ग्वालियर में निजी अस्पताल में इलाज से हो गए कंगाल, घायलों को ले आए मुरैना
Updated: | Mon, 23 Nov 2020 12:34 PM (IST)मुरैना, नईदुनिया प्रतिनिधि। सरकारी अस्पताल में इलाज नहीं मिलने के बाद एक बूढ़ा बाप अपने तीन घायल बेटों को ग्वालियर के निजी अस्पताल में ले गया। निजी अस्पताल ने इलाज शुरू किया और हर दिन इतना महंगा बिल बनने लगा कि 9 दिन में बूढ़े बाप की पूरी जमा पूजी खत्म हो गई लेकिन, निजी अस्पताल के बिलों की फेहरिस्त खत्म नहीं हुई। इसके बाद बुजुर्ग पिता अपने तीनों घायल बेटों को ग्वालियर के निजी अस्पताल से निकालकर मुरैना जिला अस्पताल में ले आया।
सबलगढ़ तहसील के कजौनी गांव निवासी मोतीलाल बघेल का दीपावली से दो दिन पहले 12 नवंबर को गांव के ही एक परिवार से विवाद हुआ। यह विवाद खूनी संघर्ष में बदल गया। विवाद में मोतीलाल के तीन बेटे ज्ञान सिंह बघेल, आसाराम बघेल और योगेश बघेल गंभीर रूप से घायल हो गए। सबलगढ़ अस्पताल से इन्हें ग्वालियर रेफर किया गया। तीनों को ग्वालियर-चंबल संभाग के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में ले जाया गया जहां सुविधाओं की कमी बताकर तीनों को किसी बड़े अस्पताल में ले जाने की सलाह दे दी। इसके बाद 13 नवंबर को घायलों को उनके स्वजन ग्वालियर में ही शिंदे की छावनी, कटी घाटी स्थित निजी अस्पताल ले गए। ग्वालियर के जेएएच अस्पताल से यह निजी अस्पताल कई गुना छोटा था, लेकिन यहां तीनों घायलों का इलाज शुरू हो गया।
13 से 21 नवंबर तक इलाज के नाम पर अस्पताल ने 3 लाख 89 हजार रुपये वसूल लिए। उसके बाद भी अस्पताल के बिल बंद नहीं हुए। उधर गायों का दूध बेचने और खेती करने वाले मोतीलाल की पूरी जमापूजी खत्म हो गई तो रविवार को तीनों घायल बेटों को ग्वालियर से वापस मुरैना जिला अस्पताल में भर्ती करा दिया। ग्वालियर से मरीजों का मुरैना अस्पताल में आना जिला अस्पताल में ही चर्चा का विषय बन गया है।
यहां 10 हजार रुपये का इलाज हो रहा फ्री में
घायलों के स्वजनों ने बताया कि पूरा इलाज होने के बाद तीनों के पलंग, मरहमपट्टी व इंजेक्शन-ड्रिप लगाने के नाम पर हर रोज 10 से साढ़े 10 हजार रुपये का बिल बनाया जा रहा था। इससे परेशान होकर वह घायलों को मुरैना जिला अस्पताल ले जाए जहां, तीनों को सर्जिकल वार्ड मंे भर्ती कराया गया है और जो इलाज ग्वालियर का निजी अस्पताल 10 हजार रुपये में दे रहा था वह इलाज तीनों मरीजों को मुरैना जिला अस्पताल में नि:शुल्क मिलने लगा है।
पूरी जमा पूरी इलाज में खत्म हो गई। इलाज के लिए पचान वाले व रिश्तेंदारों से करीब डेढ़ लाख रुपये उधार ले चुका हूं। निजी अस्पताल का बिल चुका-चुका कर बर्बाद हो गया। हम तो तीनों घायलों को जेएएच में ले गए थे वहां इलाज ही नहीं किया और बड़े अस्पताल ले जाने की कहकर लौटा दिया। अगर जेएएच में इलाज मिलता तो लाखों रुपये के खर्च से बच जाते। - मोतीलाल बघेल, घायलों के पिता
Posted By: Prashant Pandey