
सौरभ सोनी, नईदुनिया, भोपाल। मध्य प्रदेश सहित देशभर के शहरों और गांवों में लोगों के लिए समस्या बने लाल मुंह के बंदरों को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम की अनुसूची में फिर से शामिल करने की तैयारी की जा रही है। इसके लिए केंद्र सरकार ने सभी राज्यों से सुझाव मांगे हैं। दरअसल, वर्ष 2022 में केंद्र सरकार ने लाल मुंह के बंदरों की तेजी से बढ़ती आबादी को देखते हुए उन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता नहीं समझी और वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में संशोधन करके इन बंदरों को 'वन्यजीव' की श्रेणी से बाहर कर दिया है।
ऐसा होने से वन विभाग के लिए उन्हें पकड़ना या उनका प्रबंधन करना कानूनी रूप से संभव नहीं रहा। इसके बाद इन बंदरों के आतंक से बचाव के लिए उपाय लगभग बंद हो गए। इसका हवाला देकर वन विभाग इन बंदरों को पकड़ने से मना करता आ रहा है और कलेक्टरों से कहा जा रहा है कि वे इन बंदरों को पकड़वाएं।
राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक इन बंदरों के आतंक की शिकायतें पहुंच रही हैं। जिसमें बंदरों द्वारा जनहानि पहुंचाने की भी शिकायतें हैं। इसके दृष्टिगत केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने विभिन्न राज्यों से इन बंदरों को अनुसूची में शामिल करने के लिए सुझाव मांगे हैं ताकि इसी अनुरूप वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची में इन बंदरों को फिर से शामिल किया जा सके।
वन्यजीव विशेषज्ञ इसके लिए उन लोगों को जिम्मेदार मानते हैं, जो आस्था के नाम पर जंगल किनारे बैठे बंदरों को खाद्य सामग्री डालते हैं। वन्य प्राणी विशेषज्ञ डॉ. सुदेश बाघमारे कहते है कि आस्था की दृष्टि से काले मुंह के बंदर हनुमान बंदर है, भ्रम के कारण लाल मुंह के बंदरों को हनुमान बंदर मान लिया जाता है। इसी भ्रम के कारण लाल मुंह के बंदरों को लोग खाद्य सामग्री खिलाते है जिससे उनकी आदत बिगड़ रही है।
भारत सरकार ने लाल मुंह के बंदरों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची शामिल करने के लिए सुझाव मांगे हैं। हमने राज्य की ओर से भारत सरकार को सहमति के साथ सुझाव दिए हैं। - सुभरंजन सेन, मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक, मध्य प्रदेश वन