Cheetah Project in MP: अब्बास अहमद.ग्वालियर। अफ्रीकी देशों से लाकर कूनो पार्क में बसाए गए चीतों की लगातार हो रही मौत से उनकी निगरानी व्यवस्था पर सवाल उठने लगे हैं। मंगलवार को हुई एक चीता शावक की मौत के बाद अब दूसरे शावकों को लेकर कूनो प्रबंधन की चिंता बढ़ गई है। चीतों के बीमार होने पर जब वह अत्यंत गंभीर हो जाते हैं तभी उन पर निगाह पड़ पाना निराशाजनक है। यही कारण है कि चीतों की जिंदगी बचाना मुश्किल हो गया है। कूनो में चीतों को लाने से पहले निचले स्तर से लेकर दक्षिण अफ्रीका तक बैठे विशेषज्ञों द्वारा अति सूक्ष्म स्तर तक निगरानी के दावे किए गए थे परंतु जिस तरह से पिछले दो माह में एक के बाद एक चार चीतों की मौत के मामले सामने आए हैं उससे इस पूरी निगरानी व्यवस्था सवालों के घेरे में है। प्रबंधन का दावा था कि चीतों के हाव भाव समझने के लिए अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया गया है। जबकि हकीकत यह है कि गंभीर रूप से बीमार होते चीतों पर भी तब निगाह जा रही है जब उनकी अंतिम सांस चलने लगती है।

इस तरह हो रही लापरवाही उजागर

- 23 मई को चीता शावक की मौत के बाद बताया गया शावक जन्म से ही कमजोर था। दूध भी कम पी रहा था। सवाल उठता है कि यह बात पहले से पता थी तब उसे बचाने के क्या प्रयास किए गए। बताते हैं कि जब वह निढ़ाल हो कर गिर गया तब निगरानी दल ने चिकित्सकों को जानकारी दी।

- 08 अप्रैल को चीता दक्षा की मौत बाड़े में एक साथ दो नर चीते छोड़े जाने की चूक की वजह से हुई। इसके बावजूद जनलेवा हमले की खबर प्रबंधन को तब लगी, जब उसके मादा चीता के पास चंद घंटे ही बचे थे। हमले के तत्काल बाद उसका इलाज नहीं हो पाया।

- 25 अप्रैल को चीता उदय की मौत हुई। उसे हार्ट अटैक आना बताया गया, परंतु पोस्ट मार्टम रिपोर्ट में वजह संक्रमण निकला। लगातार निगरानी के दावे के बाद भी उदय पर नजर मौत से कुछ घंटे पहले ही पड़ी।

- 27 मार्च को कूनो में सबसे पहले मादा चीता साशा की मौत हुई। उसकी किडनी में नामीबिया से ही संक्रमण की जानकारी दी गई परंतु पहले से संक्रमण के बावजूद उसके इलाज के क्या इंतजाम हुए, इस पर प्रंबधन ने चुप्पी साध ली। बीमार चीता लाने का निर्णय क्यों लिया गया, इस पर भी वनाधिकारी कुछ भी कहने से बच रहे हैं।

कूनो में बसाए गए चीते विदेशी धरती के हैं। कूनो में बसाने से पहले व्यवस्थाएं तो की गई हैं पर जिस तरह से घटनाएं सामने आ रही हैं, इनकी निगरानी और स्वास्थ्य परीक्षण पर और ध्यान देने की जरूरत है। इनके संरक्षण के लिए कुछ चीतों को तुंरत दूसरे स्थानों पर शिफ्ट करने की जरूरत है।

डा़ यादवेंद्र देव विक्रम सिंह झाला, डीन, भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून

चीता बिल्ली प्रजाति के होते हैं। बिल्ली प्रजाति की मृत्युदर 50 फीसद से ज्यादा होती है। चीता प्रोजेक्ट में भी मृत्युदर 50 फीसद तक है। हां, इनकी मृत्यु भी होगी और जन्म भी होता रहेगा। कूनो में चीते बाहर से लाकर बसाए गए हैं। वे कूनो के प्राकृतिक रहवास को समझ रहे हैं, मौत को अव्यवस्थाओं से जोड़ना ठीक नहीं है।

सीएस निनामा, रिटायर, सीसीएफ

Posted By: anil tomar

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