सामाजिक प्रगति सूचकांक के अनुसार राजनीति में महिलाओं की भागीदारी महज 24.33 प्रतिशत
Women participation in politics: ग्वालियर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। राजनीति का गढ़ माने जाने वाले ग्वालियर जिले में महिलाओं की सहभागिता 25 प्रतिशत भी नहीं है, यह हम नहीं कह रहे हैं यह कहती है सामािजक प्रगति सूचकांक वह रिपोर्ट है जाे केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में जारी की गई है। जारी हुई रिपोर्ट की माने तों ग्वालियर राजनीति में महिलाओं की सहभागिता में काफी पिछड़ा हुआ है। आंकड़े की बात करें तो महज 24.33 प्रतिशत महिलाएं हैं जो राजनीति में सक्रिय हैं। इस आश्चर्यजनक आंकडे को आधार बना कर नईदुनिया ने राजनीति में सक्रिय महिलाओं और समाजशास्त्री से बात की , साथ ही यह जानने का प्रयास किया कि किस वजह से राजनीति में महिलाएं आगे नहीं बढ़ पा रही हैं। सभी ने अपने अनुभव के साथ अलग अलग जवाब दिए, किसी ने इसका कारण महिला राजनीति को समाज रूप से स्वीकार नहीं करना बताया तो किसी ने कहा कि परिवार ही साथ नहीं देता है, आइए आप भी पढ़िए कि इस मामले पर क्या कहती हैं शहर की महिला जन प्रतिनिधि..
महिला नेतृत्व की समाज काे आदत नहीं हमारा समाज पुरुष प्रधान है, और ऐसे समाज को आदत नहीं होती है कि एक सामान्य महिला किसी राजनैतिक दल का नेतृत्व करे। अधिकतर मामलों में देख गया है कि महिला का हौसला गिराने में समाज कोई कसर नहीं छोडता। महिलाओं को यदि राजनीति के क्षेत्र में स्थापित होना है तो उसे जरूरी है कि अपनी आंखे खुली और कान बंद रख कर काम करे।
मनीक्षा सिंह तोमर, प्रदेश उपाध्यक्ष, आप पार्टी
महिलाओं को मौका देने से कतराते हैं एक महिला भी राजनीति में बेहतर साबित हो सकती है, सिर्फ बात होती है तो एक बार उसे प्रोत्साहित करने की। यहीं आकर हमारा समाज अपने हाथ पीछे खींच लेता है। महिलाओं को पारिवारिक और सामाजिक रूप से समर्थन मिलना चाहिए । यदि विश्वास के साथ महिला को मौका दिया जाए तो महिलाएं स्वयं को राजनीति के क्षेत्र में साबित कर सकेंगी।
समीक्षा गुप्ता, पूर्व महापौर, ग्वालियर नगर निगम
हिम्मत कर कदम बढ़ाएं महिलाएं जो आंकड़ा सामने अाया है वह निश्चित तौर पर चौकाने वाला है साथ ही काफी निराशाजनक भी है। महिलाओं की राजनीति में भागीदारी का आंकड़ा कम होना बेहद चिंताजनक है। इसके लिए महिलाओं को थोडी सी हिम्मत दिखा कर आगे आना होगा। यदि महिला एक बार हिम्मत कर समाज कल्याण का बीडा उठा लेती है तो निश्चित तौर पर ही स्वयं को बेहतर साबित कर सकती है।
रश्मि पवार शर्मा, वरिष्ठ कांग्रेस नेत्री
राजनीति में महिला की सामाजिक स्वीकार्यता नहीं जब एक महिला राजनीति में आगे आने का प्रयास करती है तो दुनिया भर की उंगलियां उसकी ओर उठने लगती हैं। तमाम तरीके के आरोप प्रत्यारोप के बीच महिला संघर्ष कर राजनीति में जगह बनाना भी चाहे तो समाज उसे स्वीकार करने में आनाकानी करता है। समाज आंकलन करता है । अफसोस है कि हमारे क्षेत्र में महिला को घर से ही समर्थन नहीं मिल पाता है।
मानवता साहू, राष्ट्रीय कार्यकारणी सदस्य,एबीवीपी
चुनाव महिला लड़े पर शासन पुरुष करता है ग्वालियर चंबल संभाग में मौजूद वर्ण व्यवस्था पूरी तरह से कठोर पितृसत्ता के ग्रसित है। उदाहरण के लिए शासन ने चुनाव लड़ने के लिए सीट को महिला के लिए आरिक्षत किया है तो उसके नाम के साथ पति का नाम जुड़ कर आएगा। जो उसकी पहचान बनता है। चुनाव जीतेगी महिला और राजनीति पुरुष करता है। महिला को जनभागीदारी के लिए धरातल पर उतारकर कमान कस दी जाती है।
प्रो. अयूब खान, समाजशास्त्री
पितृसत्ता की मानसिकता झेल रहा है समाज दुर्भाग्यपूर्ण है कि ग्वालियर-चंबल संभाग की राजनीति आज भी पितृसत्ता की मानसिकता की मार झेल रही है। इन्ही संभागों में पार्षद पति और सरपंच पति की अवधारणा चलती है, महिला चुनाव जीतती जरूर है लेकिन शक्तियां उसके पास नहीं होती। मूल जिम्मेदारी समाज की ही है जो महिलाओं के राजनीति में आने के लिए माहौल और समर्थन नहीं देता है। जिसमें सुधार की आवश्यकता है।
रविकांत अदालतवाले , समाजशास्त्री
Posted By: anil tomar
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