भोपाल (नवदुनिया प्रतिनिधि)। श्यामला हिल्स पर स्थित मानस भवन में शनिवार को पाचवें अंतरराष्ट्रीय रामायण अधिवेशन का दूसरा दिन था। इसमें धर्म के अनेक जानकार लोगों ने सारगर्भित ढंग से अपनी बात रखी। कार्यक्रम के दौरान मुख्य वक्ता के रूप में स्वामी धु्रवानंद तीर्थ ने कहा कि संसार शांति की खोज में है। पर यह शान्ति कहीं बाहर नहीं है। तथा जिसे हम भौतिक दृष्टि से प्राप्त नहीं कर सकते है। उन्होंने कहा कि हमारे धर्मग्रंथ बताते है कि शांति तो हमारे भीतर है, जो सद्गुणों के प्रभाव से अनुभव की जा सकती है।
स्वामीजी ने सुंदरकांड के पारायण एवं इसका आध्यात्मिक अर्थ बताते हुए कहा कि हनुमान जी ने लंका में शांति रूपी सीताजी की खोज की। यह शांति हमारी देह की लंका में विद्यमान है, किंतु दुर्गुणों के प्रभाव से हम इसे प्राप्त नहीं कर पाते हैं। उन्होंने कहा कि शास्त्रों का भी यही सार है कि हम सत्संग करें।
कार्यक्रम में दूसरे मुख्य वक्ता के रूप में मौजूद जबलपुर से पधारे डा अखिलेश गुमास्ता ने अपने विषय 'साफ्ट पावर आफ रामायण' पर व्याख्यान देते हुए कहा कि श्रीरामचरितमानस में संवेदनशीलता, सहनशक्ति, दया, करुणा, प्रेम, क्षमा जैसे सद्गुणों की जो शिक्षा मिलती है, वही मानवता की रक्षा कर सकती है। यही इसकी आध्यात्मिक शक्ति है।
इसके पूर्व प्रारंभ में शोधकतार्ओं ने पांच विशेष सत्रों के अंतर्गत अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए। जिनके जरिए श्री रामचरितमानस के विभिन्न विषयों पर अपने विचार रखे। इस अधिवेशन में देश के अलावा अमेरिका, मारीशस आदि स्थानों से भी विद्वान आए हैं। इस कार्यक्रम में शाम को होली पर फाग गीत एवं हास्य व्यंग्य की कविताओं की प्रस्तुति दी गई।
Posted By: Ravindra Soni
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