-बाहरी शहरों से महंगे किराए पर ग्वालियर आता है सामान
ग्वालियर, (नईदुनिया प्रतिनिधि)। केंद्र सरकार द्वारा उत्पाद शुल्क कम करने के बाद शहर में पेट्रोल के दाम साढ़े नौ रुपये और डीजल की कीमतों में 7.26 रुपये प्रति लीटर की कमी आई है। इसके बावजूद ट्रांसपोर्टरों ने माल भाड़े में कोई कमी नहीं की है। इसका नतीजा यह है कि किराने से लेकर अन्य दैनिक उपयोग की सामग्रियों की कीमतें कम होनी चाहिए थीं, वह नहीं हुई हैं। इससे आम आदमी को कोई राहत नहीं मिल रही है। इसके पीछे ट्रांसपोर्टरों का तर्क है कि डीजल अभी सस्ता हुआ है, जबकि उन्होंने महंगे समय में भी कम भाड़ा वसूल किया था। आगे कीमतें फिर बढ़ेंगी, ऐसे में बार-बार भाड़ा कम-ज्यादा नहीं किया जा सकता है।
ट्रांसपोर्टरों द्वारा वर्तमान में एक टन माल को शहर के बाहर भेजने पर औसतन पांच रुपये प्रति किलोमीटर के हिसाब से भाड़ा लिया जा रहा है, क्योंकि अलग-अलग सामान के हिसाब से भाड़े का निर्धारण होता है। हालांकि परिवहन विभाग ने 1.5 रुपये प्रति किलोमीटर के हिसाब से भाड़े की दरें तय की हैं, लेकिन वह व्यवहारिक नहीं हैं क्योंकि डीजल के रेट अधिक होने के कारण इस दर से माल भेजा ही नहीं जा सकता है। ऐसे में पांच रुपये प्रति किलोमीटर के हिसाब से खर्चा निकल पाता है। वर्तमान में ग्वालियर से बाहरी शहरों के लिए अधिकतम 20 ट्रक ही जा रहे हैं, लेकिन बाहरी राज्यों से माल लेकर ग्वालियर में प्रतिदिन औसतन 50 ट्रक आते हैं। नईदुनिया प्रतिनिधि ने शहर के ट्रांसपोर्टरों से भाड़े के संबंध में बात की, तो उनका कहना था कि शहर में दैनिक उपयोग की सामग्री की कीमतें कम होने का दारोमदार बाहरी ट्रांसपोर्टरों पर है, क्योंकि वह अपने शहरों से भाड़ा वसूलकर ग्वालियर तक माल लाते हैं। जब आम आदमी तक माल पहुंचता है, तो व्यापारी उसमें भाड़ा भी जोड़ता है और कीमतें महंगी हो जाती हैं।
जानें क्यों हैं हम दूसरे शहरों के भरोसेः वर्तमान में प्रदेश का सबसे बड़ा डिस्ट्रीब्यूशन हब इंदौर में है। किराने में दालें, गेहूं, सोयाबीन तेल, आलिव आयल सहित अन्य सामग्री वहां से आती है। इसके अलावा यदि लोहे की बात की जाए, तो वह राउरकेला, रायपुर, पंजाब, हरियाणा जैसी जगहों से आता है जो बहुत दूर पड़ती हैं। उदाहरण के तौर पर ग्वालियर से कोई व्यापारी यदि इंदौर के लिए सामान भेजता है, तो उसे 12 से 15 हजार रुपये के किराए में इंदौर तक के लिए ट्रक मिल जाता है। यही ट्रक जब इंदौर से माल लेकर ग्वालियर आएगा, तो इसका किराया 35 से 40 हजार रुपये होता है। इसका कारण यह है कि इंदौर से सामान की ज्यादा डिलीवरी होने के कारण वहां ट्रक उपलब्ध नहीं होते हैं। ऐसे में जब व्यापारी वहां से माल मंगाता या भेजता है तो कीमतें बढ़ जाती हैं और इसका खामियाजा आम जनता को चुकाना पड़ता है।
किराया मप्र के हिसाब से, यूपी में चार रुपये लीटर सस्ता भराते हैं डीजलः इस पूरे मामले में गौर करने वाली बात यह है कि ट्रांसपोर्टर मध्यप्रदेश में डीजल के भाव महंगे होने का हवाला देकर खुद को घाटे में बताते हैं, लेकिन असल में उनके ट्रकों व डंपरों का टैंक उत्तर प्रदेश में जाकर फुल होता है। दरअसल, ट्रांसपोर्टरों के भाड़े का मुख्य आधार डीजल की कीमतें होता है। इसी का हवाला देकर व्यापारियों से किराया वसूल किया जाता है, लेकिन जैसे ही ट्रक उत्तर प्रदेश के किसी शहर में पहुंचता है वैसे ही उसका टैंक फुल करा लिया जाता है। ग्वालियर में वर्तमान में डीजल का रेट 93.72 रुपये है, जबकि उत्तर प्रदेश में 89.71 रुपये। ऐसे में सीधे तौर पर उन्हें चार रुपये प्रति लीटर की बचत होती है। एक ट्रक में औसतन 400 लीटर डीजल आता है, जिस पर 1600 रुपये उन्हें बच जाते हैं। अगर ट्रांसपोर्टर चाहें, तो इसे कम कर आम जन को राहत दे सकते हैं।
वर्जन-
वर्तमान में ग्वालियर में ट्रांसपोर्ट का काम खत्म हो चुका है। टोल टैक्स, परिवहन विभाग के कर सहित वाहनों की मेंटेनेंस भी महंगी हो गई है। हम पहले से घाटे में हैं। ऐसे में भाड़ा कम नहीं किया जा सकता है। यदि मध्यप्रदेश सरकार भी डीजल-पेट्रोल पर वैट कम करे, तो महंगाई में कुछ राहत हो सकती है।
सुनील माहेश्वरी, ट्रांसपोर्टर
वर्जन-
जिस समय भाड़ा 20 से 25 प्रतिशत बढ़ाना था, तब सिर्फ पांच प्रतिशत की ही बढ़ोतरी की गई थी। वह पहले से ही नाकाफी था, क्योंकि हमें उसमें नुकसान हो रहा था। अब डीजल के रेट 7 रुपये कम होने पर भाड़ा कम नहीं किया जा सकता है। हमें तब भी नुकसान ही उठाना पड़ेगा।
लेखराज रावल, ट्रांसपोर्टर
Posted By: vikash.pandey
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