चुके हैं। ऋषि जाबालि का जबलपुर से बहुत गहरा नाता रहा है। कुलगुरु वशिष्ठ की अनुशंसा पर महाराज दशरथ द्वारा जबलपुर के ऋषि जाबालि को अयोध्या में मुख्य याजक (यज्ञ-प्रमुख) नियुक्त किया गया था।
देववाणी संस्कृत में रचित बाल्मीक रामायण और लोकभाषा अवधि में रचित तुलसी की रामचरित मानस में आये उल्लेखों के अनुसार भरत के साथ जिस प्रतिनिधिमंडल ने ब्रह्मर्षि वशिष्ठ के नेतृत्व में चित्रकूट की तरफ प्रस्थान किया था, उसमें जबलपुर के साधक ऋषि जाबालि भी शामिल थे।
जब जाबालि ऋषि ने देखा कि श्रीराम किसी की बात नहीं मान रहे हैं। फिलहाल, उनका वनवास त्यागकर अयोध्या लौटना लगभग असंभव है, तब आपद धर्म को अंगीकार कर जाबालि ऋषि ने राम को मनाने के लिये वेद-विरुद्ध घोर भौतिकतावादी चार्वाक दर्शन तक का सहारा लेने से गुरेज नहीं किया। उन्होंने कहा कि इस तरह पिता के वचन को निभाने के लिये राजसिंहासन को त्यागकर वन-वन भटकने में कोई समझदारी नहीं है। अब जबकि स्वयं भरत को राज्याभिषेक का मोह नहीं और वह आपको अयोध्या वापस ले जाना चाहता है, तो वनवास बीच में न त्यागने की हठधर्मिता में कोई समझदारी नहीं है। जैसे ही श्रीराम ने एक ऋषि के श्रीमुख से धर्मविरुद्ध नास्तिक चार्वाक दर्शन से युक्त बातें सुनीं, वे अत्यधिक क्रोधित हो गये। धर्म के साक्षात विग्रह भगवान श्रीराम को कुपित पाकर जाबालि ऋषि ने विनम्रतापूर्वक भेद खोला और कहा-''प्रभु! मैं धर्मयुक्त ही हूं, केवल आपको किसी तरह मनाकर अयोध्या वापस ले जाने भरत का साथ दे रहा हूं।" इस संवाद के बीच में ब्रह्मर्षि वशिष्ठ ने भी हस्तक्षेप किया और राम को समझाया कि आप अयोध्या के मुख्य याजक जाबालि ऋषि पर क्रोध न करें क्योंकि मूलत: ये परम धर्मपालक तपस्वी हैं। इन्होंने तो आपके अनुज भरत का दुख देखकर प्रतिनिधिमंडल के एक मेधावी सदस्य के रूप में येन-केन-प्रकारेण आपको समझाने की सक्रिय चेष्टा मात्र की है। यह सुनकर श्रीराम उनके प्रति कोमल हो गए।