Dil ki Bat Naidunia ke Sath: वरुण शर्मा.नईदुनिया प्रतिनिधि। हर सेकंड व रोज अपना बेस्ट दो, रास्ता खुद ही मिल जाएगा। मुझे सब लोग अच्छे लगते हैं, मैं सभी को अच्छा लगता हूं या नहीं, यह मुझे पता नहीं। मैं फोकस में नहीं रहना चाहता, इसके पीछे कोई विशेष वजह नहीं है, लेकिन मुझे ऐसे ही रहना पसंद है। लाइफ में डिप्रेशन को लेकर आज बहुत बात होती है, लेकिन मैं इससे कोसों दूर हूं। मैंने अपनी मां को कभी गुस्सा व परेशान होते नहीं देखा है, मेरे जीवन में उनका प्रभाव है। हर परिस्थिति में खुश रहें, यह गुरुजी से सीखा है। आप परेशान हुए तो परिस्थिति जीत जाएगी। आप बेहतर बनें, सब बेहतर ही होगा। जीवन के यह मूल मंत्र आइटीएम यूनिवर्सिटी के प्रो-चांसलर डा. दौलत सिंह चौहान नईदुनिया से सक्षात्कार के दौरान साझा किए। उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें चाय बनानी नहीं आती और घर का बाथरूम साफ करने में भी कोई परहेज नहीं होता है।
सबसे पहले आपसे जानना चाहेंगे कि आप जीवन में क्या बनना चाहते थे। आप जहां हैं वह ठीक है या मंजिल कुछ और थी?
जवाब: मैं साइंस का छात्र रहा और कंप्यूटर साइंस में मास्टर डिग्री की, मेरा एरिया आफ स्पेशलाइजेशन कंप्यूटर कम्युनिकेशन है। डिस्टेंस एज्युकेशन में क्वालिटी इंप्रूव कैसे होगी, इसको लेकर मैंने पीएचडी की है। मैंने 12वीं क्लास में एक कंपनी खोली थी फिर दूसरी खोली। कभी ऐसा सोचा नहीं कि हार्ड टारगेट तय किया हो, जो मिला मैं उसे स्वीकारता चला गया।
आपके निजी जीवन के बारे में कुछखास बातें बताइए जो शेयर करना चाहें?
जवाब: मैं खुद ड्राइविंग करता हूं, भावुक अब नहीं होता हूं, यह पहले का समय था। संगीत मेरा शौक है, मैं मल्लिकार्जुन मंसूर का फैन हूं, संगीतकार कुमार गंधर्व से प्रभावित हूं। डांस मुझे नहीं आता, कोई फोर्स करे तब भी नहीं कर सकता। खाने में कोई शौक नहीं है, जो भी मिल जाए खा लेता हूं। घर में तीन पेट्स हैं और स्ट्रीट डाग बिल्लू मेरा फेवरेट है, जिसे लंबे समय से मैं रख रहा हूं।
लाइफ के लिए सरल मंत्र दीजिए, जो आप समाज को देना चाहते हैं?
जवाब: हम हमारी कमियां छोड़कर दूसरों की परेशानी और कमियों को ढूंढ रहे हैं, अधिकतर लोग ऐसा ही कर रहे हैं। मैं खुद क्या कर रहा हूं, यह लोग नहीं देख रहे हैं। आप सकारात्मक रहेंगे तो सब सकारात्मक ही होगा, यह तय है।
आइटीएम यूनिवर्सिटी में आप प्रो-चांसलर हैं, इसके सफर के बारे में बताइए?
जवाब: आइटीएम से जुड़े हुए मुझे 23 साल हो गए हैं। तीन साल स्टूडेंट रहा, इसके बाद वहां जाब किया, फिर कर्मचारी बन गया और लगातार आइटीएम के साथ सफर जारी है। अब मेरा समय संस्थान व संस्थान के बच्चों के साथ बीतता है।
फैमिली को कितना समय दे पाते हैं, संस्थान और परिवार के बीच समन्वय कैसे बनाते हैं?
जवाब: मेरे पास परिवार के लिए पूरा समय है, मेरी पत्नी और दो बेटों को पूरा समय देता हूं, मैं उनके लिए सदैव हाजिर रहता हूं। परिवार और प्रोफेशनल जिम्मेदारी के बीच तालमेल के साथ चलता हूं, इसमें मुझे कोई परेशानी नहीं आती।
घर के काम आपको आते हैं, परिवार का कितना सहयोग कर पाते हैं। खाना बनाना आता है या नहीं?
जवाब: मुझे चाय तक बनानी नहीं आती, लेकिन घर का बाथरूम हो या संस्थान का, साफ करने में मुझे कोई परहेज नहीं है। कपड़े भी धो लेता हूं। खाना बनाना मुझे बिल्कुल नहीं आता है। हास्टल में काफी रहा, लेकिन मेरे साथ जो रहे उन्होंने मेरा काफी ख्याल रखा, इसलिए मुझे कभी खाना बनाने की जरूरत भी नहीं पड़ी। शेष जो काम हो सकते हैं घर में, मैं उनमें परिवार का सहयोग कर देता हूं।
आज की लाइफ में हर कोई तनाव की बात करता है। छात्र हों या युवा, इनमें तनाव को लेकर आपका क्या मानना है?
जवाब: आज कन्युनिकेशन गैप हो रहा है, डिवाइस और गैजेट्स ने जीवन का काफी हिस्सा ले लिया है। लोग आपस में बात नहीं करते हैं। हर सिच्युएशन में खुश रहना चाहिए। छात्र हों या युवा, सभी एक ही चीज के पीछे भाग रहे हैं। वे भविष्य को लेकर चिंतित हैं, लेकिन वर्तमान को बेहतर नहीं बना रहे हैं। आप बेहतर बनें, लेकिन यह आप एकदम नहीं बन सकते। दूरियों को कम करने की जरूरत है।
Posted By: anil tomar