Bhopal Railway News :भोपाल, नवदुनिया प्रतिनिधि। रानी कमलापति रेलवे स्टेशन 'आरकेएमपी, यह स्टेशन का कोड है' के पुराने स्वरूप को लोग भूल नहीं पाए हैं। जब भी मौक मिलता है स्टेशन की पुरानी डिजाइन को याद करते हैं और पुराने स्टेशन को सुकून वाला स्टेशन बताते हैं। सोमवार शाम को इस स्टेशन की चर्चा उस वक्त एकाएक शुरू हो गई, जब रेल मंत्रालय ने इसके पुराने व नए स्वरूप से जुड़ी दो तस्वीरें इंटरनेट मीडिया पर साझा कर दी। तीन घंटे में इसे 6500 लोगों ने देखा और 265 लोगों ने अपनी राय भी दी। इनमें से 75 प्रतिशत लोगों ने स्टेशन के पुराने स्वरूप को याद किया और नए स्वरूप से अच्छा बताया है। यह भी लिखा कि पुराने स्टेशन पर शांति थी, आसानी से कम समय में ट्रेन पकड़ लेते थे। नए स्वरूप में बनकर तैयार स्टेशन के अंदर प्रवेश करने और बाहर निकलने वाली परेशानियों को साझा किया है।
बता दें कि इस स्टेशन को रेलवे ने सार्वजनिक निजी भागीदारी के तहत विकसित किया है। जिस पर करीब 400 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। यह पूरी राशि निजी डेवलपर द्वारा लगाई जा रही है। अब तक यात्री सुविधाओं से जुड़े कामों पर करीब 100 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। व्यवसायिक गतिविधियों पर भी करोड़ों रुपये खर्च किए जा चुके हैं। रेलवे ने उक्त् डेवलपर को बदले में स्टेशन पर व्यवसाय करने की अनुमति दी है, जो आठ वर्षां के लिए है। इसके अलावा स्टेशन से लगी आसपास की जमीन 45 वर्षों के लिए लीज पर दी है। यात्री सुविधाओं से जुड़े कामों के पूर्ण होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 नवंबर 2021 को इसे देश को समर्पित किया था। यह निजी भागीदारी से विकसित किया देश का पहला स्टेशन है।
स्टेशन की दोनों तस्वीरों को लेकर सामने आई कुछ प्रतिक्रिया
प्रिंस प्रवीण: पुराना स्वरूप अच्छा था, नया वाला माल की तरह लग रहा है। सौरव बगची ने इसी तरह प्रक्रिया दी।
अली मस्तान: काफी अच्छी डिजाइन करने का प्रयास किया है जो आधुनिकता को जोड़ता है। हालांकि प्लेटपफार्म की डिजाइन पर और काम कर सकते थे।

नीरज शर्मा: बुजुर्ग, बीमार व दिव्यांग के लिए पैदल चलना बहुत मुश्किल है।
आलोक त्रिपाठी: पुराना स्वरूप अच्छा था, नया तो कांच का डिब्बा लग रहा है। मोहम्मद अनस ने भी इसी तरह प्रतिक्रिया द़ी। प्रवीण आर कपाड़िया ने भी पुराने स्वरूप को अच्छा बताया।
सजल श्रीवास्तव: पुराना स्टेशन आइएसओ प्रमाणित था। भोपाल स्टेशन को पुन: विकसित करने की जरुरत है।
विवेक राज: सांस्कृतिक व सामाजिक धरोहरों को दर्शाता हुआ विकास चाहिए न कि स्टील व कांच के ढांचे की।
आशीष कुमार प्रधान: यह पहले अच्छा दिखाई देता था। अब ग्लास हाउस डिजाइन यूरोपीय देशों के लिए उपयुक्त है। कुछ लोगों ने इसे रुपयों की बर्बादी तक बताया है।
अशोक जैन: अच्छा स्टेशन है, बुराई करने वाले तो हर काम में कमियां निकालते हैं।
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