Gwalior News: ग्वालियर . नईदुनिया प्रतिनिधि । "महाराणा प्रताप जयंती" के उपलक्ष्य में गोविंदपुरी, थाटीपुर ग्वालियर स्थित सुरेंद्रपाल सिंह कुशवाहा के निवास पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया।
गोष्ठी में वरिष्ठ गीतकार राजेश शर्मा ने अध्यक्षता की एवं सहभागी साहित्यकार सुरेंद्र पाल सिंह कुशवाहा, जगदीश महामना सहित रामचरण "रुचिर" रहे। गोष्ठी का शुभारंभ करते हुए साहित्यकार रामचरण" रुचिर "ने अपने विचार व्यक्त किये। उन्होंने कहा,कि महाराणा प्रताप का समग्र जीवन राष्ट्र सेवा भाव, परोपकार एवं शौर्य से भरा रहा। उन्होंने आत्मबल से अपने सैनिकों के साथ युद्ध करते हुए दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए। यह प्रमाण दिया कि लक्ष्य अगर दृढ़ है तो उसे प्राप्त करना असंभव नहीं होता।
उन्होंने दुश्मनों से लड़ते हुए विषम परिस्थिति में जंगल में घास की रोटी भी खाई। हमें महाराणा प्रताप के जीवन आदर्श से प्रेरणा लेनी चाहिए। जगदीश महामना ने कहा कि हमारे देश ने शौर्य के कारण ही विश्व में उच्च स्थान प्राप्त किया है, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए कहीं न कहीं शोर्य का मापदंड कम हो रहा है।
उन्होंने भारतीय इतिहास में राजा कृष्णदेव राय, शिवाजी सहित रणजीत सिंह के शौर्य को महाराणा प्रताप के साथ जोड़ते हुए शौर्य के सतत् महत्व को रेखांकित किया और उनके लक्ष्य प्राप्ति में जीवन संघर्ष का योगदान राष्ट्रहित में बताया। आगे उन्होंने कहा,सनातन परंपराओं में गुरुकुल की शिक्षा पद्धति में भी सूर वीरता की शिक्षा के रूप प्रशिक्षण व वेदों का अध्ययन कराया जाता रहा।
पराजय का बार-बार किया उल्लेख
कार्यक्रम के अगले क्रम में सुरेंद्र पाल सिंह कुशवाहा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा ,कि महाराणा प्रताप के उजले पक्षों को दबाया गया और केवल एक पराजय को इतिहासकारों द्वारा बार-बार उल्लेखित कर महाराणा प्रताप की योगदान को कमतर आंका गया। उल्लेखनीय है कि महाराणा प्रताप के सन् 1576 में लड़ी गई हल्दीघाटी के युद्ध से सभी लोग परिचित हैं। वही सन् 1582 में "दिवेर छापली युद्ध में महाराणा प्रताप ने अकबर को जो करारी हार दी थी, उसका उल्लेख कहीं भी नहीं किया जाता। इस हार के भी ठोकर अकबर महाराणा प्रताप के जीवन पर्यंत तक लाहौर में छिपा रहा। अध्यक्ष राजेश शर्मा ने अपने वक्तव्य का समापन करते हुए कहा , कि इस तरह की गोष्ठी समय-समय पर आयोजित की जानी चाहिए और हमारे इतिहास में वीर पुरुषों के द्वारा दिए गए योगदान को स्मरण किया जाना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन सुरेंद्र पाल सिंह कुशवाहा ने किया।
Posted By: anil tomar
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