ग्वालियर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। जीवन में सफलता पाने के लिए जरूरी है व्यक्ति अधिकारों के साथ अपने कर्तव्यों का भी पालन करें। कर्तव्य पालन जीवन में सफलता पाने का एक प्रमुख राज है। अपने कर्तव्यों का पालन करके ही जीवन में सफलता हासिल की जा सकती है। आज व्यक्ति अपने कर्तव्यों का भान भूलता जा रहा है। यदि किसी ने आपकी किसी भी रूप में मदद या सहयोग किया है तो उसका जरूर धन्यवाद प्रकट करें। यह शिष्टाचार की भी निशानी है। यह बात मुनिश्री विनय सागर महाराज ने शुक्रवार को माधवगंज स्थित चातुर्मास स्थल अशियाना भवन में आयोजित 48 दिवसीय श्री भक्तामर महामंडल विधान में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।
मुनिश्री ने कहा कि मित्रता हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। मित्र के बिना हर व्यक्ति अकेला है। उन्होंने कहा कि सच्चे मित्र मुश्किल से मिलते हैं। सुदामा और कृष्ण की मित्रता, सच्ची मित्रता का उदाहरण है। मित्र की संगति का मनुष्य पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इस कारण हमें सोच समझ कर, अच्छे संस्कार वाले व्यक्ति से ही मित्रता करनी चाहिए। अच्छे मित्र की संगति में मनुष्य अच्छा बनता है और बुरे की संगति में बुरा बनता है। सच्चा मित्र दुख-सुख का साथी होता है और सदैव हमें गलत काम करने से रोकता है।
इंद्रो ने भगवान जिनेंद्र किया मस्तकाभिषेक: प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि मुनिश्री विनय सागर महाराज ने मंत्र का उच्चारण कर इंद्रो से भक्तिभाव के साथ भगवान आदिनाथ का मस्तकाभिषेक किया। मुनिश्री के मंत्रो के उच्चारण पर शांतिधारा राजेश जैन लाला व ज्योतिचार्य हुकुमचंद जैन परिवार ने की। मुनिश्री के पादप्रक्षालन एवं शास्त्रभेंट गुरुभक्त जिनेंद्र जैन वीरेंद्र जैन परिवार ने किए।
धर्म घाटे का सौदा नहीं होताः धर्म के मार्ग पर चलने वाला कभी छोटा या बूढ़ा नहीं होता, वह तो हमेशा जवान रहता है। धर्म कभी घाटे का सौदा नहीं होता। उससे हमेशा लाभ ही होता है, लेकिन उसमें निष्ठा और श्रद्धा होना जरूरी है। यह विचार विज्ञमती माता ने शुक्रवार को चंपाबाग धर्मशाला में धर्म पर चर्चा करते हुए व्यक्त किए। उन्हाेंने कहा कि चातुर्मास करने का मुख्य उद्देश्य जीवों की हिंसा रोकना होता है। वर्षाकाल में ऐसे असंख्य जीवों की उत्पत्ति होती है, जो हमें आंखों से दिखाई नहीं देते और जाने-अनजाने में उनकी हिंसा हो जाती है। चातुर्मास अहिंसा, धर्म के पालन का पर्व होता है। इसलिए चातुर्मास में साबुत अनाज और पत्ती वाली वनस्पतियों का त्याग करना चाहिए। वैसे भी मांसाहारी का कभी कल्याण नहीं होता, इसलिए शाकाहारी बनें। मिथ्यात्व के समय मधुर रस भी कड़वे लगते हैं। 18 दोषों से रहित आत्मा ही सम्यक दृष्टि होती है। मिथ्या दृष्टि कभी समवशरण में नहीं जा सकते। इस अवसर पर मुख्य संयोजक पुरुषोत्तम जैन मौजूद थे।
Posted By: vikash.pandey
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