डबरा। नईदुनिया प्रतिनिधि
जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर टेकनपुर क्षेत्र में नजर आने वाली बीएसएफ अकादमी आज शहर ही नहीं बल्कि दुनियाभर में अपनी पहचान रखती है। यहां सीमाओं के प्रहरी योद्धा तैयार होते हैं। हिमालय को छूती बर्फीली वादियां और रेगिस्तानी मैदान, यहां से तैयार फौलादी शरीर और हौंसले के सामने दुश्मन कांपते हैं। एक दिसंबर 1965 से अभी तक हजारों जवान इस अकादमी में तैयार होकर देश की सुरक्षा में तैनात हो चुके हैं। भारत और बांग्लादेश की सात हजार 419.7 किमी लंबी सीमा पर सुरक्षा की जिम्मेदारी यहां से निकले जवान निभाते हैं। एक दिसंबर को बीएसएफ अकादमी का 56वां स्थापना दिवस है। इस खास मौके पर हम उन शहीदों को याद किए बिना नहीं रह सकते जो अपने देश की आन वान और शान के लिए मिट गए। बीएसएफ ने भारत पाक युद्ध में दुश्मनों को मात देकर देश का तिरंगा फहराया था और 339 अलंकरण और वीरता मेडल हासिल किए थे।
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दुनिया के सामने मिला बॉर्डर गार्डिंग फोर्स का खिताब
दुनिया के सबसे बड़े सीमा सुरक्षा बल के रूप में बेहतर प्रबंधन और सुरक्षा के मानकों पर खरा उतरने के लिए बीएसएफ टेकनपुर को बॉर्डर गार्डिंग फोर्स का खिताब दिया जा चुका है। यह खिताब सीमाओं की श्रेष्ठ सुरक्षा और प्रबंधन के लिए दिया जाता है। देश की सुरक्षा की महती जिम्मेदारी इस बल के पास है। घरों से निकलने वाले कोमल युवा यहां आकर फौलाद बनते हैं।
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बिगड़ते हालातों को सुधारने उतरती है बीएसएफ
चाहे आंतरिक या आंदोलन या फिर आपदा का समय जब सरकार के पूरे रास्ते बंद से नजर आते हैं और स्थितियां बिगड़ती हुर्इ् नजर आती हैं तब बीएसएफ के जवानों को जिम्मेदारी सौंपी जाती है। 1967 में हुआ दिल्ली पुलिस आंदोलन, 1969 में अहमदाबाद में दंगे, 1974 की रेल हड़ताल, भागलपुर दंगे और राजस्थान के गुर्जर आंदोलनों सहित प्राकृतिक आंदोलन बड़े उदाहरण हैं, जहां बीएसएफ के जवानों ने मोर्चा संभाला तब हालात काबू में आए।
Posted By: Nai Dunia News Network
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