Gwalior weekly Column Veer Bol: वीरेंद्र तिवारी. ग्वालियर। भितरवार से भाजपा के दावेदारों के तीन नाम खूब चल रहे थे, पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया, पत्रकार से नेता बने भाजपा प्रवक्ता लोकेंद्र पाराशर और गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के भतीजे विवेक मिश्रा। पवैया जैसा बड़ा नाम आने से बाकी के दो की दावेदारी को सांप सूंघ जाता था। अब दोनों के लिए राहत भरी खबर है। सुना है कि पवैया खुद नहीं चाहते कि वह गांव की किसी सीट से चुनाव लड़ें, भितरवार से तो मन भी नहीं है। उनकी नजर शहर की किसी सीट पर है। प्राथमिकता में दक्षिण विधानसभा है, जहां से कांग्रेस के मौजूदा विधायक प्रवीण पाठक कम मार्जिन से जीतने के बाद से खुद को मजबूत करने में लगे हैं। हालांकि पवैया को दक्षिण का टिकट थाली में नहीं मिलेगा, उन्हें भाजपा के पूर्व विधायक नारायण सिंह कुशवाह से पार पाना होगा, जिनकी कुशवाह वोट बैंक के कारण दावेदारी मजबूत बनी रहती है।

कुछ भी हो मुन्ना-मिरा चुनाव तो लड़ेंगे

मिश्रा और मुन्ना आरपार के मूड में हैं। चुनाव हर हाल में लड़ा जाएगा, समय यह तय करेगा कि पार्टी कौन सी होगी। यह बात आपको हैरान कर रही होगी लेकिन भाजपा और इन दोनों के समर्थकों में यह चर्चा अब होने लगी है। कांग्रेस की विधायकी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए मुन्नालाल गोयल उपचुनाव में भाजपा के टिकट पर हार गये थे। 2018 के बाद से ही वह ग्वालियर की पूर्व विधानसभा में सक्रिय हैं। अब यदि उनके टिकट में किंतु परंतु हुआ तो वह किसी भी हद तक जा सकते हैं। यह हाल पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा का है। सुना है वह भी चुनावी अखाड़े में ताल ठोकने के लिए हाथों में मिट्टी मलकर बैठे हैं। अब चाहे उन्हें भितरवार से दें या पूर्व से या दक्षिण से, टिकट तो उन्हें हर हाल में चाहिए, नहीं तो कांग्रेस तो वैसे ही कई सीटों पर अच्छे प्रत्याशी ढूंढ़ रही है। समझ रहे हैं ना ।

बहना की शर्तें हटेंगी

विधानसभा चुनाव के ठीक पहले नारी सशक्तीकरण के नाम पर शुरु की गई लाड़ली बहना योजना की कठोर शर्तों को हटाया जा सकता है। बताते हैं इस मास्टर स्ट्रोक को मामाजी ने बिल्कुल फाइनल ओवर के लिए बचा कर रखा है। अभी महिलाओं को प्रतिमाह एक हजार रुपये देने के लिए विभिन्न शर्तों का पालन करना पड़ रहा है, जैसे पांच एकड़ जमीन नहीं होना चाहिए, कार नहीं होना चाहिए,घर में कोई आयकरदाता नहीं होना चाहिए, ये नहीं होना चाहिए, वो नहीं होना चाहिए, इत्यादी। शर्तों के कारण ही कुछ लाख महिलाएं ही इस दायरे में आ रही हैं जबकि बड़ी संख्या में इससे बाहर हो रही हैं। भाजपा के अंदर खाने में यह शिकायत मिलने लगी है कि यदि एक महिला को पैसा मिलेगा और पड़ोस वाली भाभीजी को नहीं मिलेगा तो दांव उल्टा पड़ सकता है। क्योंकि सबको पता है महिलाएं दूसरी महिलाओं को लेकर कितनी अधिक "सहनशील" होती हैं। लिहाजा लाड़ली बहनों परेशान न हो क्योंकि साल चुनावी है और जब कद्दू कटेगा तो सबको बंटेगा।

लाइट एंड साउंड शो की स्कि्रप्ट

ग्वालियर के आकर्षण का सबसे बड़ा केंद्र किले पर किसी समय लाइट एंड साउंड शो होता था। अव्यवस्था और कम आकर्षक होने के कारण लोगों का उससे मोहभंग रहा। पूरे प्रोजेक्ट को नये स्वरूप में शुरु करने का कहते हुए कोरोना काल में शो को बंद कर दिया गया। दो साल से अधिक गुजर गये, नये प्रोजेक्ट की लाइटें लग चुकीं हैं लेकिन साउंड के अते पते नहीं हैं। इसके पीछे की पड़ताल कहती है कि पहले यह तय नहीं हुआ कि आवाज किसकी रहेगी। जैसे तैसे आशुतोष राणा की आवाज पर सहमति बनी तो अब शो के दौरान पढ़ी जाने वाली कहानी पर किला, ग्वालियर और झांसी राजशाही संस्कृति पर क्या क्या तथ्य शामिल किए जाएं इस पर सहमति नहीं बन पा रही है। बदली हुई परिस्थिति में प्रदेश का संस्कृति और पर्यटन विभाग कोई भी विवादित और असहज करने वाले तथ्यों से बचना चाहता है। यही कारण है कि जो शो मई 2022 में नये अंदाज में शुरु हो जाना चाहिए था उसके अभी तक भी शुरु होने की सुगबुगाहट नहीं है।

Posted By: anil tomar

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