Noise Increasing: ग्वालियर (नप्र)। वाहनों का यह शोर बच्चे से लेकर बड़ों तक में तनाव बढ़ा रहा है। नियमों का ठेंगा दिखाते हुए प्रतिबंधित क्षेत्रों में वाहन चालक प्रेशर वाले हार्न बजाकर निकल जाते हैं। यातायात पुलिस, परिवहन और प्रशासन के जिम्मेदार मूकदर्शक बने हुए हैं। गजब की बात यह है कि प्रतिबंधित क्षेत्रों में नो हार्न संबंधित बोर्ड तक दिखाई नहीं दे रहे हैं। ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण कौन करेगा खुद जिम्मेदारों को नहीं पता। यातायात डीएसपी नरेश अन्नोटिया का कहना है कि वह चालानी कार्रवाई तक सीमित है पर जांच तो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड करेगा। जबकि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी एचएस मालवीय साफ कर चुके है कि ध्वनि प्रदूषण रोकने की जिम्मेदारी पुलिस व प्रशासन की है। नियमानुसार इन संस्थानों के पास 100 मीटर के दायरे में शोर नहीं होना चाहिए। पर 90 डेसीबल तक शोर दर्ज हुआ। जबकि 40 से 50 डेसीबल से ज्यादा नहीं होना चाहिए।

ध्वनि प्रदूषण के कारक

- सड़कों पर दौड़ने वाले पुराने व कंडम और बिना सर्विश के वाहन।

- वाहनों में लगे प्रेशर हार्न। द्यजाम में फसे वाहन चालकों द्वारा बार बार हार्न का प्रयोग करना।

- नो पार्किंग में खड़े वाहन, सड़क पर लगीं गुमठियां,हाथ ठेला से लगता जाम।

- माडिफाइड वाहन जिनके साइलेंसर आदि से निकलती तेज आवाज द्ययातायात नियमों की जानकारी का आभाव ,लेफ्ट टर्न पर वाहन रुकने पर वाहन चालक हार्न का प्रयोग करते।

- चेतावनी बोर्डों को लेकर नियमों का गंभीरता से पालन न करना।

- प्रतिबंधित क्षेत्रों से गुजरने वाले भारी वाहनों से होने वाला शोर।

ध्वनि प्रदूषण पर नहीं चलते अभियान

शहर में वाहनों का दबाव बढ़ता जा रहा है। वाहनों में तेज होर्न के लिए लोग प्रेशर हार्न तक लगवा रहे हैं। जिनसे 100 डेसीबल या इससे अधिक तक आवाज पहुंचती है। यातायात पुलिस हर तिराहे, चौराहे पर वाहनों की चैकिंग भी करती, लेकिन कभी वह ध्वनि प्रदूषण को लेकर वाहनों के प्रेशर हार्न नहीं जांचती। ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम के लिए कोई अभियान भी नहीं चलाया जाता। शहर में वाहनों की हर साल बढ़ोत्तरी हो रही है। ध्वनि प्रदूषण से निपटन के लिए, नगर निगम, पुलिस व प्रशासन का ढीला रवैया इसे बढ़ावा दे रहा है। नईदुनिया ने बुधवार, गुरुवार के अंक में बताया कि शहर में वाहनों से होने वाला शोर निर्धारित मापदंड से कहीं अधिक है। जिसको लेकर विशेषज्ञों का कहना था कि बढ़ते शोर से कई तरह की बीमारियां का खतरा बढ़ता है। मानसिक परेशानी के साथ सुनने की क्षमता को कम करता है।

ध्वनि हो या वायु प्रदूषण ,सभी तरह के प्रदूषण को रोकने के लिए अलग से ही शासन ने एक विभाग बना रखा है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड वाले साल में एक बार आते हैं और माप कर चले जाते हैं। उस वक्त पुलिस पूरा सहयोग देती है और चालानी कार्रवाई भी करती है। उन्हें चाहिए कि वह समय समय पर जांच करें। संस्थानों के बाहर बोर्ड लगाने का काम निगम का है। नरेश अन्नोटिया, डीएसपी यातायात वायु प्रदूषण की रोकथाम संबंधी सलाह समय समय पर दी जाती है। पर ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम करना पूरी तरह से पुलिस व प्रशासन का काम है।

एचएस मालवीय, क्षेत्रीय अधिकारी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

कान के पर्दे नाजुक होते हैं। तेज आवाज से यह क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। तेज आवाज मानसिक वेदना देती है, जिससे चिड़चिड़ापन और व्यक्ति तनाव में रहने लगता है। बच्चे और बड़े यदि लगातार तेज आवाज के संपर्क में रहते हैं तो उनकी सुनने की क्षमता कमजोर होने लगती है।

डा अमित जैन, नाक, कान एवं गला रोग विशेषज्ञ

Posted By: anil tomar

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