International Womens Day Special: कोरोना काल में चार माह में एक बार बेटी को देखा वह भी दूर से
Updated: | Sun, 07 Mar 2021 08:18 PM (IST)International Women's Day Special आलोक शर्मा, मंदसौर (नईदुनिया)। सोचिये कैसा लगे जब आप एक ही शहर में हों और अपने बच्चों से मिलना तो दूर देख नहीं पाओ। फिर उस मां पर क्या गुजरती होगी जब वह चाह कर भी बेटी से रोज नहीं मिल सकती है। कोरोनाकाल में स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोगों को कुछ ऐसी ही परिस्थितियों से गुजरना पड़ा।
आयुष चिकित्सक डा. श्वेता रामावत छह माह तक घर नहीं गईं। उन्होंने बेटी को चार माह बाद देखा, वह भी दूर से। डा. मीनाक्षी उपाध्याय भी जी-जान से जुटी रहीं। मरीजों को कोरोना केयर सेंटर पहुंचाने के साथ ही उनके संपर्क में आए लोगों की सैंपलिंग और आइसोलेशन सेंटर भेजने के लिए बनी टीमों का नेतृत्व भी दोनों महिला चिकित्सकों ने किया था।
छह माह घर से दूर रहीं डा. श्वेता रामावत
आयुष चिकित्सक डा. श्वेता रामावत को कोरोनाकाल के समय बनी टीम में मरीजों को कोविड केयर सेंटर पहुंचाने के साथ ही उनकी संपर्क सूची में शामिल स्वजन और अन्य लोगों को क्वारंटाइन सेंटर तक पहुंचाने का काम मिला था। अप्रैल 20 से ही वे घर से बाहर निकली थीी जो वापस नवंबर में जा पाईं। शहर के गुदरी क्षेत्र में मिली जिले में सबसे पहली महिला मरीज को भेजने में जो मशक्कत लगी थी और उसकी संपर्क सूची में शामिल दूधवाले, इंजेक्शन लगाने वाले सहित अन्य लोगों को समझाइश से सैंपल देने के लिए भी राजी किया और उन्हें कोविड केयर सेंटर व क्वारंटाइन सेंटर पहुंचाया।
डा. श्वेता ने बताया कि गुदरी में चूंकि बीमारी का शुरुआती समय था तो लोगों को समझाने में भी परेशानी होती थी। वहां शहर काजी के परिवार में ही 6 पाजिटिव मिले थे। उनके यहां से 27 लोगों को क्वारंटाइन सेंटर पहुंचाया था। एक घर में पैरालिसिस वाली महिला, गर्भवती महिला को एंबुलेस तक लाना था तो स्वजन भी हाथ नहीं लगा रहे थे, ऐसे में हमारे स्वास्थ्यकर्मियों ने उन्हें उठाकर एंबुलेंस तक पहुंचाया। इस दौरान छह माह तक घर नहीं गई और बेटी को भी चार माह बाद घर के बाहर जाकर देखा था। जिला जेल में जाकर भी रोज कैदियों की जांच की।
गलियों में घर-घर में की सैपलिंग
7 एमडीएस-7 डा. मीनाक्षी उपाध्याय।
मंदसौर में शुरुआती दौर में कोरोना गुदरी में ही फैला था और उस समय वहां से लगातार मरीज मिल रहे थे। कोरोना के बारे में स्वास्थ्यकर्मियों को ज्यादा पता नहीं था। लोगों में अपवाहों का दौर गरम था। शहर के हाट स्पाट गुदरी में मरीजों की संपर्क सूची में शामिल लोगों के साथ ही अन्य सभी के सैंपल लेने वाली टीम की कमान आयुष चिकित्सक डा. मीनाक्षी उपाध्याय को सौंपी गई थी। 19 मई 20 को मंदसौर पहुंची और तभी से इस टीम में शामिल कर दी गई थीं तो अब जाकर राहत मिली है। लगातार बढ़ रहे संक्रमण को रोकने के लिए घर-घर जाकर सैंपलिंग करने व लोगों को समझाइश देने में डा. उपाध्याय की अहम भूमिका रही। इसके अलावा टेली मेडीसिन पर भी लगातार ड्यूटी की। महिला चिकित्सक होने के बाद भी रात्रिकालीन ड्यूटी की। गुदरी में हर व्यक्ति की सैंपलिंग करने व ठीक से समझाइश देने के कारण ही वहां संक्रमण थम सका था।
दो माह तक गुदरी में डटी रही
7 एमएएन-6 कमला पाटीदार, सुपरवाइजर।
नाहरगढ़ में पदस्थ सुपरवाइजर कमला पाटीदार ने गुदरी में दो माह तक ही डटी रहीं। अप्रैल में वहां 61 मरीज मिले थे। तीन हजार जनसंख्या वाले क्षेत्र में सभी के स्वास्थ्य की जानकारी, बीपी-शुगर वालों को दवा-गोलियां पहुंचाती रही। कमला पाटीदार ने बताया कि कोरोना से डर तो लग रहा था पर फिर सोचा कि घबराने से क्या होगा। 30 साल की सेवा में यह पहला मौका था जिसमें इस तरह काम करने का मौका मिला। 2 मई से 24 सितंबर तक लगातार कोरोना के लिए ही काम किया। फीवर क्लीनिक पर भी रही।
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Posted By: Hemant Kumar Upadhyay