
नईदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल। मध्य प्रदेश बच्चों में निमोनिया के मामलों और मौतों के लिहाज से देश के सबसे प्रभावित राज्यों में शामिल है। निमोनिया मरीजों के मामले में और इससे मृत्यु के मामले में देश में मध्य प्रदेश का तीसरा स्थान है। स्वास्थ्य मंत्रालय की हेल्थ मैनेजमेंट इंफार्मेशन सिस्टम की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2022-23 में प्रदेश में 39,948 बच्चे निमोनिया से बीमार पड़े, जबकि 1,256 बच्चों की मौत दर्ज हुई। इनमें 923 शिशु (1-12 माह) और 333 बच्चे (1-5 वर्ष) शामिल हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार इन मौतों के पीछे सबसे बड़ी वजह कुपोषण है। प्रदेश में बड़ी संख्या में बच्चे कमजोर प्रतिरक्षा क्षमता वाले हैं, जिससे संक्रमण तेजी से गंभीर रूप ले लेता है। ग्रामीण इलाकों में देर से उपचार, घरों के अंदर धुएं का माहौल, भीड़भाड़, स्वच्छता की कमी और समय पर अस्पताल न पहुंच पाना हालात को और बिगाड़ता है। कई परिवार शुरुआती लक्षण जैसे तेज सांस, सीने की त्वचा धंसना, बुखार को नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे बीमारी तेजी से बढ़ जाती है।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्वीकार किया है कि निमोनिया अभी भी देश में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत का प्रमुख कारण है। कुल मौतों में इसके हिस्सेदारी 17.5 प्रतिशत है। इसे कम करने के लिए वर्ष 2019 से 'सांस अभियान' पूरे देश में चल रहा है। इसमें स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षण, मानकीकृत उपचार और नवंबर से फरवरी तक जनजागरूकता अभियान शामिल किया गया है। साथ ही पीसीवी (न्यूमोकोकल कोंजुगेट वैक्सीन) टीका अब प्रदेश के सभी जिलों में उपलब्ध है। यह न्यूमोकोकल संक्रमण से होने वाले गंभीर निमोनिया से बचाव करती है।
जेपी अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. पीयूष पंचरत्न बताते हैं कि हमारे क्लिनिकल अनुभव में ज्यादातर गंभीर निमोनिया के मामले उन बच्चों में दिखाई देते हैं, जिन्होंने पीसी वैक्सीन समय पर नहीं लगवाया होता है। अगर तीनों डोज तय समय पर दे दी जाएं तो गंभीर निमोनिया, आइसीयू में भर्ती और मौत का जोखिम काफी कम हो जाता है।
माता-पिता को चाहिए कि कोई भी डोज न छूटने दें, क्योंकि यह टीका बच्चे की प्रतिरक्षा को मजबूत करता है। वैक्सीन के मामूली दुष्प्रभाव जैसे हल्का बुखार या सूजन सामान्य हैं और जल्द ठीक हो जाते हैं, लेकिन इसके फायदे जीवन भर सुरक्षा देते हैं।
कुल: 4,73,780 मामले
(स्रोतः हेल्थ मैनेजमेंट इंफार्मेशन सिस्टम)
तेज सांस चलना, सीने की त्वचा का धंसना, लगातार बुखार, खांसी और सीने में घरघराहट, भूख कम लगना, दूध न पीना, छोटे बच्चे दूध लेने से मना कर दें। बच्चा सुस्त होना, नींद ज्यादा आना, थकान, कमजोरी, खेलने में रुचि कम होना। ओंठ या नाखून नीले पड़ना, बच्चे को सांस लेने में दर्द या परेशानी।