Noise Increasing: ग्वालियर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। यह शांत क्षेत्र है यहां पर शोर न करें। लेकिन देखा जा रहा है इन्हीं स्थानों पर सर्वाधिक शोर हो रहा है। न्यायालय और हास्पिटल के बाहर वाहनों का शोर एकाग्रता में बाधा बन रहा है। न्यायालय और हास्पिटल शांत क्षेत्र में होते हैं लेकिन देखा जा रहा है कि इनके बाहर ही वाहनों का शोर अधिक हो रहा है। शांत क्षेत्र में ध्वनि प्रदूषण 50 डेसीबल से अधिक नहीं होना चाहिए। लेकिन इससे कहीं अधिक शोर रहता है। इंदरगंज में स्थित जिला न्यायालय और हास्पिटल रोड पर वाहनों का शोर 80 से 90 डेसीबल तक रहता है। जो आमजन से लेकर मरीज को मानसिक वेदना देता है। लेकिन इस परेशानी से छुटकारा कैसे मिले क्योंकि जिम्मेदार बेखबर है। वाहनों का शोर भले ही लोगों की परेशानी बना हुआ है लेकिन जिम्मेदारों की कार्यप्रणाली में बाधा उत्पन्न नहीं कर पा रहा है।

आकाशवाणी चौराहे पर स्थित परिवार न्यायालय के बाहर आटो, टेंपो, कार, बाइक और भारी वाहनों का आवागमन होता है। इन वाहनों से निकलने वाला शोर 72 डेसीबल तक पहुंचता है। यह निर्धारित मापदंड से कहीं अधिक है। इससे परिवार न्यायालय में पहुंचने वालों को भी शोर से तनाव होता है। लेकिन आमजन की इस परेशानी की ओर किसी का ध्यान नहीं है।

इंदरगंज में स्थित जिला न्यायालय के बाहर वाहनों का भारी दबाव रहता है। वाहनों के लगे पावर हार्न के कारण शोर की तीव्रता भी अधिक रहती है। स्कूली वाहन से लेकर दो पहिया वाहनों के गुजरने की संख्या भी दिन में अधिक रहती है। जिनसे उत्पन्न होने वाला शोर 84 डेसीबल तक जा पहुंचता है। जिसके कारण आसपास के रहवासियों को भी खासी परेशानी होती है।

सनातन धर्म मंदिर के पीछे हास्पिटल रोड पर तकरीबन दर्जन भर अस्पताल, 20 से अधिक क्लीनिक, पैथालोजी लैब आदि संचालित होती हैं। इस कारण से संभागभर से मरीज इस रोड पर स्थित अस्पताल व क्लीनिक पर उपचार लेने के लिए पहुंचते हैं। हास्पिटल रोड पर स्थित अस्पताल व क्लीनिक के पास खुद की पार्किंग न होने से वाहनों की पार्किंग अक्सर सड़क पर रहती है जिससे जाम की स्थिति बनी रहती है। इस कारण से वाहनों के हार्न से होने वाला शोर 90 डेसीबल तक जा पहुंचता है। जो अस्पताल में भर्ती मरीजों को मानसिक वेदना देते हैं।

इनका कहना है

हास्पिटल रोड पर अक्सर वाहनों का जाम लगता है। क्योंकि दूर दराज से आने वाले मरीज अपने वाहन सड़क पर ही पार्क कर देते हैं। ऐसे में सड़क पर अक्सर जाम की स्थिति बनती है। वाहनों के शोर से एकाग्रता भंग होती ही है साथ मरीजों को मानसिक परेशानी भी होती है।

डा मनीष शर्मा, एमडी मेडिसिन

लगातार तेज शोर रहने से मानसिक परेशानी होती है, इससे मरीज को घवराहट होती है। यदि यह शोर स्थाई रहे तो कई तरह की परेशानी खड़ी हो सकती है। 90 डेसीबल तक का शोर व्यक्ति के सुनने की क्षमता को कम कर सकता है। कान के पर्दे पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।

डा दिनेश उचाड़िया, विशेषज्ञ पर्यावरण, एडवांस एनवायरमेंटल टेस्टिंग एंड रिसर्च लैब

Posted By: anil tomar

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