Darbar-A-Khas Column Indore: डा. जितेंद्र व्यास, इंदौर (नईदुनिया)। आम लोगों को अस्पतालों के भारी-भरकम खर्च से राहत दिलाने के लिए शुरू की गई ‘आयुष्मान भारत योजना’ इन दिनों ‘फर्जी’ से भयाक्रांत है। लोगों को पांच लाख रुपये तक की चिकित्सकीय सहायता देने के अच्छे इरादे के साथ शुरू हुई इस योजना का कोविड काल और उसके बाद इतना जमकर दुरुपयोग हुआ कि अस्पतालों के फर्जी बिल और दस्तावेज सरकार के पास टनों में इकट्ठा हो गए। अब स्थिति यह है कि योजना का लाभ लेना लोहे के चने चबाने जितना मुश्किल है। शहर के 67 सरकारी और निजी अस्पताल योजना से जुड़े थे। छह माह से निजी अस्पतालों का भुगतान रुका तो उन्होंने इलाज से हाथ खींच लिए। नतीजतन रोजाना सैकड़ों लोग अस्पतालों के दरवाजे से लौटाए जा रहे हैं। फर्ज फर्जी पर कब कार्रवाई करता है, यह तो वक्त बताएगा, फिलहाल बीमार को योजना की खींचतान परेशान कर रही है।

उम्मीदों की राजनीति पर भारी मैदानी खामियां

प्रदेश में विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा की तैयारी पर पार्टी के ‘स्मार्ट मैनेजर’ ऐसा प्रजेंटेशन देते हैं कि मालवा-निमाड़ की 66 में से 65 सीटें तो आसानी से झोली में आती दिखती हैं। किंतु समस्या तब खड़ी हो जाती है, जब उम्मीदों की इस सुनहरी राजनीति की चर्चा में कोई ‘मैदानी अध्याय’ खुल जाता है। अब हाल ही में भाजपा ने इंदौर संभाग की 37 विधानसभा सीटों के 12 हजार से ज्यादा मतदान केंद्रों के लिए पन्ना प्रभारियों की नियुक्ति कर दी। इसी दौरान कुछ पुराने कार्यकर्ताओं ने जिन्हें जिम्मेदारी दी गई है, उनके निष्क्रिय रहने का मुद्दा उठा दिया। पूछताछ हुई तो स्क्रिप्ट बनाने वालों के पास जवाब नहीं था। फिर क्या था, उम्मीदों की राजनीति वालों को मैदानी खामियां दूर करने की चेतावनी मिल गई। अब देखना है कि यह चेतावनी असर दिखाती है या पुरानी व्यवस्था ही नए कलेवर में आती है।

दावा था बदलेंगे दिन, पर हाल और बुरे हो गए

लंबे इंतजार और तमाम तर्क-वितर्कों के बाद प्रदेश सरकार ने इस उम्मीद में इंदौर व भोपाल में पुलिस कमिश्नरी लागू की थी कि इससे बड़े शहरों में कानून-व्यवस्था और अपराध काफी हद तक काबू में आ जाएंगे। इंदौर में कमिश्नरी लागू होने के साथ ही आइपीएस और राज्य पुलिस सेवा के अफसरों की फौज भी तैनात कर दी गई। जनता को ‘खादी’ ने बार-बार विश्वास दिलाया कि अब यहां ‘खाकी’ खूब हो गई है, पत्ता भी खड़केगा तो पता चल जाएगा। लोगों को भरोसा होता, उसके पहले ही ‘आंकड़ों’ ने चुगली कर दी। सालभर का लेखा-जोखा सामने आया तो पता चला हत्या के मामले वर्ष 2022 में 27 प्रतिशत बढ़ गए। अब देखना यह है कि आंकड़ों के प्रबंधन का बीड़ा कौन उठाता है।

हादसे भी दूर नहीं कर पा रहे "समन्वय" के ब्लैक स्पाट

प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर स्वच्छता में भले देश में नंबर वन है, लेकिन सड़क हादसे और यातायात व्यवस्था के मामले में यहां हाल बुरे हैं। शहरी व ग्रामीण इलाकों के साथ ही राज्य और राष्ट्रीय राजमार्ग भी ब्लैक स्पाट से होने वाले हादसों से जूझ रहे हैं। 2022 के आखिरी दस महीनों में ही शहरी सीमा में 223 लोग सड़क हादसों में जान गंवा चुके हैं। अब फिर ब्लैक स्पाट से होने वाले हादसे कम करने के लिए नई कवायद शुरू हुई है, लेकिन पिछले प्रयासों की तरह ही ये भी सफल हो सकेगी, इसकी संभावना कम ही है। जिम्मेदारों को नए ब्लैक स्पाट बन जाने की जानकारी ही तब लगती है, जब वहां हादसे होने लगते हैं। विभागीय समन्वय में उलझे ये ‘ब्लैक स्पाट’ किस विभाग की जिम्मेदारी है और कौन इन्हें दूर करने पर काम करेगा, जैसे सवालों में उलझे रहते हैं। जनता के हिस्से आते हैं तो सिर्फ हादसे।

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