संदीप चंसौरिया, भोपाल। समरथ को नहीं दोष गुसाईं। तुलसीदास जी द्वारा रामचरित मानस में लिखी गई यह पंक्ति रोजगार मेले में दृष्टिगोचर हुई। कहां तो एमबीए पास बेरोजगारों को भी मेले में रोजगार के लाले थे और हजारों में कुछ लाल ऐसे भी दिखे जो सरकारी अफसरों के लिए ऊंची पहुंच वाले थे। काबिलियत हासिल कर बड़े अरमानों के साथ पहुंचे युवा यहां अधिकतम आठ हजार की नौकरी के काबिल थे। वहीं फरमान वाले नाकाबिल होकर भी काबिलों की कतार में सबसे आगे थे। किसी के लिए जिले के मुखिया का फरमान था तो कोई मंत्रालय की सिफारिश साथ लाया था। जाहिर है सुलेमानी फरमानों की नाफरमानी करके भला कोई क्यों पंगा लेने लगा। लिहाजा, कानों कान संदेशे चले और साहबों के आदेशों को सिर आंखों पर रखा गया। नाकाबिल बेरोजगार शाम तक आमंत्रण पत्र के साथ रोजगार वाले हो गए और बेचारे काबिल दिहाड़ी मजदूर की पर्ची लेकर मायूसी के साथ वापस हुए।
अंधा बांटे रेवड़ी, चीन्ह चीन्ह कर दे
कहते हैं जब दृष्टिहीन व्यक्ति रेवड़ी बांटता है तो लोगों को टटोल-टटोल कर ही देता है। यानी रेवड़ी उसे ही मिलती है जिसे वह मन की आंखों से पहचानता है। हाल ही में स्वच्छता के लिए शहर के रहवासी परिसरों और बाजार संगठनों को पुरस्कृत कर साफ-सफाई बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया गया। भावना अच्छी थी लेकिन पुरस्कार पाने वालों के नाम घोषित होते ही आरोप-प्रत्यारोपों की झड़ी ने मजा किरकिरा कर दिया। दूसरा और तीसरा पायदान भी नहीं पाने वाले मन मसोसकर रह गए और अपनी भड़ास यह कहकर उतार दी कि अपनों को पुरस्कार बांट दिए। पहले तो लोगों ने इसे उनका गुस्सा माना लेकिन रबींद्र भवन से बाहर निकलते ही जब कुछ लोग यह कहते सुने गए कि हमने नहीं बोला होता तो तुम्हें तो पुरस्कार मिलना ही नहीं था, तो अरोप सच साबित हो गए कि पुरस्कार हकीकत में अपनों को ही बांटे गए हैं।
इस वार्ड को रखना मेरे भाइयो संभाल के
तीन वर्ष के इंतजार के बाद आखिरकार नगर निगम के चुनावों की घोषणा हो ही गई। संभव है जुलाई-अगस्त में चुनाव हो भी जाएं और नई नगर सरकार काबिज हो जाए। यह भी संभव है कि चुनाव परिणाम चौकाने वाले आएं। दरअसल, चुनावों की प्रतिक्षा शहर के हर छोटे-बड़े नेता के साथ कई उभरते टोपीधारियों को भी थी। वार्ड आरक्षण ने कमोवेश सभी के अरमानों पर पानी फेर दिया। कई तो ऐसे थे जो पिछले आरक्षण को ही यथावत मानकर तीन वर्ष से अपनी बिसात बिछाने में जी-जान से जुटे हुए थे। घर-घर में गोटियां बैठा रहे थे। भविष्य के सफल राजनेता के सपने सजा रखे थे। आरक्षण ने सारे समीकरण उलट दिए। कई वार्ड महिला से पुरुष तो कई अनारक्षित से आरक्षित हो गए। सपनों पर पानी पड़ते ही अब ये भावी नेता लोगों से यह कहते सुनाई दे रहे हैं कि मेरे भाईयो इस वार्ड को संभालकर रखना।
यहां संगठन से बड़ा कोई नहीं
दो वर्ष पहले कांग्रेस से भाजपा में आए नेता अभी भी अतीत के संस्कारों को भूल नहीं पा रहे हैं। यही वजह है कि गाहे-ब-गाहे उनकी फिसली जुबान सुर्खियों का सबब बन जाती है। हाल ही में पंचायत मंत्री महेंद्र सिंह सिसौदिया की केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की मौजूदगी में ऐसी जुबान फिसली कि उन्हें संगठन ने नोटिस थमा दिया। सिंधिया और गुना सांसद डा. केपी यादव का मनमुटाव जगजाहिर है। लोकसभा चुनाव में दोनों प्रतिद्वंद्वी थे पर अब एक ही दल में हैं। सिंधिया समर्थक सिसौदिया यह भूल गए। सभा में वे डा. यादव की जीत और कांग्रेस की हार को गुना के मतदाता की भूल बता बैठे। डा. यादव ने भी मत चूको चौहान की तरह बवाल खड़ा करते हुए संगठन की दुहाई दे डाली। आखिरकार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष को सिसौदिया को नोटिस के साथ यह संदेश देना पड़ा कि यहां संगठन से बड़ा कोई नहीं है।
Posted By: Ravindra Soni