Shardiya Navratri 2020 सुनील कुमार जैन। खिरकिया। भक्ति और श्रद्धा का जुनून जब सिर पर सवार होता है, तो जोश और होश से लबरेज युवाओं को न नींद सताती है और न भूख प्यास। ऐसा ही कुछ जुनून खिरकिया के दो सौ से भी अधिक युवाओं को नवरात्रि के दिनों में छा जाता है। उत्साह, उमंग और आस्था के सैलाब के बीच ये युवा अपनी रातें फूल चुनने और दिन देवी प्रतिमाओं की आकर्षक मालाएं बनाने में बिता देते हैं।
अपने-अपने व्यवसायिक काम काज बंद रखकर श्रद्धा, विश्वास, उत्साह, उमंग, आस्था और समर्पण के पुष्पों से सुसज्जित ये मालाएं शहर में लगभग डेढ़ से दो दर्जन स्थलों पर निःशुल्क वितरित की जाती है। नवरात्रि की पूर्व संध्या से विजयादशमी की रात तक इन उत्साही युवाओं के दिल और दिमाग पर सिर्फ फूल और मालाओं के सिवाय कुछ नहीं रहता।
करीब दो सौ या इससे भी कुछ अधिक युवा पांच से दस लोगों की टोली में रात भर गांव-गांव, डगर-डगर और खेत खलिहान से लेकर जंगलों तक घूम-घूम कर फूल एकत्रित करते हैं। कुछ टोलियां बाइक से, तो कुछ रात को बाइक से टिमरनी, छिदगांव, पगढाल, बानापुरा, भैरोपुर, डोलरिया तक जाते हैं।
इनके हाथों में बेंत की डलिया होती है। इनमें ज्यादातर सफेद चकरी के फूल लाए जाते है। वहीं माला की साज-सज्जा के लिए गुलाब, मोगरा, गुड़हल सहित कई सुंदर फूलों को भी एकत्रित करते हैं। रात करीब 12 बजे से निकले ये युवा दूसरे दिन सुबह 10 बजे तक फूलों के साथ वापिस आ पाते हैं। फिर शुरू होता है इन फूलों को भावनाओं के धागे में गूंथने का काम।
खिरकिया में पांच स्थानों पर मालाएं बनाने का काम चलता है। जहां गरिमा और पवित्रता का पूरा ध्यान रखा जाता है। एक माला में 8 से 10 किलों फूलों का उपयोग किया जाता हैं। ऐसी करीब 2 मालाएं बनाई जाती है। जिन्हें लगभग एक दर्जन पंडालों में दुर्गा माताजी की प्रतिमा के लिए और लगभग आधा दर्जन देवी मंदिरों में शाम 6 बजे से 8 बजे तक पूरे सम्मान के साथ ढोल नगाड़ों के साथ समर्पण की भावनाओं के साथ पहुंचाया जाता है।
खास बात यह है कि इन दो सौ युवाओं की टीम में 10 साल के बच्चों से लेकर 40 साल तक के प्रौढ़ भी शामिल हैं। ज्यादातर युवा और प्रौढ़ मजदूर वर्ग से है।और नवरात्र के दिनों में वे अपना कामकाज बंद रखकर माताजी की सेवा में लगे रहते हैं। इन दिनों में ये सब कार्यकर्ता फलाहार पर ही निर्भर रहते हैं।
50 साल पहले हुई थी शुरुआत
यहां नवरात्र में दुर्गा प्रतिमाओं को निःशुल्क माला देने की शुरुआत लगभग 50 साल पहले हुई थी।पिछले दो दशक से इस पुनीत कार्य में जुटे चेतन चौहान ने बताया कि करीब 50 साल पहले मन्ना कैथवास ने माला बनाकर माताजी की मूर्तियों पर निःशुल्क देने की शुरुआत की थी। बाद में उनसे प्रेरणा लेकर इस काम को अंजाम देने के कारवाँ बढ़ता गया।समय के प्रवाह में मालाओं को गूंथने में साजसज्जा भी बढ़ती गई। उन्होंने बताया कि जरूरत पड़ने पर वे लोग गुलाब के फूल खरीद कर भी लाते हैं। लेकिन मालाएं निःशुल्क ही देते हैं।चेतन चौहान ने बताया कि पिछले कुछ सालों से हरदा, छनेरा, सिराली आदि शहरों के कुछ पंडालों में भी खिरकिया से ही मालाएं निःशुल्क भिजवाते है
Posted By: Hemant Kumar Upadhyay
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