ग्वालियर, नईदुनिया प्रतिनिधि। सिथौली स्प्रिंग कारखाने में कबाड़ के बहाने ट्रेन के रेल व्हील एक्सल बेचने का मामला सामने आया है। एक एक्सल डेढ़ से दो टन वजनी होता है और इसकी कीमत दो लाख से पांच लाख रुपये से अधिक होती है। रेलवे मैनुअल के हिसाब से इन्हें कभी बेचा नहीं जा सकता है। यदि ये एक्सल घिस या खराब हो जाते हैं, तो रेलवे भी बेचने के बजाय इन्हें गलाता है। इसका कारण यह है कि ये ठोस लोहे से तैयार होते हैं। इस मामले की शिकायत आरपीएफ के महानिदेशक के पास पहुंची है। शिकायत होने के बाद उत्तर मध्य रेलवे के आरपीएफ महानिरीक्षक ने मामले की जांच शुरू कराई है।
स्प्रिंग फैक्टरी में गत अक्टूबर माह में कबाड़ की नीलामी की गई थी। यह सामान झांसी की कंपनी मैसर्स पवन स्टील को बेचा गया। गत एक नवंबर को कबाड़ के लाट की डिलीवरी के दौरान कबाड़ के साथ ही कारखाने में रखे हुए दो साबुत रेल व्हील एक्सल और उसके पांच बड़े टुकड़ों को रखवा दिया गया था। कारखाना कर्मचारियों ने यह देखा, तो मौके पर ही आपत्ति दर्ज कराई। इस दौरान पता चला कि लाट डिलीवरी के दस्तावेजों में रेल व्हील एक्सल के बजाय भिन्न-भिन्न प्रकार के एक्सल लिखा गया था। मामले की शिकायत आरपीएफ के महानिदेशक और उत्तर मध्य रेलवे के महानिरीक्षक से की गई। महानिरीक्षक ने इस मामले की जांच के आदेश रेल मंडल झांसी और ग्वालियर आरपीएफ के अफसरों को दिए। गत 26 दिसंबर को इस मामले में आरपीएफ के निरीक्षक संजय कुमार आर्य ने कारखाना प्रबंधन को पत्र लिखकर जानकारी मांगी है कि इस मामले की शिकायत कारखाने के टेक्नीशियन ग्रेड-1 कप्तान सिंह ने महानिरीक्षक से की है और इसकी जांच की जा रही है। इसके अलावा छह बिंदुओं की जानकारी देने के लिए भी कहा है।
ये मांगी आरपीएफ ने जानकारी-
-रेल व्हील एक्सल को क्या नीलाम किया जा सकता है?
-रेल व्हील एक्सल क्या फैरश या नान फैरश मटेरियल है?
-रेल व्हील एक्सल की लाइफ कितनी होती है?
-रेल व्हील एक्सल को कौन कंडम घोषित कर सकता है?
-कारखाने द्वारा डिलीवरी दिए गए एक्सल को कब और कहां से प्राप्त किया गया था, इससे संबंधित दस्तावेज उपलब्ध कराएं।
क्या होता रेल व्हील एक्सलः ट्रेन के दोनों तरफ के पहियों को जोड़ने वाले धुरे को रेल व्हील एक्सल कहा जाता है। ये दोनों पहियों के बीच का मोटा पाइपनुमा पुर्जा होता है, जो बहुत भारी और मजबूत लोहे से तैयार किया जाता है। इसकी गुणवत्ता को कई कसौटी पर परखा जाता है। इसके बाद ही इसका उपयोग होता है। यदि एक्सल में कोई दिक्कत होती है, तो उसकी जांच करने के बाद उसे ट्रेन से हटाकर गलाकर दोबारा इस्तेमाल के लिए भेजा जाता है।
प्रबंधक ने लिखा एसएसइ को पत्रः आरपीएफ का पत्र प्राप्त होने के बाद कारखाना प्रबंधक ने गत 13 जनवरी को वरिष्ठ खंड अभियंता (एसएसइ) अनुभाग मिलराइट को पत्र लिखकर पूछा है कि ये एक्सल कब और कहां से प्राप्त किए गए थे। इसकी जानकारी आरपीएफ को उपलब्ध कराई जाए।
परेल से खांचे बनाने के लिए लाए थे एक्सलः इन एक्सल को कुछ वर्षों पहले परेल (मुंबई) स्थित स्टोर से खांचे बनाने के लिए स्प्रिंग कारखाने में लाया गया था। इनमें से कुछ एक्सल का उपयोग हुआ और बाकी का इस्तेमाल आवश्यकता के आधार पर किया जाना था।
वर्जनः
इस मामले में जांच के आदेश झांसी मंडल के कमांडेंट को दिए गए हैं। जांच की वर्तमान स्थिति के बारे में आपको वही बता पाएंगे।
रविंद्र वर्मा, महानिरीक्षक आरपीएफ, उत्तर-मध्य रेलवे इलाहाबाद मुख्यालय
वर्जन-
इस मामले में हमने कारखाना प्रबंधन को पत्र लिखा है। इसका जवाब कारखाना प्रबंधन ही देगा। आप इस मामले में कारखाने के अफसरों से ही बात करें।
संजय कुमार आर्य, निरीक्षक आरपीएफ ग्वालियर
वर्जन-
इस प्रकरण में आप आरपीएफ के अफसरों से ही बात करें। वही आपको जानकारी दे पाएंगे। (ये कहकर फोन काट दिया गया।)
शेख मोहम्मद अनीस, मुख्य कारखाना प्रबंधक, रेल स्प्रिंग कारखाना सिथौली
Posted By: vikash.pandey
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