Anhad Nad Column Indore: ईश्वर शर्मा, इंदौर (नईदुनिया)। महाभारत में उल्लेख है कि जब यक्ष ने धर्मराज युधिष्ठिर से पूछा कि काजल से भी काला क्या होता है। तब धर्मराज ने कहा- कलंक। बीते दिनों इंदौर के माथे पर ऐसा ही कलंक लगा, जब सिरफिरे विद्यार्थी ने अपनी गुरु प्राचार्य विमुक्ता शर्मा पर पेट्रोल डालकर आग लगा दी। प्राचार्य की पीड़ा और चीत्कार से इंदौर दहल उठा। माथे पर कलंक और मन में अपराधबोध लिए इंदौर बीते कुछ दिनों से अपना मुंह छुपाए बैठा है। किंतु अब एक बेटी ने कलंक धोने का मर्मस्पर्शी प्रयास किया है। आशीर्वाद स्कूल से उत्तीर्ण बेटी सोनल लोवंशी एमडी, गायनिक की डिग्री प्राप्त कर जब स्त्री रोग विशेषज्ञ बनीं और अपना क्लिनिक शुरू किया, तो उन्होंने अपने स्कूल प्राचार्य को आमंत्रित कर उन्हें अपनी कुर्सी पर बैठाकर सम्मानित किया। कलंक इसी तरह धुलेगा।
जब नन्हे बच्चे के कंठ से गूंजी दिनकर की हुंकार
यदि आप इस चिंता में दुबले होते हैं कि नई पीढ़ी जड़ों से उखड़ती जा रही है, तो तनिक ठहरिए। यह पढ़ेंगे तो आप दुबले के बजाय दोहरे हो जाएंगे। हुआ यूं कि बीते दिनों इंदौर की एक पाश मल्टी में रहवासियों ने बिना तैयारी के यूं ही आनंद के लिए एक सांस्कृतिक कार्यक्रम किया। अचानक ही बच्चों को कहा गया कि जिसे जो बोलना आता हो या डांस करना आता हो, वह स्टेज पर आए और करे। तमाम बच्चों ने कमाल प्रस्तुतियां दीं, लेकिन आठ वर्ष का एक बच्चा मंच पर चढ़ा, माइक हाथ में लिया और पूरे जोश से राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की महान कविता रश्मिरथी पढ़ डाली। उसके बाद तो माहौल कुछ ऐसा था... कर जोड़ खड़े प्रमुदित निर्भय सब जन पुकारते थे जय-जय।
155260 डायल कीजिए और अपना धन लुटने से बचाइए
यह दौर हर तरह की धोखाधड़ी के चरम पर पहुंचने का है। ऐसे में भावनात्मक धोखाधड़ियों से कैसे बचा जाए, इसका उपाय तो अपने राम के पास नहीं, लेकिन अपन इतना जरूर बता सकते हैं कि आर्थिक धोखाधड़ी हो तो कौन-सा मंतर फूंकने पर पैसा वापस आ सकता है। यह मंतर है एक केंद्रीय हेल्पलाइन 155260...। आपने यदि फर्जी लिंक पर क्लिक करके, दूसरे को ओटीपी बताकर या अन्य तरीके से आनलाइन फ्राड में अपना पैसा गंवा दिया है तो खाते से पैसा कटने पर तुरंत ही इस नंबर पर डायल कीजिए। इस पर आपसे सामान्य जानकारी ली जाएगी और तुरंत ही बैंक खाते से पेमेंट को रोक दिया जाएगा। दरअसल, आनलाइन पेमेंट की प्रक्रिया में पैसा 24 घंटे में ट्रांसफर होता है। इस बीच आपने सूचना दे दी तो पैसा वहीं रुक जाएगा।
उलझी आंखों के फलसफों को सुलझाने की सच्ची कोशिश
स्कूलों में परीक्षाएं लगभग संपन्न हो चुकीं। बच्चे अब घरों में हैं और खेलकूद या नए हुनर सीखने में डूब गए हैं। जो बच्चे धनाढ्य हैं, वे गर्मी की छुट्टियां कहीं बाहर बिताने के लिए मां-पापा से जिद कर रहे हैं। लेकिन जो बच्चे आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के हैं, उनकी जिंदगी के फलसफे जरा अलग हैं। उन्हें अगले सीजन की महंगी पुस्तकों, कापियों और स्टेशनरी की चिंता है। पापा फीस कैसे भरेंगे? मां किताबें कैसे दिलाएंगी? ऐसे में केंद्रीय विद्यालय क्रमांक एक ने अनूठी पहल की है। स्कूल ने सभी कक्षाओं के बच्चों से आग्रह किया है कि वे अपनी किताबें संभालकर रखें, उन पर कवर चढ़ाएं और अपने पीछे वाली कक्षा के बच्चों को दे दें। इससे न किसी पर बोझ पड़ेगा, न किताबें रद्दी होंगी। दिक्कतें सुलझती हैं, बस साफ सोच चाहिए।
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