वो 14 दिन, जब डर के मारे सांसें थाम कर बैठी रही समूची दुनिया
Updated: | Sat, 28 Nov 2020 07:46 AM (IST)दुनिया में अभी कई देश हैं, जो महाशक्ति हैं और पूरे संसार में शक्ति संतुलन साधते रहते हैं। अमेरिका, रूस, चीन के अलावा भारत, जर्मनी, जापान, फ्रांस और ब्रिटेन भी अपनी शक्तियों से विभिन्न् महाद्वीपों की गतिविधियों को नियंत्रित करने में भूमिका निभाते रहते हैं। किंतु एक समय था, जब पूरी दुनिया में शक्ति के सिर्फ दो ही बड़े केंद्र थे, एक अमेरिका और दूसरा सोवियत रूस। इन दोनों राष्ट्रों के बीच लंबे समय तक शीतयुद्ध चलता रहा। मगर एक बार तो दोनों में ऐसी ठनी कि मिसाइलें तन गईं। तब पूरी दुनिया तीसरे विश्वयुद्ध की आशंका में सांसत में आ गई थी।
किस्सा सन् 1962 का है। उस साल इन दोनों देशों के सनकी राष्ट्र प्रमुखों का अहंकार दुनिया को बर्बादी की कगार पर ले गया था। एक तरफ अमेरिका की जिद थी तो दूसरी तरफ सोवियत संघ (अब रूस) की हनक। अमेरिका में जॉन एफ कैनेडी राष्ट्रपति थे, जबकि सोवियत संघ की कमान निकिता ख्रुश्चैव के हाथों में थी। वह दौर दूसरे विश्व युद्ध की आग में बुरी तरह झुलस चुकी दुनिया के घावों पर मरहम लगाने का था, लेकिन ये दोनों देश खुद को श्रेष्ठ साबित करने की होड़ में दुनिया को फिर शीत युद्ध में झोंक रहे थे। दोनों एक-दूसरे को धमकी देते रहते और हथियार, युद्धक विमान, जंगी बेड़े आदि बनाने की तैयारियां करते रहते। नतीजा यह हुआ कि दुनिया दो गुटों में बंट गई। तनाव बढ़ता जा रहा था और लगभग पूरी दुनिया इससे भयभीत थी।
अंतत: वह हुआ, जिसका डर था। सोवियत संघ्ा ने अमेरिका के ऐन पास स्थित देश क्यूबा में मिसाइलें तैनात कर दीं। प्रमुख अमेरिकी शहर उन मिसाइलों की रेंज में थे। इससे अमेरिका सन्न् रह गया। फिर उसने भी तैयारी शुरू कर दी। हालात तीसरा विश्व युद्ध शुरू होने जैसे हो गए। जरा-सी चिंगारी भयानक युद्ध छेड़ सकती थी। यह तनाव 14 दिनों तक बना रहा। अंतत: अमेरिकी राष्ट्रपति कैनेडी ने कड़े शब्दों में कहा कि यदि एक भी मिसाइल चली तो पूरे सोवियत संघ को तबाह कर दिया जाएगा। तब जाकर स्थितियां बदलीं और सोवियत संघ ने मिसाइलें हटा लीं।
(स्रोत: मोरारजी देसाई की आत्मकथा 'मेरा जीवन वृतांत" में वर्णित जानकारी)
Posted By: Arvind Dubey